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चिट्ठियों की दुनिया- Chitthiyon Ki Duniya

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Specifications
Publisher: Bharatiya Jnanpith, New Delhi
Author Edited By S. R.Yatri
Language: Hindi
Pages: 462
Cover: HARDCOVER
9x6 inch
Weight 600 gm
Edition: 2017
ISBN: 9789326354349
HBS465
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Book Description
पुस्तक परिचय
मानव सभ्यता के विकास के साथ जैसे ही अभिव्यक्ति का माध्यम भाषा के रूप में विकसित हुआ उसी समय से पत्रा लिखने का प्रचलन प्रारंभ हो गया। अपने निजत्व को किसी निकटस्थ को सौंपने के लिए संप्रेषण के साथ-साथ उसे यथास्थान पहुँचाने के उपाय भी आवश्यकतानुरूप खोज लिए गए होंगे। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध से ही भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र और उनकी मंडली के अन्य हिंदी सेवियों के बीच होने वाला पत्राचार सामाजिक जागृति का प्रथम अभियान कहा जा सकता है। बाबू बालमुकुंद गुप्त का 'शिवशम्भू का चिट्ठा' एक संकेत के रूप में भारतीय जन-मानस में अंग्रेजी शासन के प्रति प्रतिरोध की भावना जगानेवाला है। भारतेंदु बाबू के मृत्यु वर्ष में ही प्रथम भारतीय राष्ट्रीय दल कांग्रेस की स्थापना हुई। जिन राष्ट्रीय नेताओं का इस दल ने नेतृत्त्व सँभाला उनमें राष्ट्रीय ख्याति के नेता गोपालकृष्ण गोखले, बाल गंगाधर तिलक, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी और बाद में महात्मा गांधी सभी ने पत्रों के माध्यम से राष्ट्रीय प्रश्नों और. सामयिक मुद्दों पर निरंतर पत्राचार किया। लगभग दो-ढाई हजार पत्रों में ऐसे पत्रों की पर्याप्त संख्या मौजूद है जिन्हें बीसवीं शताब्दी के महानतम लेखकों, + कवियों, विचारकों, संपादकों और राजनीतिक आंदोलन से जुड़ी विभूतियों ने लिखा है। इन पत्रों में प्रेमचंद, निराला, पंत, महादेवी, डॉ. रामकुमार वर्मा, श्री हरिवंश राय बच्चन, संपूर्णानंद, गांधी जी, और युग प्रवर्तक संपादकाचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के पत्र सुरक्षित हैं। शांति निकेतन से जुड़े और दीर्घकाल तक कवीन्द्र रवीन्द्र का सानिध्य प्राप्त करते, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी तथा बनारसी दास चतुर्वेदी के पत्रों की अच्छी खासी संख्या संग्रहालय के पास है। प्रथम कोटि के कवि अज्ञेय के मुक्तिबोध को लिखे पत्रों से संग्रहालय की संपन्नता का पता चलता है। जनकवि नागार्जुन, केदार बाबू, रामविलास शर्मा, और नामवर सिंह के पत्रों का भी अमित भंडार है। हिंदी के दिग्गज कथाकारों यशपाल, अश्क और अमृतलाल नागर के पत्रों से कथा जगत से जुड़े महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का दिग्दर्शन होता है। हमने अपनी ओर से भरसक प्रयास किया है कि इन पत्रों में से कुछ पत्र एक संकलन में संगृहीत करके प्रकाशित करें और आगे भी जो पत्रों का भंडार हमें उपलब्ध होगा उसका भी यथा समय प्रकाशन जारी रखेंगे।

लेखक परिचय
जन्म : 10 जुलाई 1932, मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) मुख्य कृतियाँ : दराजों में बंद दस्तावेज, लौटते हुए, कई अँधेरों के पार, अपरिचित शेष, चाँदनी के आरपार, बीच की दरार, टूटते दायरे, चादर के बाहर, प्यासी नदी, भटका मेघ, आकाशचारी, आत्मदाह, बावजूद, अंतहीन, प्रथम परिचय, जली रस्सी, युद्ध अविराम, दिशाहारा, बेदखल अतीत, सुबह की तलाश, घर न घाट, आखिरी पड़ाव, एक जिंदगी और, अनदेखे पुल, सुरंग के बाहर (उपन्यास); केवल पिता, धरातल, अकर्मक क्रिया, टापू पर अकेले, दूसरे चेहरे, अलग-अलग अस्वीकार, काल विदूषक, सिलसिला, अकर्मक क्रिया, खंडित संवाद, नया संबंध, भूख तथा अन्य कहानियाँ, अभयदान, पुल टूटते हुए, विरोधी स्वर, खारिज और बेदखल, (कहानी संग्रह); किस्सा एक खरगोश का, दुनिया मेरे आगे (व्यंग्य संग्रह); लौटना एक वाकिफ उम्र का (संस्मरण) । वर्तमान साहित्य, विस्थापित (कथा संग्रह) का संपादन।

पुरोवाक
चि‌ट्ठी लिखने, पाने और पढ़ने का आम आदमी की जिंदगी में बड़ा मायने होता है। पत्र कब और क्यों लिखे जाते हैं इस पर विचार करें तो यही पाएंगे कि उसका कोई एक कारण नहीं होता है। निजी पत्र प्रायः सूचना देने के लिए, अपनी परेशानी, सुख-दुःख, झुंझलाहट, द्वंद्व और पीड़ा जैसे मनोभावों को स्वर देने और खुद को अभिव्यक्त करने के लिए लिखे जाते हैं। अपने सामने उपस्थित परिस्थिति को देख, मन में उपजते हर्ष और विषाद, विस्मय और आश्चर्य के मनोभावों को व्यक्त करने और उसे अपने प्रिय जनों तक पहुंचाने के लिए हम सभी पत्र लिखने के अभ्यस्त हैं। साथ ही पत्र पाने वाला पत्र-लेखक की अनुपस्थिति में भी उसकी याद को ताजा कर लेता है और उसकी भावात्मक उपस्थिति को भी महसूस करता है। बाद में जब कोई संवेदनशील व्यक्ति उन पत्रों तक पहुंचता है तो वह भी उनके सहारे उस समय और परिस्थिति को बदले हुए समय और परिस्थिति में फिर से महसूस करता है।

'चिट्ठियों की दुनिया' शीर्षक पत्रों का यह संकलन महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के 'स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय' में संग्रहीत पत्र सामग्री से चुन कर प्रस्तुत किया गया है। यह कार्य बड़ी सुरुचि और मनोयोग से हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय श्री से.रा. यात्री जी ने डॉ. श्रीरमण मिश्र के सहयोग से किया है। यात्री जी ने अपने वक्तव्य में उल्लेख किया है कि ये पत्र हिन्दी की विकास यात्रा के एक महत्वपूर्ण युग के साक्षी हैं। इनमें हिंदी को वर्तमान रूप देने वाले अनेक स्वनामधन्य कृती रचनाकारों के पत्र सम्मिलित हैं जिनमें उस समय का साहित्यिक इतिहास बोल रहा है।

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