भारतीय संस्कृति को जीवित जाग्रत रखने में भारतीय सन्तों का एक महान् योगदान है। उन्होंने अपनी दिव्यशक्ति, प्रभाव-शाली जीवन और अलौकिक प्रतिभा से तत्कालीन जनता के हृदयों में जहाँ धर्म की भावना को अक्षुण्ण बनाये रखा, उसके साथ ही कालचक्र के प्रभाव से तथा अविद्या आदि अन्य कारणों से आई हुईं बुराइयों को दूर करने में भी बड़ा योग दिया है।
इस सन्त-परम्परा के अधिकतर सन्त कवि भी हुए हैं। उन्होंने अपनी कविता के हृदयंगम भावों द्वारा जनता को मुग्ध बनाये रखा।
भक्त लल्लेश्वरी का जन्म प्रकृति की स्वाभाविक सुषमा से सुभूषित काश्मीर प्रदेश में एक पण्डित परिवार में हुआ। उस समय काश्मीर के शासक मुस्लिम थे। इस्लाम के सूफी सन्तों का भी उस समय जनता पर बहुत प्रभाव था ।
मोराबाई की भांति लल्लेश्वरी भी अपने पूर्व जन्मों की भक्ति की निधि अपने साथ लेकर पैदा हुई थी। गृहस्थ में आकर उसे भी कष्ट और अत्याचार सहन करने पड़े। गृहस्थ की यातनाओं ने उसके भक्तिभाव को अधिक विकसित कर दिया और उसके कारण उसने गृहस्थ का परित्याग कर दिया ।
इस्लाम के सूफी सन्तों के संसर्ग में आकर उसका भाक्त-भाव और अधिक विकसित हो गया और दिव्योन्माद की अवस्था में स्थान-स्थान पर घूमने लगी ।
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