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गुजरात का समकालीन हिन्दी काव्य- Contemporary Hindi Poetry of Gujarat

$38
Specifications
Publisher: Chintan Prakashan, Kanpur
Author TUSHAR KUMAR VYAS
Language: Hindi
Pages: 310
Cover: HARDCOVER
9x6 inch
Weight 490 gm
Edition: 2020
ISBN: 9789385804502
HBO512
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Book Description

भूमिका

भारत देश में 'साहित्य' और 'काव्य' शब्द पर्याय रहे हैं। शब्द व अर्थ के उचित सहभाव का नाम 'काव्य' है। भारत के पश्चिमांचल में आया प्रदेश गुजरात की लोकव्यवहार और बोलचाल की भाषा गुजराती है। इसके प्राचीन और मध्यकालीन कवियों में दयाराम, नरसिंह मेहता, प्रेमानंद, मीरा, अखो आदि कवि हैं। जबकि आधुनिक काल में उमाशंकर जोशी, सुन्दरम् और राजेन्द्र शाह जैसे प्रख्यात कवि हैं। यहाँ अनेक वैष्णव, स्वामीनारायण, जैन संत और सूफी संप्रदायों के आश्रय में विपुल साहित्य रचा गया है।

अपभ्रंश से निकलती हिन्दी का आदिरूप पाटण निवासी हेमचन्द्राचार्य कृत 'सिद्ध हेम शब्दानुशासन' में तथा वढवाण के जैनाचार्य मेरूतुंग की 'प्रबन्ध चिन्तामणी' के दोहों में देखा जा सकता है। कच्छ के महाराज लखपती ने भुज में ब्रजभाषा पाठशाला की स्थापना की थी। इस वातावरण में गुजरात के कवियों ने हिन्दी में काव्य रचना करके अपने संदेश को अधिक व्यापक बनाया। गुजरात के गाँव-गाँव और घर-घर तक हिन्दी भाषा पहुँची हुई है। इस समय देश की सामाजिक संस्कृति को व्यक्त करने वाली सशक्त राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी उभर रही है। गुजरात के हिन्दी साहित्य के समकालीन पद्म को गुजरात के परिप्रेक्ष्य में दिखाने का यह एक विनम्र प्रयास है।

हिन्दी कविताओं को पढ़ना और लिखना मेरा बचपन से ही शौख रहा है। इसीलिए मैंने अध्यापन और अध्ययन का कार्यक्षेत्र हिन्दी साहित्य चुना। समकालीन हिन्दी कविताएँ आज नए रूप में निखर रही हैं। इसी कारण शोधकार्य में मैंने गुजरात की समकालीन हिन्दी कविताओं को पसंद किया। उससे प्रभावित होकर मैंने गुजरात की समकालीन हिन्दी कविता पर शोधकार्य करने की आवश्यकता अनुभव की। पी-एच. डी. का यह शोधकार्य निर्देशिका आदरणीया ब्रह्माकुमारी डॉ. ममता शर्मा के मार्गदर्शन में संपन्न हुआ है। डॉ. ममता शर्मा का शुभाशीष लेकर मैंने 'गुजरात का समकालीन हिन्दी काव्य' विषय पर काम सम्पन्न किया।

गुजरात एक अहिन्दी भाषी राज्य है। फिर भी गुजरात प्रदेश की समकालीन हिन्दी कविता भाषा और भावबोध की दृष्टि से अत्यंत संशिलष्ट है। गुजरात के समकालीन हिन्दी काव्यों की भाषा भंगिमा, अलग कहावतें, मुहावरे और बिम्ब प्रतीक इतने संश्लिष्ट हैं कि जिन्हें देखकर ठगा-सा रह जाना पड़ता है।

गुजरात के समकालीन प्रबंध काव्य, खण्डकाव्य, महाकाव्य, गीत, ग़ज़ल, दोहा, हाइकु, घनाक्षरी, लम्बी कविता, मुक्तछंद, आदि के बारे में मैंने पढ़ा, पढ़ते समय लगा कि गुजरात जैसे प्रदेश में भी हिन्दी में इतना धाराप्रवाह लेखन हो रहा है, खासकर इन कविताओं के विषय और संवेदना ने मुझे इस दिशा में शोध करने के लिए प्रेरित किया।

