देश के संगीत-नृत्य शिक्षण संस्थानों में संचालित कथक नृत्य विषय के प्रथमा से मध्यमा अंतिम के पाठ्यक्रम की दृष्टि से 'कथक मध्यमा' पुस्तक का लेखन कार्य किया गया है। उपर्युक्त पाठ्यक्रमों में संबंधित सभी विषयों का समाधान 'कथक मध्यमा' में दिया गया है। संबंधित कक्षाओं में अध्ययनरत विद्यार्थियों को अनेकों पुस्तकों में से सामग्री एकत्र करना पड़ता था। विद्यार्थियों के इन्हीं समस्यायों के समाधान हेतु 'कथक मध्यमा' का लेखन कार्य किया गया है। आशा है विद्यार्थियों की सभी समस्यायों का समाधान 'कथक मध्यमा' से हो सकेगा।
डॉ. भगवान दास माणिक महंत का जन्म छत्तीसगढ़ राज्य के जिला सारंगढ़ ग्राम भेड़वन में 04 मई 1958 को हुआ। रायगढ़ नरेश संगीत सम्राट राजां चक्रधर सिंह के दरबारी नर्तक, गुरु पं कल्याण दास महंत से आपने कथक नृत्य की शिक्षा गुरु-शिष्य परम्परा की कठिन साधना में 12 वर्षों तक प्राप्त की। इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय चौरागढ़ से कथक नृत्य में एम.ए. की उपाधि प्रावीण्य सूचि में प्रथम स्थान के साथ प्राप्त की। "नाट्य, नृत्त एवं नृत्य की अवधारणा का समालोचनात्मक अनुशीलन कथक नृत्य के संदर्भ में" विषय पर शोध उपाधि प्राप्त की।
कला भारती अलवर राजस्थान में आपने कथक नृत्य के वरिष्ठ गुरु के पद लगभग 04 वर्षों तक कार्य किया। बाद में विजया राजे शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, ग्वालियर, मध्यप्रदेश में लगभग 40 वर्षों तक प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष के पद पर कार्य करते हुए सैकड़ों विद्यार्थियों को रायगढ़ कथक घराने में पारंगत किया। आपने अनेको नृत्य नाटिकाओं का लेखन और सफल निर्देशन कार्य भी किया। देश के अनेकों मंचों पर अपनी नृत्य प्रस्तुतियों दी है।
सफल कलाकार और गुरु होने के साथ-साथ आप लेखक भी हैं। आपके द्वारा लिखित पुस्तक 'कथक मध्यमा और 'कथक घराना रायगढ़ बेहद लोकप्रिय है।
डॉ. मानव महंत का जन्म 21 सितम्बर 1990 को रायगढ़ कथक घराना परिवार में हुआ। आपके पिता डॉ. भगवान दास माणिक महंत, रायगढ़ घराने के दरबारी नर्तक गुरु पं. कल्याण दास महंत के शिष्य है। माता डॉ. मोहिनी देवी भी रायगढ़ कथक घराने की श्रेष्ठ नृत्यांगना थी।
कथक नृत्य की शिक्षा डॉ. मानव ने अपने माता-पिता से प्राप्त की। राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय से एम.ए. कथक की उपाधि प्रथम श्रेणी में प्राप्त करने के बाद रायगढ़ नरेश संगीत सम्राट राजा चक्रधर सिंह रचित ग्रंथ मुरजपर्णपुष्पाकर पर बृहदशोध कार्य किया।
आप अनेकों प्रतिष्ठित संगीत-नृत्य समारोहों में अपनी प्रस्तुति दे चुके है। रायगढ़ घराने को देश-विदेश में प्रतिष्ठित करने हेतु आप सतत प्रयासरत है। रायगढ़ घराने के प्रचार-प्रसार हेतु आप अनेकों अलंकरणों से विभूषित हो चुके हैं।
आपके द्वारा लिखित पुस्तक 'रायगढ़ घराना कथक' और 'कथक मध्यमा' अत्यंत लोकप्रिय है। रायगढ़ कथक घराने की रचनाओं का सौंदर्य पुस्तक भी प्रकाशित होने जा रही है।
कथक मध्यमा' पुस्तक लेखन कार्य प्रवेशिका से मध्यमा तक के पाठ्यक्रम हेतु किया गया है।
राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय ग्वालियर म.प्र और इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ छ.ग. के पाठ्यक्रमों के अनुसार, इस पुस्तक का लेखन कार्य किया गया है।
साथ ही साथ यह अखिल भारतीय गांधर्व महाविद्यालय मंडल मुंबई, ब्रज संगीत विद्यापीठ मथुरा, प्रयाग संगीत समिति इलाहबाद, प्राचीन कला केन्द्र चंडीगढ़ आदि शिक्षण संस्थानों के लिए भी उपयोगी है।
मेरे पुत्र डॉ. मानव महंत ने इसकी उपयोगिता और लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए इसके नवीन संस्करण हेतु कथक विषय से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण विषयों को भी शामिल किया है।
मैं उसके उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए हृदय से आशीर्वाद देता हूँ।
कथक नृत्य के अनेकों विद्वानों की पुस्तकों के अध्ययन एवं स्वयं के अनुभव के आधार पर इस पुस्तक को लिखने का प्रयास किया है। कई स्थानों पर विद्वानों के मतों को भी लिया गया है। जिसके लिये हम उन सभी लोगों का अभिवादन और आभार व्यक्त करते हैं। इस पुस्तक के प्रकाशन तक जिन-जिन महानुभावों का प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप में हमें सहयोग मिला, उन सबका हृदय से धन्यवाद देते हैं। पुस्तक में किसी भी प्रकार की त्रुटि हेतु हम क्षमा प्रार्थी हैं।
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