पुस्तक परिचय
"... कभी-कभार पति प्राप्त होता है मुझे और सो भी निचुड़े हुए नींबू की तरह..." "देखो लक्ष्मी !... जो जिसके योग्य होता है, उसे वही प्राप्त होता है। निचुड़ा हुआ नींबू कड़वा भी होता है। इसलिए कान खोलकर सुन लो कि अगर तुम अपने-आप मायके नहीं चली जातीं तो मैं तुम्हें धक्के मार-मारकर यहाँ से निकाल दूँगा।" विभाजन-पूर्व के भारत की पृष्ठभूमि पर लिखी गई मध्यवर्गीय हिन्दू परिवारों के टूटने की यह एक दिल को छू देनेवाली कहानी है। महान कथाशिल्पी गुरुदत्त का यह सामाजिक उपन्यास अत्यन्त रोचक तथा एक से बढ़कर एक चौंका देने वाली घटनाओं से भरपूर है।
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