जब भी लोगों ने मुझ से पूछा है कि मेरे उपन्यासों में से कौन-सा उपन्यास मुझे प्रिय है, मैं हमेशा सीधा उत्तर देने से कतरा गया हूँ, दृढ़ता से यह मानते हुए कि विशुद्ध डाह में इस सवाल की तुलना किसी आदमी से यह माँग करने से की जा सकती है कि वह अपने बच्चों को उस क्रम से बनाये जिस क्रम से वह उनसे प्यार करता है। कोई भी सच्चा पिता, अगर ज़रूरी हो ही जाय तो, अपने हर बच्चे के विशेष आकर्षण के बारे में ही बात करेगा।
देवता का बाण के सिलसिले में यह विशेष गुण इस बात में निहित हो सकता है कि मुझे इसी उपन्यास को दोबारा पढ़ते पकड़ा जा सकता है। इस वजह से इसके शिल्प और गठन की कुछ कमज़ोरियाँ भी मेरी नज़र में आयीं जिन्हें मैं इस नये संस्करण के प्रकाशन के अवसर का फ़ायदा उठा कर दूर करने की कोशिश कर रहा हूँ।
देवता का बाण के उत्साही प्रशंसक भी हैं और उतने ही गर्मा-गरम निन्दक भी। निन्दकों से और कुछ भी कहने की ज़रूरत नहीं। अलबत्ता प्रशंसकों के सामने मैं यही आशा व्यक्त कर सकता हूँ कि जो तब्दीलियाँ मैंने की हैं उनका वे अनुमोदन करेंगे। लेकिन चीज़ों की प्रकृति ऐसी है कि उनमें से कुछ अपने मूल प्रेम पर इतनी दृढ़ता से टिके रहेंगे कि वे इन परिवर्तनों को अकारण किये गये या गैर-ज़रूरी क़रार देंगे। परिवर्तन शायद कभी ज़रूरी या कारणवश किये गये नहीं माने जा सकते, लेकिन हम उन्हें करते रहते हैं। हमें कम-से-कम उन्हें सलाम करने के लिए तैयार रहना चाहिए जो दृढ़ता से अडिग रहते हैं, उस शानदार आदमी एजेउलू के आध्यात्मिक वंशज, इस आशा में कि वे हमें माफ़ कर देंगे। क्योंकि अगर वह बच गया होता तो वह अपनी क़िस्मत को पूरी तरह एक अभागे नायक की अपनी भव्य ऐतिहासिक नियति के समरूप पाता, अपने लोगों के पाला बदलने के पाप का प्रक्षालन अपनी वेदना से करता हुआ - इस तरह उस पाला बदलने को एक कर्मकाण्ड की प्रतिष्ठा देता हुआ। और उसमें उन्हें उसने उन्हें ख़ुशी से माफ़ कर दिया होता।
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