प्रस्तुत पुस्तक ""काशी तत्व प्रकाश"" में काशी का सम्पूर्ण माहात्म्य तथा परिचय विस्तार के साथ दिया गया है। काशी के सभी उपलब्ध पौराणिक देव मंदिरों तथा तीर्थों का सचित्र पौराणिक महत्व प्रस्तुत किया गया है, जो देवस्थान अभी अनुपलब्ध हैं, उनका भी माहात्म्य दिया गया है। साथ ही काशी की समस्त पौराणिक तीर्थ यात्राओं का विस्तार के साथ वर्णन किया गया है। यह पुस्तक काशी के देव वैभव को समझने के लिए गागर में सागर का काम करेगी।
मन्दारमालाकुलितालकायै कपालमालांकितशेखराय ।
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
भगवान् श्री काशी विश्वेश्वर की कृपा पूर्वजों की असीम अनुकम्पा तथा पितृचरण प्रातःस्मरणीय स्व. पं.प्र. जनार्दन गंगाधर रटाटे जी तथा माताजी श्रीमती लक्ष्मी रटाटे के आशीर्वाद से काशी के आधिदैविक वैभव के विषय में कुछ लिखने का अवसर प्राप्त हुआ है।
काशी अनन्त, अनादि और अविनाशी है। इसमें देवालय भी अनन्त है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार काशी स्वयं पंचक्रोशात्मक लिंग है। इसमें छोटे बड़े अनन्त शिवलिंग हैं। अन्य देवों तथा देवियों की भी अनगिनत मूर्तियां हैं। पुराणों में काशी के कुछ लिंगों या मूर्तियों का उल्लेख है, लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं कि इतने ही लिंग या मूर्तियां काशी में हैं। जिनका नामतः उल्लेख पुराणों में नहीं मिलता, उनका भी समवेत रूप में उल्लेख पुराणों में किया गया है। आधुनिक काल में भी अनेक मन्दिर तथा लिंग स्थापित किये गये हैं और यह प्रक्रिया निरन्तर जारी है। पुराणों में स्वयं यह कहा गया है कि काशी के देवविग्रहों की इयत्ता समझना असम्भव है। काशी खण्ड के अनुसार काशी में तिलमात्र भी स्थान ऐसा नहीं है, जहां लिंग न हो। तथापि सभी पुराणों या प्राचीन साहित्य में काशी के जिन लिंगों, देवविग्रहों या तीर्थों का स्पष्ट उल्लेख है, उन सभी का संग्रह तथा विवरण प्रस्तुत करने का प्रयास इस पुस्तक में किया गया है। जिन-जिन पुरातन या निबन्ध ग्रन्थों में काशी का वर्णन है, उन सभी ग्रन्थों का आलोडन करने का प्रयास किया गया है। आधुनिक काल के ग्रन्थों का भी अवलोकन कर नवनीत निकालने का प्रयास किया गया है। इन सभी पुराणोक्त विग्रहों या तीथों का माहात्म्य, वर्तमान पता, चित्र तथा अद्यतन परिस्थिति इस ग्रन्थ में दर्शायी गयी है। जो स्थान लुप्त या अन्वेषणीय है, उनकी भी सूची दी गयी है। प्रयास किया गया है कि एक भी पुराणोक्त मन्दिर इस पुस्तक में न छूटे। ग्रन्थकर्ता को जो स्थान नहीं मिल पाये, उत्पत्स्यते कोऽपि समानधर्मा इस उक्ति के अनुसार भविष्य में यदि किसी जिज्ञासु ने उन लुप्त विग्रहों का अन्वेषण कर लिया, तो महान् उपकार होगा। प्राप्त देवालयों की क्षेत्रवार सूची भी सुविधा की दृष्टि से दी गयी है। पं कुबेर नाथ शुक्ल, पं केदार नाथ व्यास, गीताप्रेस तथा धर्मसंघ के द्वारा काशी पर बहुत काम तथा यात्रायें की गयी हैं। आज भी श्रद्धालु गण काशी यात्रा करते रहते हैं। काशी का पार पाना कठिन ही नहीं, असम्भव है। तथापि इस पुस्तक में पूर्व के लेखकों को अपेक्षा कुछ नयी जानकारीदेने का प्रयास किया गया है। जैसे कुबेर नाथ सुकुल तथा केदार नाथ व्यास ने 68 आयतन यात्रा का पूर्ण विवरण उपलब्ध नहीं कराया है। किन्तु प्रस्तुत पुस्तक में काशी खण्ड के आधार पर इस यात्रा का पूर्ण विवरण उपलब्ध कराया गया है। काशी की सीमा तथा आकार के विषय में भी कुछ काल्पनिक, किन्तु नयी जानकारी दी गयी है। ओंकार खण्ड का मानचित्र, विनायक पीठ, विष्णु पीठ, विठ्ठल मन्दिर के अतिरिक्त नवम, दशम, एकादश तथा द्वादश अध्याय में अनेक नयी यात्रायें, अप्रसिद्ध लिंगों, स्थलों तथा तीथर्थों की सूची दी गयी है। इस पुस्तक का मुख्य आकर्षण समस्त प्राप्त विग्रहों का चित्र है। भगवान् विष्णु के 24 रूपों का चित्रण भी परिशिष्ट में प्रस्तुत किया गया है. जिसका अन्यत्र कहीं चित्रण नहीं मिलता। अन्त में अकारादि क्रम से अनुक्रमणिका दी गयी है।
इस पुस्तक में काशी की उपलब्ध सभी यात्राओं तथा तीर्थों की पुराणोक्त जानकारी सचित्र तथा ससंकेत (पते के साथ) देने का प्रयास किया गया है। फिर भी बहुत से स्थान लुप्त या अज्ञात हैं। आपदा को अवसर बनाने के प्रयास से कोरोना काल में लेखन तथा सर्वेक्षण प्रारम्भ किया गया।
मेरे परम सहयोगी अग्रज श्री नरेन्द्र कुमार पाण्डेय के नेतृत्व में यह कार्य प्रारम्भ हुआ। हमलोगों के पूज्य पं.प्र. श्याम गंगाधर बापट जी के सान्निध्य में पंचगंगा घाट पर स्थित बिन्दुविनायक से यात्रा का क्रम प्रारम्भ हुआ। अब पं. बापट जी हमारे बीच यशःशरीर से विद्यमान हैं। पं. नरेन्द्र कुमार पाण्डेय, जो मंगलागौरी मन्दिर के महन्त होने के साथ ही सामाजिक तथा राजनैतिक क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं, उनका सहयोग ग्रन्थकर्ता को पग-पग पर मिला। वस्तुतः सर्वेक्षण तथा लेखन का सुझाव भी पं. पाण्डेय जी ने ही दिया था तथा सर्वेक्षण के कार्य में वे बराबर साथ देते रहे।
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