पुस्तक परिचय
सूचना प्रौद्योगिकी आधुनिक युग का सबसे बड़ा वरदान है, जिसे मनुष्य ने अपने परिश्रम और अन्वेषणकारिणी बुद्धि से विकसित किया है। यह ऐसा क्रांतिकारी विज्ञान है, जिसने हमारे जीवन को एक साथ बड़ी तीव्र गति से बदल दिया है। जैसा कि हम सब जानते हैं. 'सूचना प्रौद्योगिकी' एक ऐसा अनुशासन है, जिसमें सूचना का संचार अथवा आदान-प्रदान त्वरित गति से, दूरस्थ समाजों में, विभिन्न तरह के साधनों तथा संसाधनों के माध्यम से सफलतापूर्वक किया जाता है। वास्तव में यह एक शिल्प-विज्ञान है, जिसमें वे सब उपकरण तथा तरीके सम्मिलित हैं, जो सूचना के प्रबंधन से संबंध रखते हैं। 'सूचना' इस शिल्प-विज्ञान का प्रथम लक्ष्य है। 'सूचना' किसी भी समाज की प्रगतिगामी गतिविधियों का मुख्य आधार है। हमारी सारी आर्थिक तथा सामाजिक प्रगति सूचना के एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने पर निर्भर है। सूचना प्रौद्योगिकी क्योंकि सूचना का विज्ञान और शिल्प है, इसलिए इसका सर्वाधिक निकट संबंध जनसंचार अथवा विशेष रूप से कहें, तो पत्रकारिता से है। इस पुस्तक में 'सूचना प्रौद्योगिकी और इसके केन्द्रीय तत्त्व- 'सूचना' का स्वरूप समझाते हुए, संचार और संचार के विविध माध्यमों की कार्य-प्रणाली को सामने रखा गया है। आधुनिक जन-माध्यमों, विशेष रूप से प्रिंट मीडिया, रेडियो तथा टेलीविजन से संबंधित सामग्री का विवेचन है। इस पुस्तक में विश्व की नई सूचना-संचार व्यवस्था की जानकारी का भी समावेश है। जो आज के समय की सबसे बड़ी चुनौती और आवश्यकता बनकर सामने आ रही है। यह पुस्तक सूचना प्रौद्योगिकी तथा मास मीडिया विषय के अध्येताओं के लिए अत्यंत उपयोगी तथा एक अनिवार्य पुस्तक है।
लेखक परिचय
प्रो. हरिमोहन 11 फरवरी, 1953 विभिन्न विषयों पर अब तक 38 से अधिक पुस्तक प्रकाशित। अनेक पुस्तक विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में संदर्भित। पत्रकारिता एवं जनसंबार विषय पर विशेष लेखन। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं राज्यस्तरीय एक दर्जन सम्मान पुरस्कारों से समावृत। जिसमें से कुछ महत्त्वपूर्ण है- म.प्र. शासन का गुणाकर मुले सम्मान (2016), महामहिम राष्ट्रपति के हाथों केंद्रीय हिंदी संस्थान का महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार (2009 एवं 2012), उ.प्र. हिंदी संस्थान का विश्वविद्यालय स्तरीय सम्मान' (2002), पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से 'राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार (दो बार 1999 एवं 2000), सूचना प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार (1998), मॉरीशस की हिंदी साहित्य अकादमी की ओर से 'साहित्य भूषण सम्मान' (2011), उ.प्र. हिंदी संस्थान की ओर से 'बाबूरावं पराडकर पुरस्कार' एवं 'बाबू श्यामसुंदरदास पुरस्कार' (दो बार), 'सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' पुरस्कार' इत्यादि । मॉरीशस (11 बार), इंग्लैण्ड, अमेरिका, ट्रिनिडाड-दुबैगो (वेस्टइंडीज), फ्रांस, जर्मनी, स्विटजरलैण्ड, श्रीलंका आदि देशों की सारस्वत यात्राएँ एवं व्याख्यान । कार्य-क्षेत्र-25 वर्षों तक (1978-2003) हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर के हिंदी विभाग में प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, 2003 से 30 जून, 2015 तक डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, आंगरा के प्रतिष्ठित के.एम.मुंशी हिंदी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ में निदेशक । सम्प्रति 02 जुलाई, 2015 से जे.एस. विश्वविद्यालय, शिकोहाबाद (फिरोजाबाद) उ.प्र. के कुलपति ।
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