| Specifications |
| Publisher: ISKCON | |
| Author Jitamitra Das | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 366 (B/W Illustrations) | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 8.5x5.5 inch | |
| Weight 400 gm | |
| Edition: 2024 | |
| HBC270 |
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श्रीभगवान् ने कहा (भगवद्गीता कथारूप) द्वितीय खण्ड, पूर्वार्ध श्रद्धालु पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है। इसके पूर्व प्रथम खण्ड छपा था जिसको पढ़कर भक्तों ने अत्यन्त प्रसन्नता प्रकट की थी तथा उनके प्रोत्साहन के कारण यह अगली पुस्तक प्रकाशित हो सकी है। इस पुस्तक में गीता के दूसरे अध्याय के श्लोक संख्या 1 से लेकर श्लोक संख्या 38 तक के लेखों का संग्रह है। गीता के दूसरे अध्याय को एक खण्ड में छापने से पुस्तक का आकार बढ़ जाता, अतः दूसरे अध्याय को पूर्वार्ध तथा उत्तरार्ध के नाम से दो भागों में प्रकाशित करने की योजना बनायी गयी है।
भगवद्गीता का दूसरा अध्याय सम्पूर्ण ग्रन्थ का सार है। श्रील प्रभुपाद ने दूसरे अध्याय के एक-एक श्लोक पर पर्याप्तरूप से विस्तृत तात्पर्य लिखे हैं। प्रत्येक श्लोक की गहरायी में हमारे लिये अत्यन्त उपयोगी शिक्षायें हैं। चूँकि अर्जुन को नरं चैव नरोत्तमम् अर्थात् मनुष्यों में उत्तम मनुष्य कहा गया है, इसलिये अर्जुन के द्वारा किये गये प्रश्न मनुष्यों के जीवन के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। गीता का असली स्वरूप श्रीकृष्ण तथा अर्जुन के मध्य संवाद है। चूँकि अर्जुन श्रीकृष्ण से अत्यन्त घनिष्ठतापूर्वक सम्बन्धित हैं, अतः हम भी गीता के श्लोकों के माध्यम से श्रीकृष्ण से घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित कर सकते हैं। श्रीकृष्ण तथा अर्जुन के मध्य जो संवाद हुआ उस दिव्य ज्ञान के विषय में भगवान् गीता 4.38 में कहते हैं- 'इस संसार में दिव्य ज्ञान के समान कुछ भी उदात्त तथा शुद्ध नहीं है। ऐसा ज्ञान समस्त योग का परिपक्व फल है। जो व्यक्ति भक्ति में सिद्ध हो जाता है, वह यथासमय अपने अन्तर में इस ज्ञान का आस्वादन करता है।'
गीता के श्लोकों पर जितना अधिक विचार किया जाये, उतने ही अधिक नये-नये अर्थ निकलते हैं, जिस प्रकार चन्दन की लकड़ी को घिसने से अधिक से भी अधिक सुगन्ध प्राप्त होती है। वाराह पुराण के गीता माहात्म्य में लिखा है कि जो व्यक्ति गीता के श्लोकों के अर्थ पर सदा विचार करता रहता है, वह सदा जीवनमुक्त होता है तथा सुखी भी होता है। श्रील प्रभुपाद ने सदा प्रोत्साहन दिया है कि हम श्लोकों के शब्दों पर तथा उनके अर्थों पर सदा विचार करें। भगवद्गीता के भक्तिवेदान्त तात्पयों से हमें श्लोकों की गहरायी में जाने के लिये अत्यन्त बल प्राप्त होता है। यदि श्रीकृष्ण के भक्तगण इसी प्रकार प्रोत्साहन देते रहेंगे, तो श्रील प्रभुपाद की कृपा से लेखक आगे भी इस कार्य को जारी रख सकेगा।
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