तेजिन्दर की चर्चा आज के दौर के उन महत्त्वपूर्ण उपन्यासकारों में होती है जो सामाजिक विसंगतियों की चुनौती को स्वीकार कर, उन पर लिखना पसन्द करते हैं।
उपन्यास की विशेषता है उसका सधा हुआ शिल्प तथा दारुण स्थितियों के बीच की चुप्पी को तोड़कर चीखता हुआ एक सवाल - "यह रूल कौन बनाता है ?" तेजिन्दर ने मिसेज़ खोब्रागड़े के माध्यम से इस सवाल का जवाब तलाशने की एक गम्भीर और सार्थक कोशिश की है जो पाठकों की संवेदना को भीतर तक झकझोर कर रख देती है।
तेजिन्दर अपने समय के बेहद जरूरी सवालों से पलायन नहीं करते बल्कि अपने पात्रों के साथ चलते हुए उनकी तह तक जाते हैं। यही कारण है किं उनके उपन्यास में एक तरह की 'बोल्डनेस' अन्तर्निहित है।
पाठकों को समर्पित है आज के दलित विमर्श को नये और रोचक ढंग से सफलतापूर्वक प्रस्तुत करनेवाला यह लघु उपन्यास 'हैलो सुजित...'।
जन्य: 10 मई 1951, जालन्धर में।
पहले अख़बारों में नौकरी की, फिर बैंक में।
लगभग दस वर्ष भारतीय सूचना सेवा में रहने के बाद दूरदर्शन केन्द्र, नागपुर में निदेशक पद पर नियुक्ति।
प्रकाशित कृतियाँ : 'वह मेरा चेहरा', 'काला
आज़ार', 'उस शहर तक', 'काला पादरी' और 'हैलो सुजित...' (उपन्यास); 'घोड़ा बादल', 'बच्चे अलाव ताप रहे हैं' (कहानी संग्रह)।
'वह मेरा चेहरा' पर मध्य प्रदेश शासन साहित्य परिषद का अकादमी पुरस्कार, मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन का वागीश्वरी पुरस्कार। इसी पुस्तक का
पंजाबी तथा अँग्रेज़ी में अनुवाद । कविताओं का अनेक भारतीय भाषाओं तथा अँग्रेज़ी में अनुवाद प्रकाशित ।
उड़ीसा के कालाहांडी तथा बलांगीर के सूखाग्रस्त क्षेत्रों की यात्रा पर आधारित 'डायरी सागा-सागा' तथा 'टिहरी के बहुगुणा' पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य ।
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