| Specifications |
| Publisher: Alpha Publications | |
| Author: कृष्ण कुमार: Krishan Kumar | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 280 | |
| Cover: Paperback | |
| 8.5 inch X 5.5 inch | |
| Weight 320 gm | |
| Edition: 2005 | |
| ISBN: 9788179480925 | |
| NZA691 |
| Delivery and Return Policies |
| Returns and Exchanges accepted within 7 days | |
| Free Delivery |
पुस्तक के बारे में
फल कथन की सुगम व सशक्त पद्धति का नाम जैमिनी ज्योतिष है । दक्षिण भारत में महर्षि जैमिनी द्वारा प्रतिपादित जैमिनी सूत्र ज्योतिषियों के बीच बहुत लोकप्रिय है । तमिल, तेलुगु व अंग्रेजी भाषा में इसका अनुवाद सहज उपलब्द है । आश्चर्य की बात है कि उत्तरी भारत में जैमिनी ज्यौतिष का प्रचार नगण्य है ।
फल कथन के लिये ग्रह बल साधन आवश्यक है । ग्रह तथा भाव बल जाने बिना फलादेश करना मानो मुसीबत मील लेना सरीखा है । भाव बल व ग्रह बल की गणना बहुत जटिल व अधिक समय लेने वाली होती है । भाव साधन तथा भावेश निर्णय, ग्रह की भाव संधि पर स्थिति कुछ ऐसी बातें हैं. जो ज्योतिषियों को नाहक हताश करती हैं ।
इसके विपरीत जैमिनी ज्योतिष में राशि ही भाव है तथा राशि मध्य -ही भाव मध्य और राशि अन्त ही भाव अन्त है । राशि बल (भावबल) तथा ग्रह बल यहा शीघ्रतापूर्वक सरलता से निकाला जाता है । कालबल चेष्टाबल सबल की जटिल गणना की यहा आवश्यकता नहीं पडती । चर राशि दशा, प्रभावशाली, सटीक व अचूक फलादेश में सहायक है । इसका कारण यही है कि जैमिनी दशा भुक्ति एक वर्ष से अधिक कमी नहीं होती जबकि शुक्र मे शुक्र की मुक्ति 3 वर्ष 4 मास तथा शनि में शनि की मुक्ति 3 वर्ष से अधिक अवधि की होती है । तनिक से अभ्यास से बाद कोई भी व्यक्ति लग्न शुद्ध कर सकता है।
त्रिकोणदशा शूल दशा, मंडूक दशा, कदाचित् नए-ज्योतिषियों को थोड़ी कठिन जान पडे किन्तु वे कठिन हैं नहीं-इस बात का मैं विश्वास दिलाना चाहूंगा। इसे एक पाठक द्वारा दूसरे पाठक को दिए गए 'नोट्स' मानना सत्य के अधिक निकट होगा।
मैं आभारी हूं अपने गुरुजन का जिनकी कृपा से ये संकलन 'गागर मे सागर' बना । मेरे मित्र ज्योतिषियों, शोध छात्रों तथा सहपाठियों का स्नेहपूर्ण सहयोग, सदा की भाति मेरा सबल बना। श्री अमृत लाल जैन डा० गोयल तथा मेरे गुरु आदरणीय श्री के० रंगाचारी ने इस संकलन को सजाने संवारने व त्रुटिरहित बनाने के लिये निष्ठापूर्वक जो श्रम किया उसके लिए वे निश्चय ही प्रशसा व बधाई के पात्र हैं । अत: मैं इन सबके प्रति मन, वचन, कर्म रवे नतमस्तक हूं।
''गोपाल की करी सब होइ, जो अपना पुरषार्थ मानै अति झूठो है सोइ''। गोपाल ने शायद आपकी ज्योतिष व भारतीय विरासतमें रुचि देखकर ही इसकी रचना की है तो फिर 'मैं’ बीच मे कहां से आ गया। वे आपके ज्ञान को सफल करें तथा आपकी वाणी मे सरस्वती का वास हो इस कामना के साथ यह पुस्तक आपको सादर समर्पित है ।
|
विषय-सूची |
||
|
अध्याय-1 |
विषय प्रवेश |
1 |
|
अध्याय-2 |
दृष्टि व अर्गला |
16 |
|
अध्याय-3 |
कारक ग्रह राशि व ग्रह बल विचार |
42 |
|
अध्याय-4 |
जैमिनी में लग्न भेद विचार |
62 |
|
अध्याय-5 |
दशा व भुक्ति विचार |
98 |
|
अध्याय-6 |
जैमिनी में जातक निर्णय |
132 |
|
अध्याय-7 |
आयुष्य विचार |
173 |
|
अध्याय-8 |
रोग व मृत्यु विचार |
206 |
|
अध्याय-9 |
विशिष्ट अवधारणाएं व घटना विचार |
226 |
|
अध्याय-10 |
जैमिनी सूत्र में विविध योग |
245 |
|
परिशिष्ट 1, 2, 3, |
265-270 |
|
Send as free online greeting card
Visual Search