| Specifications |
| Publisher: Sanjay Prakashan | |
| Author Rama Mathur | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 225 | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 9x6 inch | |
| Weight 430 gm | |
| Edition: 2024 | |
| ISBN: 9788174532053 | |
| HBD453 |
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आज बदलते परिवेश में वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, समाज-सेवकों, नीति-निर्धारकों, आदि का ध्यान पर्यावरण की ओर आकर्षित हुआ है। वे सभी राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में सामान्य लोगों का भी कर्तव्य बनता है कि वे इस क्षेत्र में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दें। पर्यावरण से सम्बन्ध रखने वाले विभिन्न पहलुओं को जानकर इस दिशा में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है। दस उद्देश्य की पूर्ति में प्रस्तुत पुस्तक अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है। प्रस्तुत पुस्तक में विषय की तारतम्य बनाये रखने के लिए लेखक ने पुस्तक की सामग्री को क्रमिक एवं व्यवस्थित रूप से अध्यायों में विभक्त किया है। उनका यह प्रयास महत्त्वपूर्ण पहलुओं का सार्थक ढंग से आवश्यक परिचय प्राप्त करने में सहायक हैं। सरल व सटीक भाषा का प्रयोग, चित्र, तालिका और तथ्यों की दृष्टि के लिए संबंधित घटनाओं का विश्लेषण पुस्तक को और अधिक प्रभावोत्पादक बनाते हैं।
रमा माथुर ने चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय से 1976 में एम. एस. सी. की उपाधि प्राप्त की सन् 1981 में चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. की डिग्री प्राप्त की। उसके बाद उन्होंने चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य शुरू किया। रमा माथुर का व्यक्तित्व अत्यधिक विनम्र एवं सहनशील हैं। इनकों लेखन सम्पादन आदि में अत्यधिक रुचि है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि करोड़ों वर्षों से उत्पन्न जीवन को आज खतरा उत्पन्न हो गया है। इसका मूल कारण बढ़ती आबादी व तकनीकी और विज्ञान विकास को आधार बनाकर जीवन का उच्च स्तर प्राप्त करने की चाह है। विकास की मानव-केन्द्रित और स्वार्थी विचारधारा ने प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया है। प्रकृति के सुन्दर तन को औद्योगीकरण व प्राकृतिक संसाधनों का जमकर शोषण ने अतिशय कुरूप कर दिया है। आज प्रकृति में व्याप्त जीवन के समस्त रूपों के अस्तित्व को चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। स्थिति अत्यन्त ही भयावह है। मानव द्वारा प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ ने इस विकट संकट को जन्म दिया है। स्वयं अर्जित इस संकट से मुक्ति के लिए सम्पूर्ण मानव जाति को अथक प्रयास करना होगा। इसके लिए मानव को लगातार प्रयास करना होगा। उसे इस सम्बन्ध में प्रसिद्ध लेखक व विचारक विनोवा भावे का यह कथन याद रखना होगा "पत्थर हमेशा आखिरी चोट से टूटता है, लेकिन पहले की चोट बेकार नहीं जाती।"
आज बदलते परिवेश में वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, समाज-सेवकों, नीति-निर्धारकों आदि का ध्यान पर्यावरण की ओर आकर्षित हुआ है। वे सभी राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में सामान्य लोगों का भी कर्त्तव्य बनता है कि वे इस क्षेत्र में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दें। पर्यावरण से सम्बन्ध रखने वाले विभिन्न पहलुओं को जानकर इस दिशा में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है। इस उद्देश्य की पूर्ति में प्रस्तुत पुस्तक अपना महत्त्वपूर्ण योग दे सकती है। प्रस्तुत पुस्तक में विषय का तारतम्य बनाये रखने के लिए लेखक ने पुस्तक की सामग्री को क्रमिक एवं व्यवस्थित रूप से अध्यायों में विभक्त किया है।
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