आधुनिक हिन्दी काव्य में महादेवी का प्रसादकालीन छायावादी काव्य में उल्लेखनीय योगदान रहा है। छायावाद के चार प्रमुख आधारस्तंभों में उनकी परिगणना होती है। प्रसाद, पंत, निराला और महादेवी वर्मा छायावाद के चार प्रमुख आधार स्तंभहैं। छायावाद का आरंभ भारतेन्दु एवं द्विवेदीकालीन कविता के पश्चात होता है। प्रसादकालीन कविता के पूर्ववर्ती दो कालों की कविता में स्थूल वर्णन का आधिक्य है। प्रसादयुगीन छायावादी काव्य में स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह है। भाव एवं भाषागत सूक्ष्म अभिव्यक्ति का दूसरा नाम छायावाद है। इस प्रकार छायावादी काव्य वस्तु-विचार, भाव एवं शिल्प की दृष्टि से अपने पूर्ववर्ती काव्य से भिन्न है। महादेवी के काव्य में छायावादी काव्य की सभी प्रमुख विशेषताओं के दर्शन होते हैं। आधुनिक युग के प्रमुख रहस्यवादी और छायावादी कवियों में उनकी परिगणना होती है।
महादेवी के काव्य में युग और युगान्तर एक साथ जुड़े हुए हैं, क्योंकि मध्यमवर्गीय चेतना की अंतरंग आवश्यकताओं की पूर्ति उसके द्वारा हुई है। इस प्रकार उसने युग धर्म को वाणी दी है परंतु एक दूसरी भूमिका पर भी वह निर्वाहित है और वह है शाश्वत और युगेतर की भूमिका। ये दो भूमिकाएँ इतनी ओतप्रोत होकर निराला को छोड़कर अन्य किसी आधुनिक कवि के काव्य में नहीं उतरी हैं। फल यह हुआ कि भारत वर्ष की शाश्वत आध्यात्मिकता का प्रतिनिधित्व करने वाला युगधर्मी काव्य हमें इन्हीं दोनों से मिलता है। दोनों में अंतर भी कम नहीं है क्योंकि व्यक्तित्व और साधना के दो छोरों पर दोनों स्थित हैं। निराला में भूमा की साधना है, महादेवी अणिमा की साधिका है। एक ने अपने अहम् को इतना विस्तार दिया कि प्रकृति मनुष्य और चराचर जगत को समेटकर विराट का प्रतीक बन गया है तो दूसरे ने अपनी आत्मा के अंतरंगी कक्ष में प्रवेश कर वहीं मिलन और विरह की साधना द्वारा अत्यंत गहराई में उस एकता को पाया है जो चराचर जगत को एकसूत्र में बाँधती है और मनुष्य को मनुष्य एवं प्रकृति से जोड़ती है।
समाज में सबसे अधिक जागृत प्राणी है- साहित्यकार। व्यक्ति माँ की गोद से जन्म लेकर इस विशाल समाज में प्रवेश करता है। समाज और संस्कृति का प्रभाव परिपक्य बालक पर अवश्य ही पड़ता है, महादेवी का परिवार सुसंस्कृत होने के कारण बचपन से ही समाज तथा संस्कृति के प्रति उनका लगाव गहरा था। महादेवी के काव्य में वैयक्तिक जीवन के दुख दर्द काफी मात्रा में हैं जो आगे की साहित्य यात्रा में समष्टिगत बन गये हैं। गद्य में महादेवी के विशाल समाज का दर्शन होता है तथा पद्य में वेदना की छाया में संस्कृति की झलक आध्यात्मिकता के माध्यम से मिल जाती है। आध्यात्मिक पक्ष संस्कृति का दूसरा रूप है, उसी प्रकार प्रणय भी। आध्यात्मिकता की दृष्टि से उनकी प्रणय वेदना संस्कृति का अच्छा परिचय देती है।
