ऐश्वर्या शर्मा, जयपुर, राजस्थान की निवासी हैं, इन्होंने अपनी शिक्षा इसी शहर से पूरी की और वर्तमान में वहीं कार्यरत हैं। उन्होंने लगभग चार से पाँच वर्ष पहले हिंदी लेखन की यात्रा शुरू की थी। लेखन उनके लिए भावनाओं और विचारों को अभिव्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम रहा है। इनकी पहली पुस्तक 'जाना ज़रूरी है क्या!' है, इसमें इन्होंने अपने अनुभवों और भावनाओं को पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास किया है।
उतना कभी किसी को नहीं मिलता जितने की चाह होती है लेकिन उतना हर बार बच जाता है जितने के साथ जीवन जिया जा सके। जो बचा, जो जिया, जो जीना बाकी है, जिसमें प्रतीक्षा छिपी है, जहाँ प्रेम का वास है, जहाँ जीवन की हर भावना और विभिन्न पहलू शामिल हैं, जिस क्षण जीवन का अर्थ समझा, जहाँ खुद को निरर्थक पाया और ना जाने ऐसी कितनी ही बातें जिनका जब निचोड़ निकाला गया तो बनी ना जाने कितनी ही कविताएँ।
लगभग चार-पाँच बरस पहले अपने आप को अलग-अलग प्रवृत्ति की भावनाओं में जब जकड़ा हुआ पाया तब लिखना शुरू कर खुद को भीतर से खाली करना शुरू कर दिया। जहाँ पहले मन में अलग-अलग तरह के विचारों का घेराव था। अब वहाँ वसन्त में खिले फूलों सी ऊर्जा का निवास है। कुछ समय पश्चात जब लिखने के साथ, आप सभी के साथ इसे बाँटना शुरू किया तो जाना कि हम सबके सुख-दुःख, हीन भावना, ईर्ष्या, प्रेमभाव आदि भावनाएँ लगभग एक जैसी ही होती हैं। बस इन तक पहुँचने का हमारा माध्यम अलग-अलग है। आप सभी ने जब मेरे लेखन को अपने दैनिक जीवन के उस एक क्षण में जगह दी और सराहा, तब मैंने जाना कि जो जैसा है उसे ठीक वैसा महसूस करना, ठीक-ठीक वैसा ही कह पाना दोनों अलग बातें हैं। किसी को ये कहने और दर्शाने का अवसर मिलता है तो किसी को इसे पढ़ने का। हमारे रहने के लिए जगह मिलना शायद आसान है, परन्तु हमारे जिये हुए के लिए जगह मिलना बहुत बड़ी बात है। मुझे अपनी भावनाओं को किताब की शक्ल देने का अवसर मिला है। लगभग दो बरस पहले ये सोचा नहीं था कि मेरे लिखे को डायरी, मोबाइल का नोटपैड, सोशल मीडिया के अतिरिक्त भी कोई जगह मिलेगी। मुझे आज ये जगह मिल चुकी है।
ये किताब उन सभी लोगों के दिलों तक पहुँचने का प्रयास है जिनके जीवन के किसी एक हिस्से में एक वस्तु, व्यक्ति, जगह आदि की प्रतीक्षा, घात लगाए बैठी रहती है। जहाँ उन्हें ज़रूरत है किसी के लौट आने की या खुद कहीं तक पहुँच जाने की। अगर यह उनकी जीवनशैली के किसी रोज़, एक कोने में क्षण भर अपनी टेक लगा पाए या इन कविताओं की किसी एक पंक्ति में वे स्वयं को प्रतीक्षारत ढूँढ़ पाए तो मैं समझेंगी मेरा लेखन सदा के लिए सार्थक हो गया है।
इसे लिखते हुए दिल की धड़कन तेज़ है, हाथ काँप रहे हैं। मन उत्सुकता से भरा है और चेहरे पर खुशी है। इस भावना को महसूस करते हुए अपना जिया हुआ, देखा हुआ, महसूस किया हुआ कविताओं के रूप में आप सबको सौंप रही हूँ। अंत में अपनी बात को विराम देने के साथ बस ये कहना चाहूँगी कि मंजिल तक पहुँचने के लिए यात्रा की ओर पहला कदम हमें ही बढ़ाना होगा। ये किताब मेरा पहला कदम है। और यहाँ से मेरी यात्रा आरम्भ हो चुकी है।
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