गुरुकुल से स्नातक होने के बाद उन्होंने अपने मामा के साथ दैनिक वीर अर्जुन में संपादन कार्य किया। अपने क्रांतिकारी लेखों के कारण उन्हें ब्रिटिश सरकार का कोपभाजन बनना पड़ा। और उन्हें जेल की सजा हुई। सत्यकाम विद्यालंकार अपनी संपादकीय प्रतिभा के बल पर उन्नति करते हुए अंततः दैनिक नवयुगं दिल्ली के संपादक बने और फिर 'टाइम्स ऑफ इंडिया समूह' के लोकप्रिय हिंदी साप्ताहिक धर्मयुग के अनेक वर्ष संपादक रहे। वहां से अवकाश प्राप्त करने के बाद उन्होंने साहित्यिक सांस्कृतिक मासिक पत्र नवनीत का संपादन संभाला।
सत्यकाम विद्यालंकार ने बीसियों मौलिक रचना लिखकर हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि की। स्वामी सत्य प्रकाश के सहयोग से चारों वेदों का अंग्रेजी में अनुवाद किया।
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