हिन्दी के समकालीन साहित्य की विधाओं में व्यक्ति, परिवार, समाज, देश और वैश्विक स्तर पर घटित हो रहे सूक्ष्म और स्थूल परिवर्तनों का यथार्थ चित्रण हो रहा है। आधुनिक युग में परिवर्तन की गति अपेक्षाकृत अधिक तीव्र है। प्राचीन एवं मध्ययुगीन मान्यताएँ, अवधारणाएँ और विचार परिवर्तित होकर नये रूप में दृष्टिगत हो रहे हैं। संचार क्रांति ने इस परिवर्तन को और अधिक तेज और गतिशील बना दिया है। उपनिवेशवाद, जो सोलहवीं शताब्दी में ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन के साथ भारत में प्रविष्ट हुआ, वह आज नव उपनिवेशवाद के रूप में पैर जमा रहा है। यह बात दूसरी है कि पहले उसका विस्तार ब्रिटेन से हुआ और अब अमेरिका से हो रहा है। नव उपनिवेशवाद के माध्यम से विकसित देशों का प्रयत्न विकासशील देशों को अपने चंगुल में फँसाएँ रखना और उनका भरपूर शोषण करना है। इसके लिए वे अनेक प्रकार के षड़यंत्र, हथकण्डे और संधियाँ करते हैं। विकासशील गरीब देशों को विकास का सपना दिखाकर अपने औद्योगिकीकरण के माध्यम से देशी रोजगारों, जीविकोपार्जन के साथनों को अतिक्रमित कर पंगु बना रहे हैं। विकासशील देश कर्ज के बोझ से दब रहे हैं। हमारे जीवन मूल्य विकृत अथवा नष्ट हो रहे हैं। भारत का प्रधान कृषि कर्म पूर्णतः प्रभावित हो गया है। नई पीढ़ी अपने संस्कारों अथवा अन्य महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलापों से मुख मोड़ रही है। नव उपनिवेशवाद के इंद्रजाल से विमोहित होकर वह मकड़जाल में निरन्तर फँसती और उलझती जा रही है। नव उपनिवेशवाद तेजी से महामारी की तरह फैल रहा है। इसके परिणामस्वरूप मानवता पर घोर संकट आ गया है। आतंकवाद, फासीवाद, स्वार्थवाद मानवता को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। संवेदनाएँ अति संकुचित हो रही हैं। इन सब विसंगतियों और विडंबनाओं से साहित्य ही संघर्ष कर सकता है। मानवीय संवेदनाओं को साहित्य संबलित कर नष्ट होने से बचा सकता है। भटकती मानवता को सही रास्ते पर लाने में साहित्य ही समर्थ है।
समकालीन साहित्य सर्जकों में उदय प्रकाश ऐसे साहित्यकार हैं जिनके साहित्य में व्यक्ति और समाज में व्याप्त विकृतियों का यथार्थ चित्रण है। उदय प्रकाश अपनी कविताओं में संवेदनहीनता और भोगवादी जीवन दृष्टि को बेनकाब करते हैं तथा इनको बढ़ाने वाले सियासत बाजों और षड़यंत्रकारियों को भी चिह्नित करते हैं। वे निर्भीक मना साहित्यकार हैं। अन्याय, शोषण, भ्रष्ट राजनीति को वे बर्दास्त नहीं करते हैं। 'तिब्बत', 'सुनो कारीगर', 'सरकार', 'अबूतर कबूतर' जैसी उनकी कविताओं में गहरा आक्रोश और विरोध व्याप्त है। उदय प्रकाश का कवि कर्म वैश्विक चिन्तन से परिपूर्ण है। 'दो हाथियों की लड़ाई' में विश्व की दो महाशक्तियाँ (रूस और अमेरिका) आपस में टकराती हैं और उनका दुष्परिणाम मिलता है
