झे यह भाग्य की एक बहुत बड़ी विडंबना लगती है कि गूजरमल मोदी, मुझे 3 जो 1960 के दशक में भारत के सातवें सबसे बड़े व्यापारिक साम्राज्य के संस्थापक थे, उन्हें आज आईपीएल से मशहूर हुए ललित मोदी के दादा के रूप में ज़्यादा जाना जाता है। गुलाम भारत में एक अंग्रेज के द्वारा 'गंदा भारतीय' पुकारे जाने से लेकर पटियाला की रियासत से निर्वासित किए जाने तकः आज़ादी से पहले के भारत में कुछ सबसे बेहतरीन कारखाने लगाने से लेकर भारत सरकार के फरमान मानने के लिए मजबूर किए जाने तक गूजरमल मोदी ने सब कुछ देखा। लेकिन वो भारत में कुछ सर्वश्रेष्ठ और सबसे बड़े उद्योग स्थापित करने के अपने प्रयास से हटे नहीं। 1934 में एक चीनी मिल से शुरुआत करके, गूजरमल मोदी ने, करीब-करीब अपने दम पर, 1960 के दशक तक अपने व्यापार को भारत के सबसे बड़े उद्योगों में एक बना दिया। 1976 में उनकी मौत के बाद, उनका व्यापारिक साम्राज्य बिखर गया लेकिन आज भी, उनके और उनके उत्तराधिकारियों के खड़े किए हुए कुछ उद्योग जीवित हैं जिनका सामूहिक मूल्य 2 अरब डॉलर से ज़्यादा है।
गूजरमल मोदी और मोदी समूह स्वतंत्रता-पूर्व भारत में स्थापित संपन्न व्यापारिक साम्राज्य के इकलौते उदाहरण नहीं हैं, जो बाद के वर्षों में हैसियत और आकार में बढ़े और फिर रास्ता भटक गए क्योंकि या तो उन पर पारिवारिक विवादों की मार पड़ी या उदारीकरण की, या फिर दोनों की। भारतीय उद्योग और कॉरपोरेट क्षेत्र उन लोगों और व्यवसायों से भरा पड़ा है जो उस अवधि में अपने गौरवशाली शिखर को छूने के बाद रास्ता भटक गए, जिसे कुछ लोग भारतीय व्यापारियों के जीवन के सबसे चुनौतीपूर्ण वर्ष मानते हैं। ये वर्ष थे 1947 से लेकर 1991 तक।
भारत 1947 में आज़ाद हुआ और नई-नई हासिल हुई आज़ादी अपने साथ ना सिर्फ व्यक्तिगत आकांक्षाएं और सपने लेकर आई, बल्कि इसने सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक आज़ादी के सामूहिक सपनों को भी जन्म दिया। हालांकि, प्रथम प्रधानमंत्री ने एक विकासात्मक मॉडल की परिकल्पना की थी जिसमें सरकार की प्रमुख भूमिका एक उद्यमी होने के साथ-साथ निजी व्यवसायों के लिए पूंजी देने वाले की भी थी। लेकिन नए भारत में आर्थिक आज़ादी के उद्यमियों के सपने जल्दी ही बिखर गए क्योंकि ब्रिटिश राज की जगह ले ली थी लाइसेंस राज ने।
लाइसेंस राज, जिसे कई लोग एक जटिल और अपारदर्शी प्रणाली कहते हैं, में लगी बंदिशों की वजह से भारत में उद्यमी होना बड़ा सिरदर्द था। साथ ही, जटिल और सरकारी दबदबे वाले तंत्र ने उद्यमशीलता की भावना को कब्जे में रखा था। उद्यमी इसलिए कामयाब नहीं थे कि उन्होंने क्या किया बल्कि इसलिए कि वे किसे जानते थे। सरकारी भलमनसाहत पर निर्भरता इस कदर थी कि आम जनता के मन में, नेताओं और अफसरों से संबंध रखने की वजह से, व्यापारियों की छवि भी भ्रष्टाचारी की थी।
लेकिन, लोग भूल जाते हैं कि ऐसे कई उद्यमी और कारोबार थे, खास तौर पर उन चुनौतीपूर्ण दिनों में, जिन्होंने नए भारत को बनाने के लिए बिना थके मेहनत की। गूजरमल मोदी उनमें से एक थे। निश्चित रूप से यह आसान नहीं था, लेकिन वो डटे रहे।
