वर्तमान समय हम युग परिवर्तन काल से गुज़र रहे हैं जब कलियुग की समाप्ति और सतयुग का आरम्भ होता है। इस पावन वेला को संगमयुग कहा जाता है। यही समय है जब स्वयं परमात्मा इस धरा पर अवतरित होते हैं और मनुष्यात्माओं को पावन बनाकर सतयुग की पुनर्स्थापना करते हैं।
परमात्मा ज्ञान के सागर हैं और इस समय वे हमें जो मुख्य शिक्षाएं दे रहे हैं उनमें से एक है 'कर्मों की गुह्यगति का ज्ञान'। हमारे जीवन में कई घटनाएं घटती रहती हैं, कई अच्छी होती हैं तो कई बुरी। साधारणतः मानव इन घटनाओं को परमात्मा की इच्छा समझता है। जब उसके साथ कुछ अच्छा होता है तो वह परमात्मा को धन्यवाद करता है वहीं पर यदि उसके साथ कुछ बुरा हो जाए तो वह सारा दोष परमात्मा पर डाल देता है। इस संदर्भ में परमात्मा ने हमें यह शिक्षा दी है कि मनुष्य के जीवन में होने वाली घटनाओं का जिम्मेदार परमात्मा नहीं बल्कि स्वयं मनुष्य ही है। जैसे कर्म मनुष्य करता है उसे वैसा फल मिलता है। परमात्मा किसी भी व्यक्ति के जीवन में हस्तक्षेप नहीं करते हैं। परमात्मा तो सुख के सागर हैं, भला वो किसी को दुःख क्यों देंगे।
इस अति आवश्यक विषय को एक सुंदर कथा के माध्यम से इस पुस्तक में दर्शाया गया है जिसमें कर्म सिद्धांत के गुह्य रहस्यों के साथ-साथ परमात्मा द्वारा प्राप्त अन्य शिक्षाओं को भी उजागर किया गया है। इनमें प्रमुख हैं आत्मा का ज्ञान, परमात्मा का सत्य परिचय, राजयोग, कालचक्र इत्यादि।
आशा है कि इस पुस्तक को पढ़कर आपके जीवन में एक सकारात्मक परिवर्तन और विचारधारा में अनोखा बदलाव आयेगा। साथ ही आप यह भी जान जाएंगे कि कैसे मनुष्य अपने कर्मों की कलम से अपना भाग्य लिखता है।
हमारा आप से यही अनुरोध है कि इस पुस्तक का लाभ आप भी लें, साथ ही अपने मित्र-सम्बन्धियों को भी सौगात में देकर उन्हें भी इस श्रेष्ठ ज्ञान से लाभान्वित करें।
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