भारतीय संस्कृति युगों तक धर्म के साथ जुड़ी हुई है, संस्कृति और धर्म एक दूसरे के पूरक हैं। आध्यात्मिकता का संबंध धर्म के साथ है और धर्म का संबंध समाज और संस्कृति के साथ। काव्य में महादेवी जी विरहिणी और गद्य में विद्रोहिणी हैं। उनके विरहिणी रूप में हम समाज और संस्कृति की झाँकी पाते हैं। विरही नारियों का भी एक समाज होता है, एक संस्कृति होती है। श्वेतवस्त्रधारिणी महादेवी ने काव्य के माध्यम से अपने समाज तथा संस्कृति के प्रति गहरा लगाव दिखाया है।
अपनी साहित्य साधना की यात्रा में महादेवी समाज और संस्कृति के साथ जुड़ी हुई हैं। उनके रेखाचित्र, संस्मरण तथा निबंध समाज तथा संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं। अतीत के चलचित्र संस्मरण ऐसे पात्रों पर लिखे गये हैं, जो समाज के शोषित उत्पीड़ित वर्ग से सम्बन्धित हैं। विपत्तियों के बादल मंडराकर जिनके व्यक्तित्व पर दुखों की छाया घनीभूत करते रहे हैं ऐसे ही अभिशप्त जीवन व्यतीत करने वाले इन पात्रों में 'रामा' जो देखने में अत्यंत कुरूप और अनाकर्षक व्यक्तित्व का धनी है और अलोपी, नेत्रविहीन नियति के हाथों विडम्बनापूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य, विन्दा और विट्टो बाल विधवा होने के कारण दुर्बोध जीवन ढो रही हैं।
वस्तुतः महादेवी का समाज विस्तृत फलक पर फैला हुआ है। उनका साहित्य ही उनकी दुनिया है। समाज के दुख-दर्द को महादेवी ने अपने गद्य के माध्यम से हटाने का प्रयास जरूर किया है। इस विदुषी महिला ने हिन्दुओं की सामाजिक प्रणाली पर कुछ खेद भी प्रकट किया है। एक समस्या यह है कि औरत एक बार विधवा होने के बाद फिर से शादी नहीं कर सकती। महादेवी इस विषय में लिखती हैं-
"युगों से पुरुष स्त्री को उसकी शक्ति के लिए नहीं, सहनशक्ति के लिए ही दंड देता आ रहा है।"
इस विदुषी महिला ने सामाजिक विषमता के संबंध में सदैव अपने मानवतावादी विचारों की अभिव्यक्ति दी है। सभी रेखाचित्र प्रायः शोषित, दीन, सर्वहारा वर्ग के प्रति सहानुभूति की आधारशिला पर रखे गये हैं। महादेवी ने अपने रेखाचित्रों में नारी पात्रों को अधिकांशतः उभारने का प्रयास किया है। इतना तो सत्य है कि महादेवी नारी एवं पीड़ित समाज की वकालत करती हैं।
भारतीय समाज व संस्कृति के प्रति केवल दिलचस्पी है इस बात की पुष्टि उनके पवित्र कक्ष में सजायी गयी वस्तुओं से होता है। इस विदुषी नारी ने हिन्दू समाज एवं हिन्दू संस्कृति को अपने साहित्य में आत्मसात करके मानव हृदय तक पहुँचने का कार्य किया है। महादेवी समाज और संस्कृति की उन्नायिका हैं, हमने भारतीय समाज तथा संस्कृति का बहुत सूक्ष्म रूप में मूल्यांकन कर उसका विस्तृत अध्ययन अपने साहित्य में दिया है।
समाज और संस्कृति को ध्यान में रखकर महादेवी के साहित्य का मूल्यांकन करने का मैंने प्रयास किया है।
पूज्य गुरुवर डॉ. मनोहर एस. व्यास ('प्राचार्य एवं अध्यक्ष-शामलाजी कालेज) साहब की अनुमति मेरे शोधकार्य की प्रेरणा बनी।
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