'मुझे बताइए मैं किस क्षेत्र में बढ़िया कैरियर बना सकता हूँ?' बच्चे ने पूछा।
पिता ने जवाब दिया 'अच्छे इंसान बनो। इस क्षेत्र में मुकाबला बहुत कम है और मौक़े बहुत ज्यादा हैं।'
यह किताब एक ऐसे ही पिता की औलाद होने के कारण, हासिल, निजी अनुभवों का नतीजा है। ये मेरे 'जीन्स' की जीवनी है। बाऊजी को ज़िन्दगी जीते देखना ऐसा था जैसे प्रेरणा देने वाली किसी कहानी को पढ़ना और उनकी डायरी पढ़ना ऐसा था जैसे तीर्थ यात्रा करना। बाऊजी और उनकी डायरी मेरे लिए प्रेरणा स्रोत रहे हैं।
डायरी की शुरुआत एस राधाकृष्णन् के कथन से होती है: 'कभी भी काम को बोझ नहीं समझना चाहिए। जिंदगी को चलायमान रखने का राज़ अच्छा काम है। किसी नतीजे की चाहत ना करें। काम के बिना जिंदगी बर्दाश्त से बाहर होगी।'
काम से हम अपना वक्त पूरा करते हैं। काम हमें पुरस्कृत करता है, मुआवजा देता है, चंचलता देता है। काम संघर्ष पैदा करता है, चुनने का अधिकार देता है, चुनौतियां खड़ी करता है और कशमकश पैदा करता है।
आर्थिक समृद्धि और जहनी सुकून की दोहरी जुस्तुजू के दरमियां, व्यक्ति या संस्थाओं को कौन स्थिरता मुहैया कर सकता है? निजी और वो जिंदगी, जो हम दूसरों के हित में गुजारते हैं, जब दिशा बदल देने वाली पानी की अशांत धारा में होती है, तो मार्ग दिखाने वाला बनकर, कौन हमारी नैया पार लगाता है?
इस किताब की हर घटना हक़ीक़ी जिंदगी से है। यह किताब प्रभावशाली ढंग से जिंदगी के मूल मंत्र के किरदार को रेखांकित करती है। इस दुनिया में फलना फूलना मुमकिन है, खासतौर से विकासशील देशों में, जहाँ बढ़ती हुई तमन्नाओं का इंकलाब और कड़ी प्रतियोगिता तो है लेकिन फिर भी सिद्धांत सुरक्षित हैं। उन सिद्धांतों से चिपके रहने की क्रीमत चुकाना तकलीफ़देह लग सकता है लेकिन यह तकलीफ़ उस तकलीफ़ की तरह है जो एक माँ नए जीवन को दुनिया में लाते हुए महसूस करती है। यह तकलीफ़ अनिवार्य है, ये तकलीफ़ आनंद देने वाली है। यह तकलीफ़ ही वह धुरी है जिसके गिर्द दुनिया घूमती है।
सच्चाई और ईमानदारी सिर्फ़ आदर्श नहीं हैं, जो हाथ आने से बच निकलें। सच्चाई और ईमानदारी बहुत से ऐसे लोगों के जीवित रहने का साजोसामान हैं जिनकी जिन्दगियां असाधारण नहीं लगतीं, इसलिए क्योंकि वो मशहूर नहीं हैं। ऐसे लोग हैं जिनकी कहानियाँ सुनी नहीं गईं क्योंकि लिखी नहीं गईं। ये कहानियाँ एक दौर का, पूरी एक पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये कहानियाँ ख़त्म नहीं हुई हैं। हर पीढ़ी को इन कहानियों की जरूरत होगी। तब, जब, यह पीढ़ियां पूरी तरह सांसारिक और अनैतिक जुस्तुजू से थक जाएँगी या सहनशीलता और समझौते के आदर्श को हासिल कर लेंगी।
ये साधारण जीवन, हो सकता है जाने माने ना हों, प्रचलित सूझ बूझ के अनुसार आलीशान ना हों। आम जीवन अपनी खुद की महदूद दुनिया में सिमटे रहते हैं। कुछ ही पुरुष और महिलाएं ऐसे जीवन के संपर्क में आते हैं। यह लोग वह होते हैं जो अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर गुजारते हैं। उन्होंने आजमाइश और परेशानियों का सामना किया होता है, सदमे उठाए होते हैं, सफलता देखी होती है, लेकिन तैरते रहते हैं क्योंकि उनका मूल तत्व मजबूत होता है। हो सकता है, यह लोग ऐसे मुजस्समे ना हों जिन्हें मान्यता देकर पूजा जाए। लेकिन उनकी जिंदगी प्रेरित करती है, इसलिए क्योंकि वे हर समाज में अस्तित्व में रहने वाली कुछ मज़बूत मान्यताओं का सबूत होती है। ऐसे जीवन उम्मीद देते हैं और हमें उस अदृश्य शक्ति से जोड़े रखते हैं जिसने हमें क़ाबू में रख छोड़ा है।
हर समाज में बहुत से ऐसे लोग होते हैं जो अपने दिल से सोचते हैं और दिमाग़ से महसूस करते हैं। वह ख़ामोशी से काम करते रहते हैं, निस्वार्थ भाव से, पूरी लगन के साथ। अधिकारहीन लोगों की मदद करते वह हमारे आसपास हो सकते हैं। वह दुनिया की नजरों से दूर, जमीन जोत रहे हों या पेड़ों की देखभाल कर रहे हों या निजाम के गुमनाम स्तंभ हों। यह लोग वो हो सकते हैं जो लिख रहे हों पर पढ़े ना जा रहे हों। हो सकता है, इन लोगों ने छोटी मोटी नामालूम सी जंग छेड़ रखी हो। यह वो लोग होते हैं जो अपनी जद्दोजहद से बेपरवाह, हालात से ऊपर उठ जाते हैं। जो अनकही सुन लेते हैं और इससे पहले कि उन से हाथ जोड़कर विनती की जाए अनुकूल उत्तर दे देते हैं। आनंद उनके लिए दौड़ का छोर नहीं होता। आनंद उनके लिए सिद्धि है। इन लोगों ने 'शाही' और 'फ़कीरी' के दरमियां संतुलन बैठा लिया है।
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