| Specifications |
| Publisher: Rajasthani Granthagar, Jodhpur | |
| Author Mahendra Singh Tanwar | |
| Language: Rajasthani And Hindi | |
| Pages: 864 (Color Illustrations) | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 10x8 inch | |
| Weight 1.69 kg | |
| Edition: 2024 | |
| ISBN: 9789348239167 | |
| HBH313 |
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डॉ. तंवर, पिछले दो दशक से संस्कृति और विरासत को संरक्षित करने के लिए गहन शोध कार्य कर रहे हैं। डॉ. तंवर द्वारा मारवाड़ की और ओरण, गोचर भूमि जल स्रोतों और पर्यावरण पर गहन अनुसंधान कर इनके दस्तावेजीकरण का महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पादित किया गया है। वर्तमान में आप महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केन्द्र में सहायक निदेशक पद पर कार्यरत है। शोध केन्द्र में अभिलेखीय दस्तावेजों का विशाल संग्रह उपलब्ध है जिसका डिजिटलीकरण आपके कुशल निर्देशन में हुआ है। इसके अतिरिक्त बीकानेर अभिलेखागार में संगृहीत जोधपुर रेकार्ड्स की डिजिडाईज्ड करवाने में आपकी महत्ती भूमिका रही है। डॉ. तंवर पश्चिमी राजस्थान व मारवाइ से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दस्तावेजों को प्रकाश में लाने के लिए पूर्ण रूप से समर्पित होकर कार्य कर रहे हैं। विभिन्न खांपों के गौरवशाली इतिहास लेखन में आपकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
हिंदुस्तान के इतिहास में करमसोतों ने अफगानिस्तान से आए मुसलमान घुसपैठियों से लगातार युद्धरत रहते हुए कई बलिदान दे कर अपने नागरिकों को सुरक्षित रखा।
मेरे पूर्वज राव करमसीजी, राव पंचायन जी, ठाकुर हरनाथ सिंह जी, ठाकुर उदय सिंह जी और ठाकुर जोरावर सिंह जी खिलजी, मुगलों और पठानों से राष्ट्र की रक्षार्थ युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
राव करमसी जी नारनौल के ढोंसी के युद्ध में 86 वर्ष की आयु में युद्ध करते हुए काम आए। उनकी इसी परम्परा को निभाते हुए उनके वंशजों ने निरन्तर युद्धों में बलिदान दिया। खींवसर मारवाड़ का प्रथम श्रेणी का ठिकाना, सिरायत के कुरब और राजा की पदवी से विभूषित है।
मेरे दादोसा ठाकुर साहब केशरी सिंह जी एक इतिहासकार थे। वृद्धावस्था में उन्होंने बहुत परिश्रम कर करमसोतों के इतिहास लेखन की सामग्री का संकलन अनेक रजवाड़ों और ठिकानों से मंगवाया और उनके नोट्स तैयार करवाए। मुझे हर्ष है कि आज वीर करमसोतों के गौरवमय इतिहास का संकलन पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो रहा है। प्रिय आदरजोग दादोसा के स्वप्न को पूर्ण कर मैंने मेरा फर्ज निभाया है।
इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ के प्रकाशन के लिए मरुधराधीश बापजी हुकम ने अपना शुभकामना संदेश भिजवाया, इसके लिए मैं उनके प्रति भी अपनी कृतज्ञता प्रकट करता हूँ। बापजी हुकम और महारानी साहिबा हुक्म का सदैव हमारे परिवार के प्रति अपनत्व और प्रेम का भाव रहा है।
संसार में जिसका इतिहास नहीं उसका कोई मोल नहीं, अतः इसी गौरवमय इतिहास के अनछुए पहलुओं के मोतियों को पिरोकर कांतिमय माला पिरोने का सौभाग्य पाकर आज मैं अपने आपको धन्य महसूस कर रहा हूँ। अपने पूर्वजों और कुटुम्ब के गौरवमयी राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत राव करमसी जोधावत के वंश के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास को लिपिबद्ध कर प्रकाशित करने का सौभाग्य पाकर मैं धन्य हो गया। साथ ही अद्भुत गौरवशाली हजारों हजार आशीषों का भागी बनाने के लिए सर्वप्रथम मैं अपने पूज्य पिताश्री और मातुश्री को सादर वंदन करता हूँ। आपके ही आशीर्वाद और प्रोत्साहन से आज मेरे पूज्य दादोसा ठाकुर केसरीसिंहजी के स्वप्न को साकार रूप दे पाया हूँ।
सूर्यवंशी क्षत्रियों की शाखा में राष्ट्रकूट (राठौड़) हुए हैं जिनके वंशज राव सीहा ने मारवाड़ में 13वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में राठौड़ सत्ता की स्थापना की और इन्हीं की 15वीं पीढ़ी में राव जोधाजी हुए जिन्होंने जोधपुर की स्थापना कर राठौड़ साम्राज्य को स्थायित्व प्रदान किया। राव जोधाजी के पुत्रों ने अपने-अपने नाम से कई नगर और राज्यों की स्थापना की, राव बीकाजी ने बीकानेर, दूदा ने मेड़ता और राव करमसीजी ने खींवसर में राठौड़ सत्ता स्थापित कर ठिकाना बांधा।
राव करमसीजी के वंशज करमसोत राठौड़ कहलाये। इनके वंशजों ने मारवाड़, बीकानेर, किशनगढ़ और अन्य रियासतों में अपने ठिकाने स्थापित किये। पाटवी ठिकाना खींवसर के सुयोग्य उत्तराधिकारी राजा गजेन्द्रसिंहजी ने पाटवी होने के नाते अपने पूर्वजों के गौरवमय इतिहास के लेखन की जिम्मेदारी का पाटवी होने के नाते बखूबी निर्वाह करते हुए 'करमसोत राठौड़ों का गौरवमय इतिहास' लेखन का कार्य प्रारम्भ करवाया। आपके सहयोग एवं मार्गदर्शन के सुफल से आज यह इतिहास ग्रंथ पूर्ण होकर आपके सम्मुख प्रस्तुत करते हुए बहुत हर्ष की अनुभूति हो रही है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे इस वीर स्वाभिमानी जाति के इतिहास को लिखने का सुअवसर मिला।
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