भारत के स्वतंत्रता संग्राम का तात्पर्य ब्रिटिश शासन से देश को मुक्त करने के लिए देशवासियों द्वारा किये जाने वाले संग्राम को ही माना जाता है। ऐतिहासिक दृष्टि से इसके पूर्व भी देश के विभिन्न भागों में स्वतंत्रता की अनेक लड़ाइयां लड़ी गई थीं।
भारत के पूर्वोत्तर राज्य अपनी वीरता के बलबूते पर, अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने में कामयाब रहे। उस समय जव शेष भारत के अधिकांश हिस्से विदेशी आक्रमणकारियों के अधिकार में आते जा रहे थे तब भी यह भू-भाग स्वतंत्र रहा। असम ने मोहम्मद गौरी की सेना का भी सामना किया और मुगलों की सेना का भी। सन् 1671 में औरंगजेब की सेना के छक्के छुड़ाने वाले अहोम राजा चक्रधर सिंह के वीर सेनापति "लाचित बोरफुकन" को कौन भुला सकता है जिनके नाम से आज भी 'नेशनल डिफेंस एकेडमी' में बेस्ट कैडेट को लाचित वोरफुकन स्वर्ण पदक दिया जाता है।
भारतीयों के अपने अस्तित्व को बचाए रखने के विभिन्न संघर्षों में सबसे बड़ा संघर्ष अंग्रेजों के विरुद्ध ही माना जाता है क्योंकि इसमें अलग-अलग राज्य अपने लिए नहीं वरन् पूरे भारत को विदेशी परतंत्रता से मुक्त करने के लिए एकजुट हो रहे थे। सन् 1857 में बहादुरशाह जफर के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ प्रथम स्वतंत्रता संग्राम तो प्रारंभ हुआ था, परंतु इसी वर्ष 21 सितंबर को मेजर हडसन के सामने मुगल सम्राट के आत्म समर्पण के साथ ही उसका अंत हो गया। 1885 में स्थापित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा संचालित, महात्मा गांधीजी के नेतृत्व में 1920-21 के 'असहयोग आंदोलन' से लेकर 1942 के 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' तक, 'गदर पार्टी' से 'आजाद हिन्द फौज' तक सभी ने अपने-अपने ढंग से स्वतंत्रता आंदोलन की गति को तीव्रता प्रदान की और समस्त देशवासियों को एकता के सूत्र में बांध दिया। सभी स्वातंत्र्य-वीरों के संघर्षों व बलिदानों के परिणामस्वरूप 15 अगस्त, 1947 को (दो देशों/विभाजित रूप में) भारतवर्ष को स्वतंत्रता प्राप्त हुई।
भारत की स्वतंत्रता को समर्पित स्वाधीनता का संग्राम एक ऐसा महान यज्ञ था जिसमें हर भारतीय अस्मिता के प्रति समर्पित राष्ट्रभक्त ने निःस्वार्थ भाव से अपने प्राणों की आहुति दी थी। भारत भूमि पर कोई भी भाग आत्मोत्सर्ग के इस पर्व में पीछे नहीं रहा था। हमारा पूर्वोत्तर जिसे आज हम अष्टलक्ष्मी अर्थात 8 राज्यों के रूप में पहचानते हैं इसके शूरवीरों ने भी स्वतंत्रता संग्राम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई परंतु शेष भारत में प्रायः उनकी चर्चा नहीं हुई। अंग्रेजों के दमन चक्र का शिकार बनने के विरोध में पूर्वोत्तर के स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान का वर्णन करने से पूर्व पूर्वोत्तर चर्चा करना समीचीन होगा। हमारा पूर्वोत्तर जिसका वर्णन रामायण महाभारत और पुराणों से पूर्ववर्ती वैदिक काल में किरात देश के नाम से मिलता है, वह कामरूप और प्रयाग प्राग्ज्योतिषपुर के नाम से विश्व के प्राचीन साहित्य और यात्रा वर्णनों में समृद्ध प्रदेश के रूप में अपना स्थान रखता है।
केवल भारतीय साहित्य नहीं, तीसरी शताब्दी ईसापूर्व से पहली शताब्दी ईसापूर्व के ग्रीक समुद्री व्यापारियों द्वारा लिखित पेरिपल्स एरीथ्रियन समुद्र, जिसे आज एरीट्रियन समुद्र कहते हैं, वर्णनो के (स्क्रोल्स) के 66 वें अध्याय में पूर्वोत्तर भारत का वर्णन करते हुए यहां के (sesatai) "किरातों" का वर्णन किया है जिनके केमलूप (कामरूप) की सीमा रेखा चीन के सिचुआन से गंगा के सागर तट में मिलने वाले समुद्र तक जाती थी। भारत के प्राचीन इतिहास में जिसका विशिष्ट स्थान है वह प्रदेश, आज के 8 राज्यों नहीं, एक समग्र इकाई के रूप में वर्णित है।
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