प्रस्तावना
लेफ्टिनेंट जनरल वी.पी. मलिक पीवीएसएम, एवीएसएम (सेवानिवृत्त) पूर्व सेना प्रमुख, भारतीय सेना पिछले साढ़े तीन दशकों से भी अधिक समय से जम्मू और कश्मीर में पाकिस्तान ओर से छेड़ा गया छद्म युद्ध भारत के लिए एक प्रमुख सुरक्षा चुनौती रहा हैं। बलपूर्वक राज्य का कोई हिस्सा हथियाने में नाकाम रहने के कारण पाकिस्तान ने आतंकवाद के माध्यम से शांति को अस्थिर करने और अर्थव्यवस्था व विकास की गतिविधियों में बाधा डालने का प्रयास किया है। भारतीय सेना ने दिन-रात चलाए गए आतंकवाद-रोधी अभियानों, अन्य सहयोगी एजेंसियों के साथ तालमेल और स्थानीय लोगों के समर्थन के माध्यम से आतंकी ढाँचे को ध्वस्त करने तथा आतंकवादियों को खत्म करने में सफलता प्राप्त की है। स्वतंत्रता के बाद से अधिकांश समय सैन्य तानाशाही के नेतृत्व में रहने वाला पाकिस्तान वर्तमान में राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक बदहाली और बिगड़ती सुरक्षा स्थिति के भारी संकट का सामना कर रहा है। इसके बड़े प्रांतों में आतंकवाद फिर से सिर उठा रहा है और पूर्वी व पश्चिमी सीमाओं पर उसकी ओर से पैदा किया गया तनाव अपने आप में गंभीर है। हाल के वर्षों में गंभीर राजनीतिक दखलंदाजी के कारण पाकिस्तानी सेना अपनी विश्वसनीयता खो चुकी है और सामाजिक असंतोष के बीच उसकी छवि को बड़ा नुकसान पहुँचा है। डूबती अर्थव्यवस्था, 20 प्रतिशत की मुद्रास्फीति दर, बढ़ती बेरोजगारी और ऊर्जा व औद्योगिक संकट के साथ पाकिस्तान तेजी से अपनी ही बनाई अराजकता में डूब रहा है। दुनिया में प्रासंगिक बने रहने के लिए जूझते पाकिस्तान की सेना के जिहादी मानसिकता वाले नए नेतृत्व ने अप्रैल 2025 में पहलगाम में एक बड़े आतंकी हमले की योजना बनाकर भारत को उकसाने का प्रयास किया। उड़ी और पुलवामा आतंकी हमलों के बाद भारत की प्रतिक्रियाओं (सितंबर 2016 में सीमा पार सर्जिकल स्ट्राइक और 26 फरवरी, 2019 को पाकिस्तान के भीतर बालाकोट हवाई हमले) के बावजूद पाकिस्तानी सेना और छद्म युद्ध में शामिल उसके आतंकी संगठनों ने भारत के राजनीतिक और सैन्य संकल्प को आँकने में गलती कर दी। 22 अप्रैल, 2025 को बैसरन घाटी (पहलगाम) में हुए उस भयावह, सांप्रदायिक रूप से प्रेरित आतंकी हमले के बाद भारत के राजनीतिक नेतृत्व ने एक बार फिर दृढ़ इच्छाशक्ति एवं निर्णायक संकल्प का प्रदर्शन किया और पाकिस्तान व उसके आतंकी संगठनों के खिलाफ कठोर आर्थिक तथा राजनयिक रूप से दंडात्मक काररवाइयाँ कीं। तुरंत निर्णय लेने और चट्टानी नैतिक समर्थन से सुनिश्चित किया कि सेना और जनता के बीच उच्चतम स्तर का तालमेल हो। इस प्रकार ऑपरेशन में सफलता के लिए परिस्थितियों को अनुकूल बनाया गया। साहस और स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ भारत के राष्ट्रीय आक्रोश को सोच-विचारकर की गई सैन्य काररवाई में बदला गया। यही नहीं, पाकिस्तान की ओर से दी जाने वाली परमाणु हथियारों की धमकी भी बेनकाब कर दी गई। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हमारी काररवाई पूरी तरह से संकल्पबद्ध और संगठित थी। हर कदम का स्पष्ट उद्देश्य और अंतिम लक्ष्य तय था। हमारे हमले सटीक खुफिया जानकारी पर आधारित थे। इससे यह साबित हुआ कि सीमित संसाधनों के बावजूद हमारी सेना कितनी प्रभावी और सक्षम है। हमने अपने संवेदनशील ठिकानों की भी मजबूती से रक्षा की।
