प्रसिद्ध वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस के व्याख्यानों और लेखों में प्रायः देशभक्ति की भावना प्रकट होती रहती थी। रवींद्रनाथ टैगोर को लिखे गए अपने एक पत्र के अंत में उन्होंने लिखा था कि यदि उन्हें एक सौ बार भी फिर जन्म लेना पड़े तब भी वह हर बार हिंदुस्तान को ही अपनी मातृभूमि बनाना पसंद करेंगे। वह कोई संकीर्ण राष्ट्रवादी नहीं थे, उनकी सांस्कृतिक जड़ें अवश्य भारत की मिट्टी में थीं किंतु उनका दृष्टिकोण सार्वभौम था। यह पुस्तक ऐसे ही दिग्गज वैज्ञानिक की जीवनगाथा है।
पुस्तक के लेखक शचीन्द्रनाथ बसु ने लंदन विश्वविद्यालय से पीएच. डी. की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने इम्पीरियल कालेज, लंदन से भी उपाधि प्राप्त की। वह स्वयं भी एक वैज्ञानिक हैं।
लेखक को बोस इंस्टीट्यूट के 'भूतपूर्व निदेशक और जे.सी. बोस के एक भतीजे डॉ. डी.एम. बोस से जो सहायता प्राप्त हुई है उसके लिए वह आभारी हैं, उन्होंने इस जीवनी की पांडुलिपि को पढ़ जाने की ही कृपा नहीं की, अपने कीमती सुझाव भी दिए।
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