शक्ति की उपासना का परम शिखर है महाविद्याओं की साधना। ये दस महाविद्याएँ न केवल शक्ति के दस रूप हैं, बल्कि दस आयाम हैं ज्ञान, मृत्यु, करुणा, काल, क्रोध, सौंदर्य, वाणी, सम्पदा, विज्ञान और पूर्णता के। तांत्रिक ग्रंथों में वर्णित यह सिद्धांत कि 'जो महाविद्याओं को जान ले, वह समस्त त्रैलोक्य का रहस्य जान लेता है' - इसी आधार पर इस संग्रह की रचना की गई है। यह ग्रंथ न तो केवल पाठ के लिए है और न ही मात्र भक्ति के लिए - यह साधक की आत्मा में उतरने हेतु लिखा गया है।
दस महाविद्याएँ तंत्र, योग, उपासना, दर्शन और दर्शनातीत चेतना की परम अभिव्यक्तियाँ हैं। यह संग्रह एक साधक की साधना यात्रा को स्वर देता है जहाँ शब्द, स्वर और छंद के माध्यम से वह काली के मौन में, तारा के नाद में, छिन्नमस्ता के विसर्जन में स्वयं को विलीन करता है। भारतीय साधना परंपरा में दस महाविद्याएँ न केवल तांत्रिक उपासना की परम चेतना हैं, अपितु वे आत्मा की गहराइयों में उतरने का अमोघ द्वार भी हैं। ये दस महाशक्तियाँ-काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला सिर्फ दैवी स्वरूप नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की दस रहस्यमयी तरंगों का प्रतीकात्मक उगार हैं। यह 'दस महाविद्या स्तुति संग्रह' उन्हीं तरंगों की शब्दान्विति है जहाँ स्तुति, ध्यान, न्यास, बीजमंत्र, तांत्रिक विन्यास और लयबद्ध छंदों के माध्यम से साधक उस सूक्ष्म शक्ति से एकाकार हो सकता है। यह संकलन केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक जीवंत साधना पथ है, जिसमें पाठक श्रद्धा से आरंभ कर समाधि तक पहुँच सकता है- यदि वह प्रत्येक श्लोक को हृदय की वीणा पर साधे। इस संग्रह का उद्देश्य है- प्रत्येक महाविद्या के स्वरूप, तांत्रिक भाव और आध्यात्मिक रहस्य को सरल या गूढ़ शैली में प्रस्तुत करना। परंपरागत शास्त्रीय स्तोत्रों को आधुनिक साधक के भावपथ से जोड़ना। प्रत्येक देवी के लिए ध्यान, विनियोग, विन्यास, स्तुति, पुष्पांजलि, कवच और क्षमा प्रार्थना सहित पूर्ण स्तुति-पद्धति देना। यह ग्रंथ उन साधकों के लिए विशेष उपयोगी है जो महाविद्या साधना आरंभ करना चाहते हैं, तांत्रिक उपासना में पद्धति और भाव-निष्ठा का समन्वय चाहते हैं अथवा स्तुति और मंत्रों के माध्यम से नवदुर्गा से आगे की चेतना में प्रवेश करना चाहते हैं। इस संग्रह की रचना संस्कृत मूल, हिंदी अनुवाद और कुछ अंशों में छंदबद्ध स्तुति-रचना के रूप में की गई है, जिससे यह पारंपरिक पद्धति को आधुनिक भक्त के हृदय से जोड़ सके। प्रत्येक महाविद्या के लिए बीज मंत्र और ध्यान श्लोक, तांत्रिक यंत्र वा चक्र संकेत, स्तोत्र (संगीतात्मक शैली में) पुष्पांजलि मंत्र और क्षमा श्लोक और समर्पण भाव के दोहे/चौपाइयाँ प्रस्तुत की गई हैं।
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