विद्यार्थी जीवन से ही साहित्य में मेरी रुचि थी। कहानी, नाटक, उपन्यास आदि विधाओं की ओर मैं आकर्षित रही। वे नाटक मुझे ज्यादा अच्छे लगते हैं, जिनमें मनुष्य जीवन की जटिलताओं को अभिव्यक्त किया जाता है साथ ही जो आधुनिक मनुष्य के जीवन के प्रति हमारी समझ को विस्तृत करते हैं।
एम० फिल० में जब मुझे लघुशोध प्रबंध लिखने का सुअवसर प्राप्त हुआ तो सबसे पहले विषय चुनने की समस्या मेरे समक्ष आई। विद्यार्थी की आकांक्षा और अभिरुचि को सच्चे गुरु की दृष्टि स्वतः ही पहचान जाती है। मैं आदरणीय गुरुदेव डॉ. आलोक गुप्त की सदा ऋणी रहूँगी जिन्होंने मेरी रुचि को ध्यान में रखते हुए मुझे मोहन राकेश, सुरेन्द्र वर्मा तथा भीष्म साहनी जैसे प्रतिष्ठित नाटककारों के नाटक क्रमशः आषाढ़ का एक दिन, आठवाँ सर्ग और हानूश पर लघुशोध-प्रबंध लिखने के लिए प्रोत्साहित किया।
कलाकार और सत्ता के बीच सम्बन्ध में कलाकार अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए सत्ता के समक्ष संघर्ष करता आया है। इसी विषय को केन्द्र में रखकर मोहन राकेश, सुरेन्द्र वर्मा और भीष्म साहनी के क्रमशः आषाढ़ का एक दिन, आठवाँ सर्ग तथा हानूश नाटकों का अध्ययन इस लघुशोध प्रबंध में किया गया है।
अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से इस लघुशोध प्रबंध को छः अध्यायों में विभक्त किया गया है।
प्रथम अध्याय में कलाकार और सत्ता के बीच के सम्बन्ध पर प्रकाश डाला है।
द्वितीय अध्याय में नाटकों की कथावस्तु का आस्वादमूलक अध्ययन प्रस्तुत किया है।
तृतीय अध्याय में सत्ता से अपनी सर्जनात्मक स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत चरित्रों पर प्रकाश डाला है।
चतुर्थ अध्याय में तीनों नाटकों में कलाकार और सत्ता का सम्बन्ध प्रस्तुत किया है।
पंचम अध्याय में तीनों नाटकों में कलाकार और राजनीति के बीच के संघर्ष पर प्रकाश डाला गया है।
षष्टम अध्याय में उपसंहार दिया है, जो समग्र शोध प्रबंध का फलितार्थ है। अंत में परिशिष्ट में आधार ग्रंथ तथा संदर्भ ग्रथों की सूची दी गई है।
मैं अपने निर्देशक आदरणीय डॉ० आलोक गुप्त का कृतज्ञता पूर्वक आभार व्यक्त करती हूँ, जिनके स्नेह एवं सहयोग से लघुशोध प्रबंध का कठिन कार्य पूर्ण हो सका।
मैं भाषा साहित्य भवन के हिन्दी विभाग की अध्यक्षा आदरणीय डॉ० रंजना अरगडे का भी आभार मानती हूँ, जिन्होंने मुझे सतत प्रेरणा दी। आदरणीय डॉ० रघुवीर चौधरी, डॉ० कृष्णा गोस्वामी तथा आदरणीय महावीर चौहान की भी हृदय से आभारी हूँ, जो इस शोध प्रबंध के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सम्बंधित रहे हैं। समय पर काम आए वही सच्चा स्नेही और मित्र है। अपने सहपाठी मित्रों में से मैं ईश्वर डाभी की विशेष आभारी हूँ जिसने अपने कार्यों में व्यस्त होते हुए भी हमेशा मेरी मदद की है।
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