यह पुस्तक उन लेखों का संग्रह है, जो 'राजस्थान पत्रिका' में प्रकाशित हुए हैं।
चरक संहिता और सुश्रुत संहिता आयुर्वेद के सबसे अधिक प्राचीन तथा प्रामाणिक आर्ष ग्रंथ माने जाते हैं। चरक संहिता में रोगों के लक्षणों तथा उनकी चिकित्सा का वर्णन है और सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा (सर्जरी) की प्रधानता है। काय चिकित्सा तथा शल्य-चिकित्सा इन शास्त्रों के जानकारों के विषय हैं, जिन्हें वैद्य या भिषग कहते हैं। बंगाल में आयुर्वेदिक चिकित्सकों को कविराज भी कहते हैं। मैं इन शास्त्रों का ज्ञाता नहीं, इसलिये इन विषयों पर कुछ भी लिखना मेरे लिये अनधिकार चेष्टा होगी। परन्तु चरक संहिता में अनेक प्रसंग ऐसे हैं जो स्वास्थ्य-रक्षा, आरोग्य, रोग-निरोध आदि के नियमों से सम्बन्ध रखते हैं। आहार-विहार के नियम, ऋतुओं के अनुसार खान-पान, कुछ साधारण तथा घरेलू जड़ी-बूटियों, वनस्पतियों, शाकों आदि के गुण-दोष आदि ऐसे विषय हैं, जो सबके लिये लाभकारी हैं तथा जिन पर उचित ध्यान देने से मनुष्य रोगों से बच सकता है और मामूली रोगों का घर बैठे उपचार कर सकता है।
इस पुस्तक में मैंने ऐसे ही उद्धरणों का समावेश किया है। चरक संहिता के कुछ अंश सूत्र रूप में हैं, कुछ श्लोक-बद्ध हैं और अधिकांश गद्य शैली में हैं। गद्य के अंश बहुत लम्बे-लम्बे हैं। इसलिये मैंने यह उपयुक्त समझा है कि संस्कृत के मूल सूत्र, श्लोक तथा गद्यांश न देकर उनके अर्थ ही दिए जायं और जहां आवश्यकता हो वहां उनकी व्याख्या कर दी जाय। यह व्याख्या भी आयुर्वेदाचार्यों के मतों के अनुसार ही है। जहां आवश्यक है, वहां आयुर्वेद के प्राचीन सिद्धान्तों तथा नियमों की आधुनिक आयुर्विज्ञान के सिद्धान्तों तथा नियमों से तुलना का भी प्रयत्न किया है।
इन शब्दों के साथ मैं आयुर्वेद जैसे शास्त्रीय विषय पर कलम चलाने की धृष्टता के लिये विज्ञजनों से क्षमा चाहता हूं। कोष्ठकों के अन्तर्गत अंश मेरी टिप्पणियां हैं।
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