भाषाशास्त्र में लिखा है की, सांस्कृतिक विरासत का महत्त्वपूर्ण वाहन है भाषा। भाषा के माध्यमसे विरासत की धारा नित्य बहती जाती है। भारतीय एकात्मताका अक्षुण्य संचार होने के लिये विविध प्रांतों में बोली जानेवाली भाषाओं का ज्ञान होना जरूरी है। इस भावना से नरवणेजी ने अनेक बार भारतभ्रमण किया और सोलाह भाषाओं का व्यवहार कोश ग्रथित किया। व्यवहार कोश का लोकार्पण भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरूजी ने २१ फरवरी १९६१ के दिन किया। तत्कालीन राष्ट्रपती डॉ. राजेंद्रप्रसादजी ने नरवणेजी के इस बहुमोल कार्य की सराहना की।
इस कोशको राष्ट्रपती पुरस्कार तथा अखिल भारतीय साहित्य परिषद का पुरस्कार प्राप्त हुआ। लखनऊ में 'सौहार्द सन्मान' नामक पुरस्कार से उनका गौरव हुआ। महाराष्ट्र शासन ने भी 'छत्रपती शिवाजी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार' प्रदान करके उनको सम्मानित किया।
भारतीय व्यवहार कोश पुरा करने के पश्चात् नरवणेजीने 'भारतीय कहावत संग्रह' नामक त्रिखंडात्मक कोश का भी निर्माण किया। आंतरभारती तथा भाषिक समरसता का साधन बने हुए इस कोश में समान अर्थ की चौदह भारतीय भाषाओं की कहावतों का सुसंस्कारित रुप है।
रत्नागिरी, वडोदरा और पुणे में अपना जीवनकाल व्यतित करने के बाद २००३ में पुणे में उनका देहान्त हुआ।
इस प्रकार भाषज्ञान से ही भारतकी एकात्मता का साक्षात्कार हम कर लें। इस सिद्धि को पाते ही दूसरों की भाषा के प्रति विद्वेष की भावना मन में पैदा तक नहीं होगी और भाषिक सहिष्णुता के पथपर हम अतिवेग से अग्रसर होंगे।
भारत की भाषाओं का परिचय हमें सुलभता से हो और अन्यान्य प्रान्तों में जाने के बाद सर्व क्षेत्रों में हम अपना व्यवहार आसानी से निभा सकें, एतदर्थ भारतीय व्यवहार कोश का निर्माण करके अन्य भाषाओं को व्यावहारिक स्तर पर जानने की पहली सीढ़ी तैयार करने का प्रयास हम ने किया है।
किसी भी भाषा, स्थान या व्यक्ति से जैसे जैसे हमारा परिचय बढता है, हम एक दुसरे के सानिध्य में रहते है, वैसे वैसे हमारे दरमियान खड़ी भिन्नता की दीवार टूटती जाती है। परिचय से प्रेम का भाव बढ़ता है और वैमनस्य का भाव घटता जाता है। एक दूसरे के आचार-विचार को जानने से एकात्मता की भावना प्रबल होती है। इस उदात्त हेतू स्वर्गीय विश्वनाथ दिनकर नरवणेजी ने अपरिमित कष्ट उठाकर १९६१ में उस समय मान्यताप्राप्त जो सोलह भाषा थी, उन भाषाओंमे व्यवहार कोश का निर्माण किया। इस प्रयास को तत्कालीन राष्ट्रपती डॉ. राजेंद्रप्रसाद और प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरुजी इन्होंने सराहा था। वर्तमान परिस्थिती में एकात्मता का भाव दृढ करने के लिये यह व्यवहार कोश समाज के सामने लाने हेतु भाविसा उसे पुनः प्रकाशित कर रही है। आज और छह भाषाओंको मान्यता मिली है। भविष्य काल में इन छह भाषाओं में व्यवहार कोश तयार करने का भाविसाका मानस है।
इस व्यवहार कोश का पुनर्मुद्रण करने के लिये माननीय रविंद्र संघवीजी ने आर्थिक साहाय्य किया है। उनके प्रति भाविसा कृतज्ञ है।
आशा है, समाज इस व्यवहार कोश का स्वागत करेगा।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist