भूमिका
मुद्राराक्षस" विशाखदत्त का सुप्रसिद्ध संस्कृत नाटक है जिसमें चाणक्य और चन्द्रगुप्त सम्बन्धी ख्यातवृत्त के आधार पर चाणक्य की राजनीतिक सफलताओं का अपूर्व विश्लेषण मिलता है। भारतीय इतिहास में गुप्त साम्राज्य का उल्लेखनीय स्थान है। लगभग तीसरी शती के अन्तिम चतुर्थांश से छठी शती ई० के आरम्भ तक लगभग २५० वर्षों तक गुप्त सम्राटों ने भारत पर शासन किया। इस अवधि में भारत का नव-निर्माण हुआ और वह काल स्वर्णयुग का पर्याय माना जाता है। गुप्तों के सम्पन्न, शक्तिशाली और नैतिक शासन में भारत ने भौतिक और आध्यात्मिक उभय दृष्टियों से समान उन्नति की। उद्योग, व्यवसाय और शिल्प का अभूतपूर्व विकास हुआ। इन क्षेत्रों में देश की ख्याति विदेशों की सीमा में भी पहुंची तथा इसकी सामाजिक, वैचारिक, साहित्यिक, कलात्मक तथा प्रशासनिक उपलब्धियां भारत के लिए ही नहीं अपितु उस काल के सामाजिक विश्व के लिए भी अनुकरणीय बनीं। मुद्राराक्षस नाटक संस्कृत नाटक साहित्य में अपना पृथक् स्थान रखता है। इसमें नाट्यशास्त्र के ज्ञाता होने पर भी लेखक उनके विषयों का अनुसरण नहीं करते। इस नाटक का नायक भारतीय इतिहास के सर्वप्रथम सर्वप्रसिद्ध सम्राट का निर्माता एवं उसके वंश के साम्राज्य का संस्थापक है। अतः शताब्दियों से संस्कृत नाट्य परम्परा की मान्यताओं के विरोध में अनुपम नाट्यकृति मानी जाती है। इसमें चाणक्य एवं राक्षस के राजनीतिक षड्यंत्रों के परिणामस्वरूप नये परिवेश, नये मूल्य तथा तत्कालीन सांस्कृतिक चेतना का सुन्दर समन्वय हुआ है। 'मुद्राराक्षस' यद्यपि नाट्य साहित्य की एक सुन्दर विधा में लिखित कालिदास के पश्चात् नाटक के मार्ग में एक नवीन मोड़ प्रदान करने वाला नाटक है किन्तु इसमें समाज के परिवेश का अंकतंत्र ही अभिधेय होने के कारण तत्कालीन समाज, संस्कृति आदि का प्रभूत ज्ञान देता है। जिसमें देश की भौगोलिक स्थिति, सीमाओं, पर्वतों, नदियों, पशु-पक्षियों के साथ राजकीय जीवन तथा आन्तरिक एवं परराष्ट्र नीतियों पर भी यथावत् ध्यान दिया गया है। इस कथा का उल्लेख विष्णुपुराण एवं भागवत में भी हुआ है। उनके अनुसार कौटिल्य ने नन्द को मारकर चन्द्रगुप्त को उसके स्थान पर राजा बनाया था। दशरूपककार धनन्जय के अनुसार मुद्राराक्षस की कथा वृहत् कथा से ली गयी है। कथासरित् सागर में वृहत्कथा का तात्विक अंश उपलब्ध है किन्तु मुद्राराक्षस की कथावस्तु का विस्तृत विवरण कथा सरित सागर में नहीं मिलता। अतः यह कथानक नाटककार की कल्पना ही उपज कही जा सकती है। इसमें कुल मिलाकर सात अंक है। सर्वत्र युद्ध की चर्चा है लेकिन कहीं युद्ध नहीं है, कोई रक्तपात नहीं हुआ है। इस घटना के आधार पर नाटक का नामकरण किया गया है। "मुद्राराक्षस" में अभियोजित प्रकरणों से तत्कालीन सामाजिक जीवन स्पष्ट होता है। वस्तुतः ब्राह्मण धर्म देश का प्रमुख धर्म था। शैव और वैष्णवों की अच्छी स्थिति थी और इस प्रकार मुद्राराक्षस तद्युगीन भारत के सामाजिक जीवन का दर्पण और सांस्कृतिक नवजागरण का उद्घोषक है। प्रथम अध्याय सामान्य परिचय के शीर्षक से नाटक के सांस्कृतिक महत्व, कवि के व्यक्तित्व, तथा समसामयिक कवियों से सम्बद्ध है। इसमें मुद्राराक्षस के विभिन्न संस्करणों पर भी विचार करते हुए उसके पाठ भेद पर आलोचनात्मक दृष्टि रखी गयी है। दूसरे अध्याय में मुद्राराक्षस के ऐतिहासिक तथ्यों का विश्लेषण है, इसमें ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर मुद्राराक्षस के उल्लिखित तथ्य और कथ्य के साथ वृत्त के ऐतिहासिक तथा काल्पनिक तत्वों को पृथक् विश्लेषित किया गया है। तृतीय अध्याय सामाजिक जीवन पर आधारित है, इसमें वर्ण व्यवस्था, जाति, कुल, आश्रम, विवाह-संस्कार आदि का विस्तृत वर्णन हुआ है। यहां तक कि विवाह का वय, विवाह की विधि, कन्यादान, कन्या के गुण, बहुपनित्व एवं बहुपतित्व, नियोग, वृद्धविवाह आदि का भी उल्लेख मिलता है। चतुर्थ अध्याय में समाज में नारियों की स्थिति पर विचार किया गया है, नारी स्थान के अन्तर्गत तत्कालीन स्त्रियों की सामान्य विशेषताएं अन्विष्ट हैं तथा कुलटायें, प्रतिव्रताएं, जिस प्रकार से अपने जीवन से पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन को प्रभावित करती थीं उनका वर्णन है। इसके साथ ही वेश्या, देवदासी और सती प्रथा के सम्बन्ध में भी बने बहुमूल्य विचार इस नाटक में मिलते हैं। पंचम अध्याय राजतंत्र एवं शासन व्यवसाय पर आधारित है। इसके राजा के महत्व और उनके दायित्व और उनके उत्तराधिकारियों के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण विचार मिलते हैं। मुद्राराक्षस में मंत्रिमंडल, षाड्गुण्य सिद्धान्त, सैन्य संगठन और युद्ध की आचार संहिता पर भी उत्कृष्ट विचार मिलते हैं।
लेखक परिचय
लेखकका नाम: डॉ० कृष्ण प्रसाद पिता : स्व० राजेश्वरी प्रसाद जन्म-तिथि : २९-०१-१९६२ करनसराय, सासाराम, वर्तमान पता रोहतास (बिहार) इतिहास विभाग, शेरशाह कॉलेज, सासाराम (वीर कुँवर सिंह विश्व-विद्यालय) लगभग २७ वर्षों से इतिहास विभाग में अध्यापन, अनेक शोध पत्र, विशिष्ट शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित, कई राष्ट्रीय स्तर की गोष्ठियों में शोधपत्रों को बाचना। महाविद्यालय में वर्सर' पद पर तीन वर्षों तक सफलतापूर्वक कार्य सम्पादन तथा हिन्दी साहित्य सम्मेलन रोहतास के प्रचार सचिव ।
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