लेखक परिचय
कुबेरनाथ राय
जन्म: 1955 मत्सा, (गाजीपुर) उत्तर प्रदेश । शिक्षा : काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय में । प्रकाशित रचनाएँ: मराल, प्रिया नीलकण्ठी, रस-आखेटक, गन्धमादन, निषाद बाँसुरी, विषाद योग (आधुनिक चिन्तन), पर्णमुकुट, महाकवि की तर्जनी (रामकथा और वाल्मीकि समस्या के सन्दर्भमें), मणिपुतुल के नाम (गाँधीवादी रस-दृष्टि और शिल्प-दृष्टि पर), किरात नदी में चन्द्रमधु, मनपवन की नौका (बृहत्तर भारत के सांस्कृतिक सन्दर्भ), दृष्टि अभिसार, रामायण महातीर्थम्, त्रेता का बृहत्साम और कामधेनु । उपलब्धियाँ : भारतीय ज्ञानपीठ के मूर्तिदवी पुरस्कार से सम्मानित । प्रिया नीलकण्ठी पर उत्तर प्रदेश शासन की हिन्दी समिति का आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार एवं गन्धमादन और विषाद योग पर विशेष पुरस्कार, पर्णमुकुट पर उत्तर प्रदेश शासन के हिन्दी संस्थान द्वारा 'स्तरित पुरस्कार', महाकवि की तर्जनी पर 'मानस संगम' कानपुर द्वारा प्रदत्त ताम्रपत्र-प्रशस्ति एवं साहित्य पुरस्कार, इसी कृति पर साहित्य अनुसन्धान परिषद् (हनुमान टेम्पल ट्रस्ट) कलकत्ता द्वारा राम-साहित्य पुरस्कार, पुनः इसी कृति पर उत्तर प्रदेश शासन के 'हिन्दी संस्थान' द्वारा प्रदत्त ताम्रपत्र-प्रशस्ति एवं आचार्य शुक्ल पुरस्कार और त्रेता का बृहत्साम भारतीय भाषा परिषद्, कलकत्ता से सम्मानित ।
निधन : 05 जून, 1996 (गाजीपुर, उत्तर प्रदेश)।
पुस्तक परिचय
असुरों का विनाश क्यों हुआ? कौरवों का विनाश क्यों हुआ? मुगलों का विनाश क्यों हुआ? इसलिए कि काल क्रम से उनके जीवन में मौज-शौक़ ही प्रधान हो गया। उनमें रचनात्मक तत्त्व समाप्त हो गये। न केवल दैनिक जीवन में बल्कि कला और चिन्तन के आदर्शों में भी वे भोगवादी हो उठे। भगवान रामचन्द्र में रावण से कौन-सी अधिक विशेषता थी? तेजस्वी, विद्वान, महापण्डित, परम साधक महात्मा रावण किस तत्त्व के प्रभाव में पराजित हुआ? वह तत्त्व था रचनात्मक दृष्टि और आदर्श-पालन। राम में यह तत्त्व था, रावण में नहीं। एक अकेला, विपत्ति का मारा, वन-वन ठोकरें खाने वाला साधन-हीन व्यक्ति आदर्श से विचलित न होकर एक बड़ी-सी सेना इकट्ठी कर लेता है। किष्किन्धा और लंका जैसे शक्तिशाली राज्यों को जीत लेता है। फिर भी उन्हें अपने साम्राज्य का अंग न बनाकर शत्रुओं के सगे-सम्बन्धियों को दे देता है। रावण शुद्ध ब्राह्मण वंश-जात था और व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास को पाकर भी रचनात्मक दृष्टि को न पा सका। अतः उसकी पराजय हुई।|
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