इस विषय (मसला) पर मैंने जो बीस अध्याय (बाब) लिखे हैं, उन्हें पाठकों के सामने रखने की मैं हिम्मत करता हूँ।
जब मुझसे रहा हीं नहीं गया तभी मैंने यह लिखा है। बहुत पढ़ा, बहुत सोचा। विलायत में ट्रान्सवाल डेप्युटेशन के साथ मैं चार माह रहा, उस बीच हो सका उतने हिन्दुस्तानियों के साथ मैंने सोच-विचार किया, हो सका उतने अंग्रेजों से भी मैं मिला। अपने जो विचार मुझे आखिरी मालूम हुए, उन्हें पाठकों के सामने रखना मैंने अपना फर्ज समझा।
इण्डियन ओपीनियन के गुजराती ग्राहक़ आठ सौ के करीब हैं। हर ग्राहक़ के पीछे कम से कम दस आदमी दिलचस्पी से यह अखबार पढ़ते हैं, ऐसा मैंने महसूस किया है। जो गुजराती नहीं जानते, वे दूसरों से पढ़वाते हैं। इन भाइयों ने हिन्दुस्तान की हालत के बारे में मुझसे बहुत सवाल किये हैं। एसे हीं सवाल मुझसे विलायत में किये गये थे। इसलिए मुझे लगा कि जो विचार मैंने यों खानगी में बताये, उन्हें सबके सामने रखना गलत नहीं होगा।
जो विचार यहाँ रखे गये हैं, वे मेरे हैं और मेरे नहीं भी हैं। वे मेरे हैं, क्योंकि उनके मुताबिक बरतने की मैं उम्मीद रखता हूँ; वे मेरी आत्मा में गढ़े-जड़े हुए जैसे हैं। वे मेरे नहीं हैं, क्योंकि सिर्फ़ मैंने हीं उन्हें सोचा हो सो बात नहीं। कुछ किताबें पढ़ने के बाद वे बने हैं। दिल में भीतर हीं भीतर में जो महसूस करता था, उसका इन किताबों ने समर्थन (ताईद) किया।
यह साबित करने की जरूरत नहीं कि जो विचार मैं पाठकों के सामने रखता हूँ, वे हिन्दुस्तान में जिन पर (पश्चिमी) सभ्यता की धुन सवार नहीं हुई है एसे बहुतेरे हिन्दुस्तानियों के हैं। लेकिन यही विचार यूरोप के हजारों लोगों के हैं, यह मैं अपने पाठकों के मन में अपने सबूतों से ही जंचाना चाहता हूँ। जिसे इसकी खोज करनी हो, जिसे एसी फुरसत हो, वह आदमी वे किताबें देख सकता है। अपनी फुरसत से उन किताबों में से कुछ न कुछ पाठकों के सामने रखने की मेरी उम्मीद है।
इण्डियन ओपीनियन के पाठकों या औरों के मन में मेरे लेख पढ़ कर जो विचार आये, उन्हें अगर वे मुझे बतायेंगे तो मैं उनका आभारी रहूँगा।
उद्देश्य सिर्फ देश की सेवा करने का और सत्य की खोज करने का और उसके मुताबिक बरतने का है। इसलिए अगर मेरे विचार गलत साबित हों, तो उन्हें पकड़ रखने का मेरा आग्रह नहीं है। अगर वे सच साबित हों तो दूसरे लोग भी उनके मुताबिक बरतें, एसी देश के भले के लिए साधारण तौर पर मेरी भावना रहेगी।
सुमीते के लिए लेखों को पाठक और संपादक के बीच के सम्वाद का रूप दिया गया है।
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