अध्ययन, अनुशीलन एवं विवेचन की सुविधा के लिए विषय क्षेत्र की व्याप्ति को ध्यान में रखते हुए प्रारंभ में ही अपनी एक परिधि तय कर ली गई है और परिधि की गहराई में उतरने का प्रयास किया गया है। अतः प्रस्तुत शोध प्रबन्ध की सीमाएँ इस प्रकार हैं।

'समकालीन' शब्द उन सभी अर्थों को ध्वनित करता है जो अर्वाचीन और आधुनिक में गर्भित हैं। हिन्दी कविता एक और परंपरा से जुड़ी हुई है दूसरी ओर यह पाश्चात्य प्रभावों को भी निरन्तर ग्रहण कर रही है। हिन्दी काव्यधारा भक्ति और श्रृंगार से मुक्त होकर हिन्दी कविता का समाजोन्मुख होना भी उसकी उल्लेखनीय उपलब्धि है। गुजरात के प्रमुख समकालीन कवियों में आचार्य रघुनाथ भट्ट, डॉ. अम्बाशंकर नागर, प्रा. सुलतान अहमद 'पठान', डॉ. किशोर काबरा, भगवतशरण अग्रवाल, डॉ. रामकुमार गुप्त, रमाकांत शर्मा, दयाचन्द जैन, डॉ. निर्मला आसनाणी, कमल पुंजाणी, अविनाश श्रीवास्तव, द्वारकाप्रसाद साँचीहर, जयसिंह 'व्यथित', डॉ. विष्णु 'विराट' चतुर्वेदी, भगवतप्रसाद मिश्र 'नियाज़', सुधा श्रीवास्तव, घनश्याम अग्रवाल, बसंतकुमार परिहार, मरयम 'गज़ाला', आदि कवियों की कविताएँ विशेष उल्लेखनीय हैं। इस शोध कार्य में गुजरात के इन समकालीन कवियों के अतिरिक्त उपलब्ध अन्य समकालीन कवियों की कविताओं का विवेचन विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है।

प्रस्तुत शोधकार्य के लिए हेमचन्द्राचार्य उत्तर गुजरात यूनिवर्सिटी पाटन, श्री अंबाजी आर्ट्स एण्ड कॉमर्स कॉलेज पुस्तकालय, टी.ए. चतवानी आर्ट्स एण्ड जे. वी. गोकल ट्रस्ट कॉमर्स कॉलेज राधनपुर पुस्तकालय, सरकारी जिला पुस्तकालय महेसाना, छ.पी. पुस्तकालय महेसाना, सेन्ट्रल लाइब्रेरी एम.एड. भवन राधनपुर, हिन्दी साहित्य परिषद अहमदाबाद, हिन्दी साहित्य अकादमी, गाँधीनगर आदि स्थानों से अध्ययन सामग्री एकत्र करके शोधकार्य करने का प्रयास किया है।

प्रस्तुत शोधकार्य को अध्ययन के लिए पाँच अध्यायों में विभक्त किया गया है। प्रथम अध्याय के अंतर्गत गुजरात में हिन्दी काव्य परंपरा की शुरुआत एवं विकास पर प्रकाश डाला गया है। जिसमें गुजरात में हिन्दी काव्य की शुरुआत, चारण काव्य, भक्ति काव्य, सूफी काव्य, रीतिकालीन दरबारी काव्य, आधुनिक हिन्दी काव्य आदि विषयों पर विस्तार से चर्चा की है। मध्यकालीन कवियों ने गुजराती के साथ डिंगल, ब्रज, अवधी और खड़ी बोली में सुंदर ग्रंथों का निर्माण किया है। कच्छ-भुज में स्थापित ब्रजभाषा पाठशाला ने अपने दो सौ वर्ष के काव्यकाल में सैकड़ों ब्रजभाषा कवि तैयार किये हैं। उनका भी विवेचन और विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।

