हिन्दी पत्रकारिता बहु आयामी है। केवल समाचार देना हिन्दी पत्रकारिता का उद्देश नहीं रहा । 'समाचार और विचार' दोनों को समन्वित करते हुए हिन्दी पत्रकारिताने जनजीवन के सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, शैक्षिक, राजनीतीक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक पहलुओं एवं समस्याओं को पत्रकारिता की परिधि में समाविष्ट किए है। पत्रकारिता एवं साहित्य को लेकर तरह-तरह के विवाद उपिस्थत किए गये हैं किन्तु हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकारों एवं समर्पित पत्रकारों का अभिमत यही रहा कि 'सर्वोत्तम पत्रकारिता साहित्य है और सर्वात्तम साहित्य पत्रकारिता है'। बर्नाड शो ने भी इस बात का समर्थन किया कि कुशल पत्रकार साहित्यकार से भिन्न नहीं है। अगर साहित्य का कार्य विश्व को ठीक से देखना और परखना है, तो पत्रकारिता का भी पहला कार्य यही है।
दरअसल साहित्य और पत्रकारिता दोनों ही शब्दसेवी हैं। पत्रकारिता भी मानवजीवन में मूल्यों की स्थापना एवं प्रतिष्ठापन के लिए 'साहित्य की सहगामिनी' बन सकती है, जैसा कि स्वातंत्र्योत्तर काल में एक 'मिशन' के रूप में उसने अपना राष्ट्रधर्म निभाया था। लोकरक्षण, लोकरंजन के साथ-साथ लोकशिक्षण एवं संस्कार अभिसंचन का भी कर्तव्य अदा किया था । स्वातंत्र्य-संग्राम में देशवासियों को जगाने तथा राष्ट्रप्रेम को मजबूत करते हुए अंग्रेजों के दमन और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने में हिन्दी पत्रकारिता की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी। अनेक पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादक, स्तंभकार एवं लेखक हिन्दी के समर्थ साहित्यकार थे । हिन्दी गद्य-शैलियों एवं साहित्यिक विधाओं के विकास में इन साहित्यकारों -पत्रकारों का मूल्यवान योगदान था । भारतेन्दु से लेकर आज तक के हिन्दी एवं हिन्दीतर प्रदेश के साहित्यकारों एवं पत्रकारोंने साहित्य की समृद्धि एवं श्रीवृद्धि में उल्लेखनीय प्रदान किया है। हिन्दी के पाठक इन साहित्यसेवियों एवं पत्रकारों के नाम काम से सुपरिचत हैं अतः नाम-परिगणन के आकर्षण से मैं मुक्त रहता हूँ ।
आज का युग संचारक्रान्ति का युग है। वर्तमान पत्रकारिता साहित्य के प्रसारण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। चाहे 'हिन्दुस्तान' हो या 'नवभारत टाइम्स', 'दैनिक जागरण' हो या 'अमर उजाला', हिन्दी के अग्रणी समाचार पत्रों में रविवारीय परिशिष्ट (पूर्ति) के द्वारा साहित्य के प्रकाशन, प्रसारण एवं उन्यन को पूरा महत्त्व दिया गया है।
'हिन्दी पत्रकारिता का बर्तमान' में डॉ. सिद्धेश्वर काश्यपने जो चिंता व्यक्त की है, इसे हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते । "वस्तुतः पत्रकारिता एक स्वतंत्र कर्म है, व्यवसाय है, धंधा है, जब कि साहित्य मिशन है, चाहे 'व्यसन' हो, किन्तु धंधा नहीं। हाँ, धंधा बनाने का उपक्रम जारी है । साहित्य और पत्रकारिता को राजनीतिकरण, पाश्चात्य की अनुकृति एवं अश्लीलता के कुप्रभाव से सुरक्षित रखना भी उतना ही आवश्यक है ।
