अपने इंटरव्यू में महान फिल्मकार श्याम बेनेगल कहते हैं कि समाज बदलने के बाद फिल्म अच्छी होगी, ये बात ग़लत है, समाज जैसा है, फिल्म भी वैसी होगी, ये बहाना है। ऐसा कहते हुए वे संकेत देते हैं कि सिनेमा का मकसद सिर्फ जनता का मनोरंजन करना ही नहीं, बल्कि समाज को शिक्षित और संस्कारित करना भी है। उनकी इस बात में फिल्मकारों की समाज के प्रति प्रतिबद्धता और दायित्वबोध की झलक भी मिलती है। अच्छा सिनेमा ही बेहतर समाज की भावभूमि तैयार कर सकता है, जिसकी आज देश-समाज को सख्त जरूरत है। तब सवाल उठता है कि क्या आज का सिनेमा कोई सामाजिक जिम्मेदारी महसूस करते हुए अभिव्यक्ति के सबसे सशक्त माध्यम होने की भूमिका निभा रहा है?
इस पुस्तक में दीप भट्ट ने हिन्दी सिनेमा के दिग्गज फिल्मकारों, अभिनेताओं से लेकर, नामचीन अभिनेत्रियों के साथ ही समानांतर सिनेमा के शीर्ष कलाकारों के साक्षात्कारों में सिनेमा और समाज के अनेक पहलुओं को उठाया है। सवाल जिस जिज्ञासा और उत्कंठा से पूछे गए हैं, उन्हें जवाब भी उसी भाव में मिले हैं, जिसके चलते संग्रह में साक्षात्कारों के बहाने कुछ ठोस सवाल आए हैं, बहसें आई हैं और कुछ अनछुए पहलू भी। लेखक की बेबाक और उत्तेजक बातचीत शैली के बहाने सिनेमा का जीवन-दर्शन सिनेमा की रील की तरह पाठकों के सामने खुलता चला जाता है। यह संग्रह सिनेमा पर एक जरूरी संवाद और दस्तावेज की शक्ल में आकार लेता नजर आता है। इसकी तासीर ने संग्रह को पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय भी बना दिया है।
मैं मूलतः मध्य वर्गीय किसान परिवार में जन्मी, पली और बड़ी हुई हूं। उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर के गांव जैसोई में प्राथमिक शिक्षा से लेकर दसवीं तक शिक्षा प्राप्त की। इसके पश्चात उच्च शिक्षा जिला मुख्यालय मुजफ्फरनगर स्थित सनातन धर्म महाविद्यालय से प्राप्त की। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से पी-एच. डी. की उपाधि ली।
आरम्भ से ही मेरी रुचि कथा साहित्य में रही है। वर्तमान समय में पत्रकारिता साहित्य का विशेष महत्व है। श्री रामशरण जोशी की पत्रकारिता साहित्य के रचनात्मक तटों को स्पर्श करती है और वंचित वर्ग के सरोकारों के प्रति प्रतिबद्ध है। एक प्रकार से उनकी पत्रकारिता में रचनात्मक प्रतिरोध की अनुगूंजें हैं। सो, मेरे अध्यन के केंद्र में हाशिये के लोग और रचनात्मक प्रतिरोध हैं।
अब मैं चंदौसी के महाविद्यालय में सहायक आचार्य के पद पर शिक्षण कर्म से जुड़ी हुई हूं।
समाज एक से अधिक लोगों के समुदाय से मिलकर बनता है, जिससे व्यक्ति के मानवीय क्रियाकलाप संबंधित होते हैं, जिसके अंतर्गत आचरण, सामाजिक सुरक्षा, निर्वाह आदि क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं। मनुष्य समाज से अलग नहीं रह सकता, अलग रहने पर उसका भाषा से ही नहीं, चिंतन से भी नाता टूट जाएगा। मनुष्य की हर गति पर समाज की छाप है और प्रत्येक व्यक्ति का विकास उसके सामाजिक वातावरण में होता है। मनुष्य की शिक्षा-दीक्षा से लेकर परिवार, पाठशाला आदि की क्रिया समाज द्वारा विकसित होती है। समाज भी निरंतर बदल रहा है। यह परिवर्तन क्रमशः विकास के स्तर पर भी होता है और क्रांति के स्तर पर भी। समाज का ढांचा अर्थात् वस्तु, व्यक्ति, विचार सभी बदलते रहते हैं।
रामशरण जोशी पत्रकार, संपादक, समाजविज्ञानी, मीडिया-शिक्षक, विभिन्न संस्थाओं के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष रहे हैं। रामशरण जोशी का व्यक्तित्व बहुआयामी है। वे जितने सरल दिखाई देते हैं उतने ही विशिष्ट हैं। उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन कार्य किया है। रामशरण जोशी का जीवन संघर्षों में बीता है। इनके साहित्य में मीडिया, आदिवासी समाज, पूंजीवाद, मार्क्सवाद, स्त्री अस्तित्व का संकट, दलितों, पिछड़ों और किसानों का शोषण, राजनीति, धर्म, भ्रष्टाचार, अंधविश्वास, अशिक्षा आदि तथ्य उजागर होते हैं।
रामशरण जोशी का लेखन संसार एकआयामी नहीं, बल्कि विविध आयामी है। मूलतः पत्रकार होकर भी लेखक जोशी ने अपने चिंतन व लेखन परिधि को निरंतर विस्तार दिया है। सातवें दशक में आदिवासियों, बंधक श्रमिकों जैसी उपेक्षित व उत्पीड़ित मानवता पर उनका जमीनी लेखन हिंदी जगत् में चर्चित रहा है। वे आज भी इस प्रकार के लेखन कार्य से जुड़े हुए हैं।
सर्वप्रथम मैं अपने परम पूज्य पिता जी और मित्र सदृश माता जी की विशेष रूप से ऋणी हूं, जो मेरे प्रेरणा स्रोत रहे हैं।
मैं अपना सौभाग्य मानती हूं कि मुझे इस पुस्तक को प्रकाशित करवाने में स्वयं लेखक रामशरण जोशी का आशीष प्राप्त हुआ। उनके और उनकी पत्नी श्रीमती मधु जोशी के मैत्रीपूर्ण व्यवहार एवं आत्मीय स्नेह के लिए मैं हृदय से आभार प्रकट करती हूं जिनके कुशल मार्गदर्शन, आत्मीय स्नेह और प्रेरणा से यह कार्य सम्पन्न हो पाया
इस कड़ी में मैं अपने पति श्री विपिन कुमार, सहपाठी अनिरुद्ध कुमार, अनूप कुमार पटेल की भी आभारी हूं, जिनके सार्थक सुझाव एवं सहयोग के परिणामस्वरूप यह पुस्तक प्रकाशित हो सकी।
यथा संभव प्रयास करने पर भी वर्तनी शुद्धि में यदि कुछ अशुद्धियां रह गई हो तो उनके लिए क्षमा प्रार्थिनी हूं।
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