द्वितीय अध्याय के अंतर्गत गुजरात के समकालीन हिन्दी कवि और उनकी काव्य-कृतियों की विस्तार से चर्चा की गई है। समकालीन कविता की परिभाषा और उसके उद्देश्य पर प्रकाश डाला गया है। गुजरात की समकालीन कविता के वैशिष्ट्य के कारण युग के मूलभूत द्वन्द्व और तनाव का संघर्षशील मानवीय चेतना की आंतरिक प्रेरणाओं और सरोकारों का युगीन यथार्थ के संश्लिष्ट स्वरूप और व्यक्ति मन की तीव्र प्रश्नानुकूलताओं का अपेक्षाकृत अधिक मूर्त अनुभव विषय के रूप में चित्रित किया है।

तृतीय अध्याय के अंतर्गत गुजरात की समकालीन हिन्दी कविता का अनुभूतिपक्ष पर विस्तार से अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। समकालीन काव्य में वर्तमान व्यवस्था के प्रति आक्रोश और परिवर्तन का आग्रह भी उतना ही है। गुजरात के हिन्दी कवियों के लिए यहाँ की भूमि से मिट्टी से, मनुष्य के समक्ष मनुष्य बनने की चुनौती रही है। समकालीन कवि पुकारता है, गुहार करता है, चेतना जागृत करने का प्रयास करता है।

चतुर्थ अध्याय के अंतर्गत गुजरात की समकालीन हिन्दी कविता का अभिव्यक्ति पक्ष पर विस्तार से चर्चा की गई है। गुजरात की उर्वरा साहित्यिक भूमि पर गुजराती, हिन्दी और उर्दू की त्रिवेणी का जो संगम देखने को मिलता है, वैसे अहिन्दी भाषी प्रदेशों में कम ही है। इस अध्याय में काव्यरूप जिसमें मुक्तक, गीत, ग़ज़ल, हाइकु, दोहा, घनाक्षरी, लम्बी कविता, मुक्तछंद, प्रबंधकाव्य, खण्डकाव्य, महाकाव्य, भाषा वैशिष्ट्य, शब्द संयोजन, तत्सम्, तद्भव, देशज, विदेशी, शब्दशक्ति, काव्यगुण, अलंकार योजना, छंद योजना, गेयता, मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ, मिथक, प्रतीक एवं बिम्ब आदि पहलुओं की सोदाहरण विस्तार से चर्चा की गई है।

अन्तिम अध्याय के अंतर्गत उपसंहार में उपर्युक्त चारों अध्यायों का संक्षिप्त सार प्रस्तुत किया गया है एवं इस महानिबंध की शोध के फलस्वरूप प्राप्त उपलब्धियाँ, सार एवं नवीन खोज का समीक्षात्मक एवं विवेचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।

प्रथमतः उस परम प्रिय परमात्मा के सामने श्रद्धावनत् हूँ। जिसके कारण यह शोधकार्य प्रस्तुत हो सका है। उस परम तत्व को बार-बार वंदन करता हूँ।

प्रस्तुत शोधकार्य आर्ट्स एण्ड कॉमर्स कॉलेज, अंबाजी की प्राध्यापिका डॉ. ममता शर्मा के मार्गदर्शन एवं निर्देशन में सम्पन्न हुआ है। उनकी उदार एवं स्नेहपूर्ण भावना के प्रति में अत्यंत आभारी हूँ। उनके प्रति आभार व्यक्त करके भी मैं उनके उपकार के भार से मुक्त न हो सकूँगा क्योंकि यह उनकी सतत् प्रेरणा का फल है। मुझे प्रेम का पीयुष पिलाकर मेरे शैक्षणिक स्तर को ऊपर उठाने वाले परम पूज्य पिताश्री दिनेशचंद्र व्यास और माताश्री कैलाशबहन व्यास को नतमस्तक प्रणाम करता हूँ। जिन्होंने मेरी संशोधनवृत्ति को सदा प्रोत्साहित कर मुझे असीम स्नेह से कार्यपूर्ण करने की प्रेरणा एवं सफलता के सहयोग एवं शुभाशीर्वाद दिया है। अपने गृहकार्य में निरन्तर व्यस्त रहकर भी मेरी धर्मपत्नी फाल्गुनी ने घर की जिम्मेदारी से मुक्त रखकर, असीम स्नेह देकर कार्य करने के लिए सदैव प्रेरित करती रही। मेरे पुत्र वेद एवं यज्ञ ने भी हमेशा इस कार्य में मेरा साथ दिया।

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