| Specifications |
| Publisher: Pankti Prakashan | |
| Author Devendra Dangi | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 112 | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 8x5 inch | |
| Weight 180 gm | |
| Edition: 2025 | |
| ISBN: 9788196329416 | |
| HBV685 |
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देवेंद्र ने लिखने की शुरुआत कविताओं से ही की, वे कई सालों से लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हैं। उनकी कविताएँ बोल-चाल की तरह सरल होती हैं। इसके अतिरिक्त देवेंद्र वर्तमान में विज्ञापन की दुनिया की जानी-मानी एजेंसी ओगिल्वी में क्रिएटिव राइटर के रूप में कार्य कर रहे हैं।
सीखने के क्रम में मुंबई में रहते हुए वे गीत भी लिख और सीख रहे हैं। हाल ही में इनके लिखे दो गीत रिलीज हुए हैं। वे मानते हैं कि मेहनत करते रहने से एक दिन हर सपना सच होता है, सब आसान हो जाता है। "कुढ़न" देवेन्द्र का पहला कविता संग्रह है।
यह किताब सबसे पहले ऐमजॉन किंडल पर आई थी। आप बहुत लोगों ने इसे पढ़ा, बहुत सराहा, और अब जब यह दो साल बाद थोड़ी और बड़ी होकर पन्नों पर आपके सामने है तो बड़ी ख़ुशी हो रही है। इस किताब की अपनी यात्रा रही। लोगों तक पहुँचने के सिलसिले में यह खुद ही पन्नों तक पहुँची। मेरे लिए कभी यह कविताएँ महज कविताएँ नहीं रहीं, मेरे अब तक के जीवन में झाँकने के लिए एक दर्पण है, जीवन में जो भी घटा, जो भी जिया, इन कविताओं में दर्ज किया, जीवन के अनुभव कठिन रहे इसलिए कोशिश करता रहा कि कविता सरल बनी रहे। मेरे लिए कविताएँ एकांत में खुद से बात करने का एक तरीक़ा रहीं। बहुत अकेलेपन में ये कविताएँ एक साथी की तरह साथ रहीं, मेरी कविताओं को मेरे दादा का बहुत प्यार मिला।
मेरे दादा हमेशा से ही किताबें नहीं पढ़ते थे। कुछ दो चार साल पहले ही उन्होंने पढ़ना शुरू किया और खूब ऊर्जा से पढ़ना शुरू किया। कोविड के दिनों में तो वे खाने-पीने और नहाने-धोने के अलावा सारा दिन किताबों को देने लगे। वे इतनी किताबें पढ़ने लगे कि यह नौबत आ गई कि एक रोज़ दादी मुझसे कहती हैं कि, "तुम इनको किताबें नहीं दोगे अब। ये किताबें पढ़ते-पढ़ते अपनी आँखें खराब कर लेंगे।" दादा इसके जवाब में जो कहते हैं वो मुझे आज तक याद है। वे कहते हैं कि, "मैं इन किताबों में अब दुनिया देखता हूँ और दुनिया देखने से किसकी आँखें खराब होती हैं?" बेशक यह कोई नई बात नहीं होगी, पहले भी कही गई होगी लेकिन उनके मुँह से यह सुनना मेरे लिए बड़ा सुंदर अहसास था। वे मुझसे हमेशा कहते हैं कि इस उम्र में अब जब कोई काम नहीं है तो समय बिताने के लिए मैंने किताबें पढ़ना शुरू किया था लेकिन अब किताबों के बिना समय नहीं बीतता।
किताबों के कारण मेरा दादा से दोस्ती का रिश्ता बन गया। इस किताब को इसलिए भी पन्नों पर लाना चाहता था क्योंकि उन्हें किसी स्क्रीन पर किताब पढ़ना नहीं आता। और मैं हमेशा से चाहता रहा कि किसी दिन वे इस किताब को स्पर्श करें। जो कि उनकी भी चाह रही।
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