व्याकरण की सुदृढ़ नींव पर निर्मित भाषा का भवन चिरकाल तक स्थिर रहता है। इसलिए भाषा के सम्यक ज्ञान हेतु व्याकरण का ज्ञान आवश्यक है। इसी विचार से अपने नाम के अनुरूप प्रस्तुत पुस्तक 'हिन्दी रचना सागर' की रचना की गई है।
प्रस्तुत पुस्तक शब्द विभाग, शब्द रचना, शब्द भेद, वाक्य विभाग, रचना विभाग आदि पाँच खण्डों में विभाजित की गई है, जिसमें हिन्दी भाषा से सम्बन्धित उन सभी बातों को समाविष्ट करने का प्रयास किया गया है, जिनकी जानकारी इस वय और स्तर के विद्यार्थियों को होनी चाहिए।
व्याकरण एवं भाषा ज्ञान की पुस्तक प्रायः शुष्क और नीरस होती है, परन्तु इस पुस्तक में हिन्दी व्याकरण एवं भाषा ज्ञान से सम्बन्धित सम्पूर्ण सामग्री को अधिकाधिक उदाहरण देकर व्याकरण को सरस, सरल, बोधगम्य एवं रोचक बनाने का भरसक प्रयत्न किया गया है। पुस्तक में विद्यार्थियों को भाषा के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दोनों पक्षों में कुशलता प्राप्त कराने का लक्ष्य रखा गया है।
प्रस्तुत पुस्तक के प्रकाशन में 'अनुपम प्रकाशन' के व्यवस्थापकों के प्रति विशेष आभारी हूँ जिन्होंने पुस्तक की रचना और प्रकाशन में अपना पूर्ण सहयोग प्रदान किया और उत्तम प्रकाशन कर विद्यार्थियों के सम्मुख पुस्तक को लाने की व्यवस्था की।
पुस्तक को पूर्ण रूपेण छात्रोपयोगी बनाने का प्रयास किया गया है, फिर भी इसे अधिक उपयोगी बनाने हेतु सुविज्ञ शिक्षकों एवं पाठकों से रचनात्मक सुझाव सहर्ष आमंत्रित हैं।
आशा है कि मेरा यह प्रयास शिक्षक एवं छात्र वर्ग के लिए उपादेय सिद्ध होगा। यदि यह पुस्तक विद्यार्थियों के शब्द ज्ञान एवं शब्द भण्डार में वृद्धि कर उन्हें शुद्ध लिखने के लिए प्रोत्साहित कर सका तो अपने प्रयास को सार्थक समझेंगा।
छात्रों एवं छात्राओं के उत्कृष्ट भविष्य हेतु मेरी शुभकामनाएँ।
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