कमजोर और विकासशील देशों को। 'रात में हारमोनियम' और 'एक भाषा हुआ करती है'-इन दोनों कविता संग्रहों की कविताएँ समाज में व्याप्त अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करती हैं और मुक्त कण्ठ से उद्घोष करती हैं कि अपराधियों को बचाने और अपराध जगत को सुरक्षित रखने में सरकार और न्याय व्यवस्था दोनों का सक्रिय योगदान रहता है।
उदय प्रकाश जी यद्यपि सफल कवि हैं तथापि प्रसिद्धि कहानीकार के रूप में उन्हें अधिक मिली है। 'दरियाई घोड़ा', 'तिरिछ', '... और अंत में प्रार्थना', 'पॉल गोमरा का स्कूटर' उनके उल्लेखनीय कहानी संग्रह हैं। इनकी कई कहानियाँ बहुचर्चित हैं। इन संग्रहों की अधिकांश कहानियाँ औपनिवेशिक ताकतों के प्रति विद्रोह करती दिखाई देती हैं। नव उपनिवेशवाद भूमण्डलीकरण के रूप में व्यापक हो रहा है। भूमण्डलीकरण की अवधारणा खोखली है तथा यथार्थ से बहुत दूर भी। विज्ञापन के माध्यम से असत्य को सत्य सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। उदय प्रकाश का साहित्य यह रहस्य उद्घाटित करता है कि अच्छी वस्तुओं के विज्ञापन की कोई जरूरत नहीं होती। विज्ञापन बाजारवाद को बढ़ाता और जनसामान्य की बुद्धि को भ्रमित करता है। वह मानवीय मूल्यों और गुणों को बिकाऊ बनाता है।
'नव उपनिवेशवाद और उदय प्रकाश का साहित्य' ग्रंथ में उपनिवेशवाद, अस्तित्ववाद, - मनोविश्लेषणवाद, मार्क्सवाद, यथार्थवाद तथा समकालीन नवीन साहित्यिक मान्यताओं एवं अवधारणाओं का गंभीर एवं तथ्यात्मक विश्लेषण है। इस ग्रंथ में उदय प्रकाश के समस्त साहित्य का गवेषणात्मक एवं समीक्षात्मक विवेचन उनके साहित्य एवं उनकी विचारधारा को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण है। इसमें लेखक ने आधुनिकता, उत्तर आधुनिकता, संरचनावाद, उत्तर संरचनावाद, नव मार्क्सवाद तथा अन्य नई संरचनाओं का समुचित एवं स्पष्ट विवेचन किया है। इस ग्रंथ में सिद्धांत पक्ष एवं व्यवहार पक्ष- दोनों बहुत समृद्ध हैं। उदय प्रकाश के साहित्य की समालोचना यथार्थवाद, जादुई यथार्थवाद, रूपक तत्त्व, प्रतीक, बिम्ब और फैंटेसी के माध्यम से की गई है। इससे आलोचना को एक नई दृष्टि मिलती है। इस पुस्तक में गवेषणात्मक समीक्षा की सभी विशिष्टताएँ समाविष्ट हैं। डॉ० धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने नव उपनिवेशीकरण के परिप्रेक्ष्य में उदय प्रकाश के साहित्य का सर्वांगीण एवं प्रमाणिक विवेचना की है। समकालीन साहित्य की यथार्थ समझ के लिए यह पुस्तक बहुत उपादेय है। इस पुस्तक में अभिव्यक्त विचार बहुत स्पष्ट और साफ-सुथरे हैं। अतः यह सुधी पाठकों, अनुसंचित्सुओं और विदूतज्ञ्जनों को परितुष्टि प्रदान करने में सफल होगी ।
मेरी मंगलकामना है कि नवोदित समीक्षक डॉ० धर्मेन्द्र प्रताप सिंह की कारयित्री एवं भावयित्री प्रतिभा निरंतर विकसित हो और उनकी लेखनी अविराम गति से हिन्दी जगत को अधिकाधिक समृद्ध करती रहे ।
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