'निरुक्त-विमर्श' शीर्षक इस ग्रन्थ में आचार्ययास्कविरचित 'निरुक्त' में प्रतिपादित इन प्रमुख विषयों का विवेचन किया गया है: निरुक्त की उपयोगिता, निरुक्तगत व्याकरण-शास्त्रीय पारिभाषिक शब्द, पद-विभाग, उपसर्ग, निपात, नामों का आख्यातजत्व, मन्त्रों की सार्थकता, निर्वचन के सिद्धान्त, मन्त्र और विविध प्रतिपाद्य विषय, वैदिक ऋषि, देवता की अवधारणा; अग्नि, जातवेदाः तथा वैश्वानर; स्वरूप-निरुपण, छन्दोविमर्श, वेदार्थ-चिन्तन, स्वर तथा वेदार्थ, ऐतिहासिकवेदार्थपद्धति, वेदार्थ की अध्यात्म-प्रक्रिया, वैदिक आख्यान, निरुक्तगत लाक्षणिक प्रयोग, उपमा-विचार, गो-शब्द के विविध अर्थ, दायाधिकार और निरुक्तशास्त्र की भारतीय परम्परा और आचार्य यास्क। इन विषयों को प्रतिपादन-सौर्य की दृष्टि से 23 अध्यायों में विभक्त किया गया है।
आचार्ययास्कप्रणित 'निरुक्त' 'निघण्टु' के भाष्य के रूप में हैं और निरुक्त-वेदाङ्ग का एकमात्र उपलब्ध ग्रन्थ है। 'निरुक्त-विमर्श' शीर्षक प्रस्तुत ग्रन्थ में निरुक्तगत उपरिनिर्दिष्ट विषयों का सारगर्भ एवं प्रमाणपुरस्सर विवेचन किया गया है। विश्वास है कि लेखक के अन्य ग्रन्थों की भांति प्रस्तुत ग्रन्थ भी विद्वानों का समादर प्राप्त करेगा।
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