SALE CLOSES IN

Easy Returns
Easy Returns
Return within 7 days of
order delivery.See T&Cs
1M+ Customers
1M+ Customers
Serving more than a
million customers worldwide.
25+ Years in Business
25+ Years in Business
A trustworthy name in Indian
art, fashion and literature.

गीता सब के लिए सब काल में- Gita Sab Ke Liye Sab Kaal Mein (Set of 3 Volumes)

$117.45
$174
10% + 25% off
Includes any tariffs and taxes
Specifications
Publisher: Motilal Banarsidass Publications, Delhi
Author Shyam Shankar Shukla
Language: Hindi
Pages: 2210 (With B/W Illustrations)
Cover: HARDCOVER
9.5x6.5 inch
Weight 3.25 kg
Edition: 2025
ISBN: 9789349939073
HBZ488
Delivery and Return Policies
Usually ships in 3 days
Returns and Exchanges accepted within 7 days
Free Delivery
Easy Returns
Easy Returns
Return within 7 days of
order delivery.See T&Cs
1M+ Customers
1M+ Customers
Serving more than a
million customers worldwide.
25+ Years in Business
25+ Years in Business
A trustworthy name in Indian
art, fashion and literature.
Book Description

प्राक्कथन

संसार को भवसागर कहा जाता है क्योंकि यह जन्म और मरण के चक्र का सप्रतीक है, जिसमें जीव निरंतर फैसता रहता है। इसे समुद्र के समान असीम, गहरा, और कठिनाई से पार करने योग्य माना गया है। जैसे समुद्र में लहरें कभी स्थिर नहीं रहतीं, वैसे ही संसार में भी परिवर्तन की प्रक्रिया लगातार चलती रहती है। धन-संपत्ति, सुख-दुःख, मान-अपमान, हानि-लाभ, जन्म-मरण-ये सभी अनवरत बदलते रहते हैं, और कोई भी व्यक्ति इनसे अछूता नहीं रह सकता।

संसार में माया और मोह का ऐसा प्रवाह है कि इसमें फँसकर जीव अपने असली स्वरूप को भूल जाता है और भौतिक पदार्थों में आसक्ति के कारण इस चक्र से बाहर नहीं निकल पाता। जैसे समुद्र में गिरा व्यक्ति उसकी धारा में बहने लगता है, वैसे ही यह संसार भी जीव को अपनी आकर्षक परतों में बाँधकर उसकी चेतना को भटका देता है। इच्छाएँ और तृष्णाएँ समाप्त होने का नाम नहीं लेतीं, एक पूरी होती नहीं कि दूसरी उत्पन्न हो जाती है। जो व्यक्ति इन इच्छाओं को पूरा करने के लिए संसार के पीछे भागता है, वह अंततः असंतोष और दुःख को ही प्राप्त करता है। समुद्र का जल पीने से प्यास नहीं बुझती, बल्कि और अधिक बढ़ जाती है। उसी प्रकार संसार के भौतिक सुख भी क्षणिक संतोष तो देते हैं, लेकिन अंततः यह अनुभव होता है कि वे वास्तविक सुख नहीं थे, बल्कि केवल भ्रम मात्र थे।

संसार को भवसागर कहने का एक और कारण यह है कि इसे पार कर पाना अत्यंत कठिन है। जैसे समुद्र पार करने के लिए एक मजबूत नाव और कुशल नाविक की आवश्यकता होती है, वैसे ही संसार रूपी भवसागर को पार करने के लिए ज्ञान, भक्ति, और गुरु कृपा की जरूरत होती है। श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि यह माया अत्यंत दुस्तर है, लेकिन जो मेरी शरण में आते हैं, वे इसे पार कर जाते हैं। बिना आत्मज्ञान और ईश्वर की कृपा के इस संसार को समझ पाना और इसके भ्रमजाल से बाहर निकल पाना संभव नहीं होता।

समुद्र में मगरमच्छ और भयंकर जीव होते हैं, जो उसमें गिरने वाले को निगल जाते हैं। इसी प्रकार संसार में भी काम, क्रोध, लोभ, मोह, और अहंकार जैसे विकार हैं, जो जीव की आध्यात्मिक प्रगति को रोककर उसे बार-बार जन्म-मरण के चक्र में डालते रहते हैं। यह संसार आकर्षण से भरा हुआ है, लेकिन यह आकर्षण जीव को अपने वास्तविक लक्ष्य से भटकाने वाला होता है। जो व्यक्ति केवल भौतिक वस्तुओं और सुखों की ओर ही आकर्षित रहता है, वह अंततः इस भवसागर में डूब जाता है।