हिन्दी साहित्य अकादमी, गुजरात के तत्वावधान में हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता पर 13-14 अक्टूबर 2001 को द्विदिवसीय संगोष्ठी का आयोजन हिन्दी-गुजराती के सुप्रसिद्ध साहित्यकार और पत्रकार डॉ. चन्द्रकान्त मेहता के संयोजकत्व में हीरामणि इन्स्टिटयूट ऑफ मीडिया एज्युकेशन एन्ड रिसर्च, अहमदाबाद के सभागृह में आयोजित किया गया था। विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. संजीव भानावत, अध्यक्ष जनसंचार केन्द्र, राजस्थान विश्वविद्यालय उपस्थित रहे ।
संगोष्ठी का उद्घाटन गुजरात विधानसभा के विधायक एवं पूर्व उपमुख्यमंत्री श्री नरहरिभाई अमीन ने किया। उद्घाटन सत्र के आरंभ में डॉ. मेहताने 'हिन्दी साहित्यिक पत्रकारिता' संगोष्ठी का उद्देश्य एवं स्वरूप स्पष्ट किया । अकादमी एवं उक्त संगोष्ठी के अध्यक्ष तथा हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार डॉ. अम्बाशंकर नागर ने अपने प्रबचनमें हिन्दी साहित्य अकादमी के कार्यकलापों की बात करते हुए बताया कि हिन्दी साहित्यिक-पत्रकारिता पर संगोष्ठी का आयोजन करना एक नया प्रयास है। गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष एवं गुजराती-हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. भोलाभाई पटेलने हिन्दी भाषा एवं साहित्य स्वरूपों तथा गद्य शैलियों के विकास में हिन्दी साहित्यिक पत्रकारिता के योगदान का उल्लेख किया। डॉ. संजीव भानावत ने कहा कि पत्रकारिता केबल खास आदमियों के नहीं, आम आदमियों के बारे में भी लिखे, जो समाज के किसी न किसी कोने में आदमी के साथ आदमी का दायित्व निभा रहे है। वही समाज के दर्पण है। यही साहित्यिक पत्रकारिता है। संगोष्ठी की प्रथम बैठक का विषय था साहित्यिक पत्रकारिता अवधारणा । इस बैठक की अध्यक्षता डॉ. भोलाभाई पटेलने की और संयोजकत्व गुजरात विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के रीडर डॉ. आलोक गुप्त ने किया । अकादमी के सचिव श्री कन्हैयालाल पंड्या ने आभार-दर्शन किया । द्वितीय बैठक डॉ. संजीव भानावत की अध्यक्षता एवं गुजरात विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की अध्यक्षा डॉ. रंजना अरगडे के संयोजकत्व में सम्पन्न हुई, जिसका विषय था 'स्वातंत्र्य पूर्व की हिन्दी साहित्यिक पत्रकारिता उद्भव एवं विकास' ।
द्वितीय दिवस की संगोष्ठी गुजराती साहित्य परिषद के अध्यक्ष एवं गुजराती-हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. रघुवीर चौधरी की अध्यक्षता एवं श्रीमती सोनल पंड्या (अध्यापिका, पत्रकारिता विभाग, गुजरात विश्वविद्यालय) के संयोजकत्व में आयोजित हुई, जो स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी-साहित्यिक-पत्रकारिताः बदलती विशाएँ पर केन्द्रित थी। समापन सत्र की अध्यक्षता अकादमी के उपाध्यक्ष रघुनाथ भट्ट ने की। मुख्य अतिथि के रूप में उत्तर गुजरात विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति एवं हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. महावीर चौहान तथा अतिथि विशेष के रूप में गुजरात विश्विवद्यालय के गुजराती विभाग के आचार्य एवं अध्यक्ष, सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. कुमारपाल देसाई उपस्थित रहे। इस अन्तिम सत्रका संयोजन डॉ. नवनीत ठक्करने किया एवं आभार-दर्शन सौराष्ट्र विश्विवद्यालय के हिन्दी विभाग के रीडर डॉ. गिरीश त्रिवेदी ने किया ।
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