ब्रिटिश शासन के दौरान एक उद्यमी के रूप में गूजरमल मोदी को परिवहन, रसद, संचार और यहां तक कि हुनरमंद प्रतिभाओं से जुड़ी दिक्कतें झेलनी पड़ीं। ज़्यादातर सामग्रियों की सप्लाई धीमे चलने वाले वाहनों या कुछेक मोटर गाड़ियों से होती थी। दूर-दराज के इलाकों की मिलों और कारखानों से संपर्क करना मुश्किल था। ज़्यादातर मशीनरी का आयात करना होता था और उन मशीनों को चलाने के लिए मजदूरों को ढूंढ़ना एक चुनौती थी। कारोबार चलाने के लिए मैनेजमेंट छात्रों का ढेर निकालने वाले कोई एमबीए संस्थान उन दिनों नहीं थे; ज़्यादातर उद्यमी अलग-अलग कारोबार चलाने के लिए अपने परिवार के सदस्यों पर निर्भर थे।
इनमें से कुछ चुनौतियां आज़ाद भारत में बनी रहीं जबकि कुछ और नई चुनौतियां इनके साथ जुड़ गईं। ये नई चुनौतियां मुख्य रूप से आज़ाद भारत में बिजनेस करने के नए सिस्टम' के इर्द-गिर्द घूमती थीं। ये सच है कि गूजरमल मोदी ने सिस्टम को 'मैनेज' करना सीखा, लेकिन इस सिस्टम के सख्त ढांचे के भीतर व्यापार शुरू करने, चलाने और बढ़ाने के लिए एक उद्यमी वाले कौशल की जरूरत होती थी। मैन्युफैक्चरिंग कभी भी आसान कारोबार नहीं रहा है और लाइसेंस राज ने उत्पादित की जा सकने वाली वस्तुओं की संख्या पर बंदिश लगाकर ज़्यादा उत्पादन की किफायतों को हासिल करना और अधिक मुश्किल बना दिया। गूजरमल मोदी को इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने ना केवल पूरी लगन से अपना काम किया बल्कि ऐसे उत्पाद तैयार किए जो उस समय घर-घर में पहचाने जाने लगे। बदकिस्मती से, उनमें से ज़्यादातर आज या तो अपने हल्के रूप में मौजूद हैं या करीब-करीब भुला दिए गए हैं।
मगर जो चीज़ भुलाई नहीं जा सकती और भुलाई जानी भी नहीं चाहिए, वो है गूजरमल का योगदान। वो उद्यमियों के ऐसे समूह का अंग थे जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था और उद्योग की नींव रखने के लिए काम किया। अगर उन्होंने और दूसरे दिग्गजों ने मुश्किलों को झेलते हुए कारोबार स्थापित नहीं किए होते, कई लोगों को रोज़गार नहीं दिए होते और भारतीय अर्थव्यवस्था को आगे नहीं बढ़ाया होता, तो आज का भारत वहां नहीं होता, जहां आज है। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि इन उद्यमियों को गुमनामी से बाहर लाया जाए और नई पीढ़ी के सामने भारत का निर्माण करने वाले उद्यमियों की तरह पेश किया जाए।
यह कहानी है मोदी समूह के संस्थापक गूजरमल मोदी की। वो मोदी समूह, जो 1960 के दशक के अंत तक एक बड़े और कई काम-धंधों वाले व्यापारिक साम्राज्य में विकसित हो चुका था। इस समूह का दायरा चीनी, इस्पात, तेल, वनस्पति, टायर, नायलॉन धागे, यार्न, लालटेन, साबुन और डिहाइड्रेटेड खाद्य पदार्थ, वगैरह तक फैला था। गूजरमल मोदी की कहानी गरीबी से अमीरी तक पहुंचने की नहीं है; यह अपना एक औद्योगिक शहर स्थापित करने के एक अकेले व्यक्ति के दृढ़ संकल्प की कहानी है।
गूजरमल मोदी एक संपन्न परिवार से आते थे- कारोबारियों का परिवार जिसने ब्रिटिश सेना को माल सप्लाई करके पैसे कमाए थे। गूजरमल परिवार के सबसे बड़े बेटे थे और अपने पिता का व्यापार संभालकर आसान रास्ता चुन सकते थे। लेकिन युवा गूजरमल मोदी में उद्यमिता और महत्वाकांक्षा कूट-कूटकर भरी थी, और वो अपने पिता की छाया से बाहर निकलकर अपने खुद के व्यापार स्थापित करना चाहते थे।
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