इस भवसागर से पार जाने का मार्ग भी शास्त्रों में बताया गया है। जो व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करता है, आत्मा और परमात्मा के सत्य को समझता है, और निष्काम कर्म करता है, वह धीरे-धीरे इस संसार के बंधन से मुक्त होने लगता है। भक्ति योग, ज्ञान योग, और सत्संग इसके प्रमुख साधन हैं। जब व्यक्ति अपनी इच्छाओं को नियंत्रित कर ईश्वर के शरणागत हो जाता है, तब वह भवसागर को पार कर जाता है। इसी कारण संतजन हमेशा संसार से वैराग्य और आत्मबोध की ओर बढ़ने का उपदेश देते हैं, क्योंकि यही इस अनंत संसार से मुक्ति का एकमात्र उपाय है।

शास्त्रों का उद्देश्य मानव जीवन को सही दिशा प्रदान करना है। यह जीवन को नैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाने के लिए मार्गदर्शन करते हैं। यह चार पुरूषार्थों अर्थात धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की बात करते हैं। धर्म जीवन के नैतिक और आध्यात्मिक नियमों का पालन करने का उपदेश देता है। यह सत्य, अहिंसा, करुणा, परोपकार, और न्याय को जीवन का आधार मानता है। धर्म यह सिखाता है कि व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, चाहे वे व्यक्तिगत हों, सामाजिक हों या आध्यात्मिक। अर्थ का तात्पर्य है न्याय और ईमानदारी से जीवन-निर्वाह के साधन अर्जित करना। यह सिखाता है कि धन का अर्जन और उपयोग समाज और परिवार के कल्याण के लिए होना चाहिए।

यह अनैतिक तरीकों से धन संचय से बचने और संतुलित जीवन जीने पर जोर देता है। काम का अर्थ है इच्छाओं और भावनाओं की पूर्ति। धर्म शास्त्र सिखाते हैं कि इच्छाओं को संयम और मर्यादा में रखते हुए पूरा किया जाना चाहिए। अनियंत्रित इच्छाएँ व्यक्ति और समाज के लिए समस्याएँ उत्पन्न करती हैं, जबकि संयमित इच्छाएँ संतुलन और सुख लाती हैं। इसका अर्थ है आत्मा का माया, अहंकार और अज्ञान से मुक्त होना। धर्म शास्त्र आत्मा की शुद्धता, आत्मज्ञान और ईश्वर से एकात्मकता को अंतिम लक्ष्य मानते हैं। यह सिखाते हैं कि जीवन में संतुलन और शांति पाने के लिए व्यक्ति को अपने भीतर की यात्रा करनी चाहिए।

शास्त्रों के प्रमुख सिद्धांत हैंः सत्य का पालन करना और किसी भी प्राणी को हानि न पहुँचाना, इच्छाओं और क्रियाओं में संयम रखना, समाज और जीव मात्र के कल्याण के लिए कार्य करना, फल की चिंता किए बिना अपने कर्तव्यों का पालन करना और जीवन में आध्यात्मिकता और भक्ति का समावेश करना। सभी शास्त्र यह सिखाते हैं कि मनुष्य को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, दूसरों के प्रति करुणा और दया रखनी चाहिए, और आत्मज्ञान के मार्ग पर चलना चाहिए। इन सिद्धांतों का पालन कर ही जीवन में शांति, संतुलन, और मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।

मनुष्य जीवन अनेक उद्देश्यों और लक्ष्यों से भरा हुआ है। समय के साथ हमारे लक्ष्य बदलते रहते हैं, परंतु परम लक्ष्य शाश्वत होता है-सच्चिदानंद की अनुभूति, आत्म-साक्षात्कार, भगवत्प्राप्ति और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति। इस परम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सनातन शास्त्रों में चार प्रमुख मार्ग बताए गए हैं-कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग और शरणागति। ये सभी मार्ग पुरुषार्थ और भगवत्कृपा के संयोग से सिद्ध होते हैं। मनुष्य के जीवन का सार यह है कि वह अपने कर्तव्यों को इस प्रकार निभाए जिससे उसका परमार्थ सिद्ध हो। धर्म का बाह्य आचरण तभी सार्थक होता है जब वह भगवत्स्मरण, अनन्य भक्ति और समर्पण से जुड़ा हो।

**Contents and Sample Pages**








































Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at help@exoticindia.com
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through help@exoticindia.com.
Add a review
Have A Question
By continuing, I agree to the Terms of Use and Privacy Policy
Book Categories