आयुर्वेद वैज्ञानिक चिकित्सा शास्त्र होने के साथ-साथ सम्पूर्ण जीवन विज्ञान है, जो प्राचीन काल से मनुष्य को आरोग्य प्रदान करता आ रहा है। प्राचीनकाल में आयुर्वेद बहुत ही उन्नत एवं विस्तृत था। उस समय उसके शल्यतन्त्र, शालाक्य तन्त्र, काय चिकित्सा, बाल तंत्र आदि आठ अंग स्वतंत्र हो चुके थे। अष्टांग आयुर्वेद के प्रत्येक अंग पर स्वतंत्र संहिताऐ रची गई थी। प्रत्येक अंग की स्वतन्त्र परम्परा स्थापित हो चुकी थी और इसके विशेषज्ञ ससम्मान समाज में अपना चिकित्सा व्यवसाय करते थे। समय के कालचक्र में, मुगल आक्रांताओं के आक्रमण, अंग्रेजो के गुलामी के वर्षों में ये सब परम्पराये खण्डित या लुप्त हो गयी थीं। आज के समय में आयुर्वेद की जो संहिताऐं प्रचलित हैं उनमें कुछ प्रतिसंस्कृत है कुछ खण्डित है और कुछ संग्रहीत हैं। प्रतिसंस्कृत संहिताओं में चरक संहिता और सुश्रुत संहिता, खण्डित संहिताओं में भेल संहिता और काश्यप संहिता और संगृहीत संहिताओं में अष्टांग हृदय और अष्टांग संग्रह प्रसिद्ध है।
वर्तमान उपलब्ध काश्यप संहिता चौखम्भा संस्कृत सीरीज, वाराणसी से सन् १९५३ में प्रकाशित हुई है जोकि नेपाल के राजगुरु पं. हेमराज शर्मा के पास से प्राप्त पाण्डुलिपि पर आधारित है। पं. हेमराज जी ने इसका विस्तृत उपोद्घात लिखा है और प्रो. सत्यपाल गुप्त जी ने विद्योतिनी हिन्दी व्याख्या लिखी है। काश्यप संहिता के विषयो का उपदेश आचार्य कश्यप में किया है। वृद्ध जीवक ने उन उपदेशों को संकलित कर ग्रन्थ रूप में प्रस्तुत किया। कालान्तर में यह ग्रन्थ लुप्त हो गया था तब वात्स्य नामक आचार्य ने इस ग्रन्थ को अनायास नामक यक्ष से प्राप्त कर इसका प्रतिसंस्कार किया। इस प्रकार इस ग्रन्थ के आद्य उपदेष्टा महर्षि कश्यप है एवं लेखक वृद्धीवक एवं प्रति संस्कर्ता वात्स्य है। इस ग्रन्थ का मूल नाम वृद्धजीवकीय तन्त्र है।
जिस प्रकार चरक संहिता काय चिकित्सा प्रधान ग्रन्थ है, उसी प्रकार काश्यप संहिता कौमारभृत्य प्रधान ग्रन्थ है। इस संहिता में कौमारभृत्य विषय का प्रधान रूप से वर्णन किया गया है। वर्तमान उपलब्ध काश्यप संहिता में बहुत से अध्याय लुप्त है एवं तथा कुछ अध्याय खण्डित है। काश्यप संहिता में खिल स्थान के ८० अध्यायों को जोड़ दे तो कुल अध्याय २०० होते हैं परन्तु वर्तमान में मात्र ७७ अध्याय ही उपलब्ध है। इन ७७ अध्याय में भी २८ अध्याय पूर्ण रूप से कौमारभृत्य से सम्बन्धित है। शेष ४९ अध्यायों में भी कुमार के स्वास्थ्य संवर्धन, रोग उन्मूलन, पुनर्वास आदि विषयों पर विशेष रूप से महत्व दिया गया है।
अधुना स्नातक स्तर पर कौमारभृत्य के पाठ्यक्रम में काश्यप संहिता का कौमारभृत्य के क्षेत्र में योगदान पर एक अध्याय सम्मिलित किया गया है। एम.डी. कौमारभृत्य के पाठ्यक्रम में भी चतुर्थ प्रश्न पत्र में काश्यप संहिता का अध्ययन विद्यार्थियों को करना पड़ता है। जिस हेतु सम्पूर्ण काश्यप संहिता का अध्ययन आवश्यक है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कौमारभृत्य के विद्यार्थी चिकित्सालय कार्य में व्यस्तता के कारण काश्यप संहिता का अध्ययन सुचारु रूप से नही कर पाते हैं। अतः बहुत लम्बे समय से एक परिचयात्मक पुस्तक की आवश्यकता प्रतीत हो रही थी जिससे विद्यार्थी कम समय में काश्यप संहिता का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर सके। इसी को दृष्टिगत रखते हुए बाबा काशी विश्वनाथ के आशीर्वाद से मैने यह छोटा सा प्रयास किया हैं।
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