सन् 2003 से साहित्य लेखन की शुरुआत करते हुए मैंने साहित्य की विविध विधाओं में अब तक अट्ठाईस पुस्तकों की रचना की है। स्तरीय लेखन की बदौलत देश भर की अनेक प्रतिष्ठित संस्थाओं सहित हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा सन् 2014 में हरियाणा की 'श्रेष्ठ महिला रचनाकार' के रूप में मुझे सम्मानित किया गया। सन् 2017 में कथा-संग्रह 'बचपन के आईने' से मेरे बाल साहित्य लेखन की शुरुआत हुई। तत्पश्चात् मैं निरंतर बाल साहित्य लेखन से जुड़ी हुई हूँ और अब तक बाल साहित्य की पाँच पुस्तकें (चार कथा-संग्रह एक बाल कविता-संग्रह) लिख चुकी हूँ। मात्र तीन वर्ष की अल्प अवधि में देश की लगभग सभी प्रमुख बालसाहित्य संस्थाओं ने मेरे लेखन का संज्ञान लेते हुए मुझे पुरस्कृत व सम्मानित करके न केवल मेरा उत्साहवर्धन किया बल्कि मुझे बाल साहित्यकार के रूप में पहचान दिलाई। विभिन्न संस्थाओं के पदाधिकारियों के बाल साहित्य के प्रति समर्पण और बालकों के लिए कुछ करते रहने की प्रतिबद्धता से मैं प्रभावित हुई। मेरे मन में भी बाल साहित्य के विकास और संवर्धन के लिए इच्छा बलवती हुई कि मुझे सृजन के अतिरिक्त आगे बढ़कर बच्चों के लिए कुछ करना चाहिए। इसीलिए अक्टूबर 2019 में मैंने और मेरे पति डॉ. मेजर शक्तिराज ने मिलकर 'महादेवी बाल साहित्य संस्थान' की स्थापना की। फलस्वरूप हरियाणा में पहली बार बाल साहित्य संस्थान की स्थापना के बाद 7 जनवरी से 11 जनवरी, 2020 तक पाँच दिवसीय 'बाल लेखन कार्यशाला' का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में 'बाल प्रहरी' के संपादक व प्रतिष्ठित बाल साहित्यकार उदय किरौला जी को मुख्य प्रशिक्षक व श्री गोविंद शर्मा जी को कार्यक्रम की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया गया।
मित्रो! वर्तमान में बच्चों का बचपन बदल रहा है। उनकी जिंदगी का पहिया स्कूल, ट्यूशन, टीवी, मोबाइल और कंप्यूटर के इर्द-गिर्द घूम रहा है, जिससे बच्चों की कल्पनाशीलता और रचनात्मकता अवरुद्ध हो रही है। बच्चों के मानसिक व भावनात्मक विकास के साथ-साथ पर्यावरण तथा वर्तमान की चुनौतियों से उन्हें रूबरू कराना भी मेरा उद्देश्य है ताकि हम सब भविष्य में बेहतर जीवन जी सकें। साथियो। बच्चे तो उगते अंकुर हैं। उनकी इच्छाओं, भावनाओं, जिज्ञासाओं का सम्मान करना हमारा कर्तव्य है और आवश्यक भी। इसी लक्ष्य के संधान हेतु मैंने कथा-संग्रह 'माशी की जीत' लिखा है। संग्रह में सम्मिलित कहानियों के बारे में भूमिका व फ्लैप मैटर में लिखा जा चुका है, अतः इस बारे में अधिक कुछ न कहते हुए बस इन्हें सुनने, पढ़ने व गुनने का आग्रह करती हूँ।
आभार प्रकट करने की श्रृंखला में सर्वप्रथम आभारी हूँ आदरणीय गोविंद शर्मा जी की जो मेरी बाल-साहित्य यात्रा से भलीभाँति परिचित हैं और उन्होंने फ्लैप मैटर लिखा, डॉ दिनेश पाठक 'शशि' जी की, जिन्होंने संक्षिप्त परंतु सार्थक भूमिका लिखी। उन सभी वरिष्ठ बाल साहित्यकारों की भी आभारी हूं जिनसे समय-समय पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मैं जुड़ी रही हूँ... उनका आशीर्वाद पाती रही हूँ और उनसे प्रेरित होती रही हूँ, जिनमें प्रमुख रूप से सर्वश्री श्रीमती डॉ. विमला भंडारी, डॉक्टर भैरूलाल गर्ग, सुकीर्ति भटनागर, डॉ परशुराम शुक्ल, डॉ. अजय जनमेजय, उदय किरौला, महेश दर्पण, राजकुमार जैन राजन, कुसुम अग्रवाल, संजीव जायसवाल, प्रकाश मनु, डॉ. घमंडी लाल अग्रवाल, डॉ नागेश पांडे, चक्रधर शुक्ल, एसबी शर्मा, इंजीनियर आशा, शर्मा, मंजरी शुक्ला आदि।
आभारी हूँ अपने जीवनसाथी डॉ. मेजर शक्तिराज जी की, जो स्वयं एक प्रतिष्ठित व वरिष्ठ बाल साहित्यकार हैं, जिनके सहयोग व मार्गदर्शन की मैं सदैव इच्छुक हूँ। मुझे बचपन में ले जाने वाली अपनी पोतियों बारह वर्षीय लावण्या व आठ वर्षीय मंशा की सबसे अधिक आभारी हूँ जिनके पल-पल साथ ने मुझे बाल मन में गहरे पैठने का वातावरण बनाया तथा बाल साहित्य लेखन की प्रेरणा दी। अंत में 'साहित्यागार' प्रकाशन के प्रभारी श्री हिमांशु वर्मा जी की भी आभारी हूँ जिनके सप्रयासों से यह पुस्तक आपके हाथों में पहुँची है।
शिक्षकों व अभिभावकों से अनुरोध करती हूँ कि वे स्वयं इन बालकथाओं को पढ़ें व बच्चों को पढ़ाएँ। प्रस्तुत संग्रह की कहानियों के विषयों का चिंतन-मंथन आज की जरूरत है और यदि ये रचनाएँ बच्चों तक संप्रेषित हो जाएँ, तो वे भावी चुनौतियों के प्रति एक सजग पहरेदार बन पाएँगे। बच्चों को शुभाशीष ! आप सबकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा.....
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