प्राचीन काल से ही मानवीय विकास एवं स्वास्थ्य का दैहिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्तरों पर सूक्ष्म रूप से विवेचन किया जाता रहा है। इन तीन स्तरों के समन्वय को योग प्रणाली द्वारा जोड़ा गया है। आधुनिक समाज में यह समन्वय छिन्न-भिन्न होता जा रहा है। आज के युग में तेजी से बदलती हुई जीवन शैली व पद्धति एवं जीवन के हर क्षेत्र में पैदा हुए तनाव के फलस्वरूप कई शारीरिक एवं मनोशारीरिक रोगों की विस्तीर्णता दिखाई देती है। भौतिकता एवं आध्यात्मिकता का सामंजस्य पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता पर कई मनीषियों ने विचार किया है।
जीवन में क्रमशः क्षतिग्रस्त होते सामंजस्य के कारण अनेकानेक मनोविकृतियां उत्पन्न हो रही हैं। डॉ. दिनेश प्रसाद साहु द्वारा प्रस्तुत यह पुस्तक अनेकानेक प्रकार की मानसिक विकृतियों व उनसे उत्पन्न रोगी की सरल विवेचना करती है। यह विवेचना इन विकृतियों को आठ अध्यायों में बांटकर की गई है जैसे कि मनोस्नायु विकृतियां, मनोविकृतियां, मनोदैहिक विकृतियां, व्यक्तित्व विकृतियां, मानसिक मंदनता, द्रव्य संबंधी विकृतियां एवं कुसमायोजन की समस्या। इस पुस्तक में इन सभी प्रकारों के विकृक्तियों की व्याख्या कई शोध प्रबंधों को संदर्भ में रखकर की गई है।
इस पुस्तक का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग इन विकृतियों को योग चिकित्सा से जोड़ता है। विभिन्न प्रकार की विकृतियों को दूर करने के लिए यह पुस्तक यौगिक क्रियाओं का सुझाव देती है और इस प्रकार से मानविक स्वास्थ्य को प्राचीन भारत की चिकित्सा पद्धति से जोड़ने का एक अनूठा प्रयास है।
यह पुस्तक सर्वसामान्य के लिए मानसिक स्वास्थ्य एवं यौगिक प्रणाली को समझने के लिए तो महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगी, साथ ही साथ इस दिशा में शोध करने वाले शोधार्थी, मनोविश्लेषकों एवं मनोचिकित्सकों के लिए भी लाभप्रद होगी, ऐसी मेरी मान्यता है।
मैं डॉ. दिनेश प्रसाद साहु को उनके इस अनूठे प्रयास के लिए बधाई देता हूं एवं मुझे इस पुस्तक की मूल प्रतिलिपि प्रदान करने के लिए धन्यवाद करता हूं। व्यक्तिगत रूप से मैं इस पुस्तक को पढ़कर अत्यधिक लाभान्वित हुआ हूं एवं आशा करता हूं कि अन्य पाठकगण भी इससे समुचित लाभ प्राप्त करेंगे।
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