लेखक परिचय
लेफ्टिनेंट जनरल कंवल जीत सिंह ढिल्लों, PVSM, UYSM, YSM, VSM (सेवानिवृत्त), नेशनल डिफेंस एकेडमी के पूर्व छात्र, 1983 में कमीशंड इन्फैंट्री ऑफिसर (राजपूताना राइफल्स) हैं। 'टाइनी' ढिल्लों के नाम से लोकप्रिय, उन्होंने कश्मीर और पूर्वोत्तर के उग्रवाद एवं आतंकवाद-विरोधी ऑपरेशनल क्षेत्रों में व्यापक रूप से सेवाएँ दीं। पुलवामा आई.ई.डी. विस्फोट और अनुच्छेद 370 व 35ए के निरस्तीकरण के सबसे चुनौतीपूर्ण माहौल के दौरान उन्होंने श्रीनगर स्थित 15 कोर की कमान सँभाली। जनवरी 2022 में वे चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के अंतर्गत डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी के डायरेक्टर जनरल के रूप में सेवानिवृत्त हुए। उनकी पहली पुस्तक 'कितने गाजी आए, कितने गाजी गए' राष्ट्रीय बेस्टसेलर रही है, जिसे क्रॉसवर्ड बुक अवार्ड्स-2024 में नॉन-फिक्शन श्रेणी में पॉपुलर च्वॉइस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। प्रस्तुत पुस्तक 'ऑपरेशन सिंदूर द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ इंडिया'ज डीप स्ट्राइक्स इनसाइड पाकिस्तान' को भी अपार सफलता मिली है।
पुस्तक परिचय
22 अप्रैल, 2025 को दक्षिण कश्मीर के पहलगाम की बैसरन घाटी में एक भयानक हमला हुआ। पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी, इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) की ओर से प्रायोजित लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के प्रॉक्सी आतंकी संगठन, द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने घाटी की शांति को भंग करते हुए भारी हथियारों के साथ गोलीबारी की, जिसमें 26 निदर्दोष पर्यटक मारे गए और कई अन्य घायल हो गए। यह हमला भारत के धार्मिक सौहार्द की तहस-नहस करने और पूरे देश में व्यापक आक्रोश पैदा करने का एक कुत्सित प्रयास था। भारत ने तय किया कि वह इस घटना का उचित जवाव देगा।' ऑपरेशन सिंदूर' से दिए गए जवाव ने न केवल देश बल्कि पूरी दुनिया को झकझोर दिया। अपने इस मिशन में भारत ने अपने सैन्य आधुनिकीकरण और शक्ति का जबरदस्त प्रदर्शन किया। इस अभियान ने जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े बहावलपुर और मुरीदके के आतंकी कैंपों और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकी लॉञ्च पैड्स को निशाना बनाकर पाकिस्तान और आतंक की फैक्टरी के खिलाफ एक कड़ा संदेश दिया। यह पुस्तक परमाणु शक्तिसंपन्न दो दुश्मन देशों के बीच हुए चार दिनों के युद्ध की बारीक जानकारी और घटनाक्रम को प्रस्तुत करती है। लेखक ने नैरेटिव की जंग में मीडिया और सोशल मीडिया का इस्तेमाल चतुराई से करने के महत्त्व को बताया है। साथ ही न्यू नॉर्मल और युद्ध के सामने आते नए नियमों के बीच आगे का रास्ता भी सुझाया है। अब तक जो जानकारियों सामने नहीं आई हैं, उनसे परदा उठाते हुए लेफ्टिनेंट जनरल टाइनी ढिल्लों ने ऑपरेशन सिंदूर की एक ऐसी झलक पेश की है, जो भारतीय सेना की ताकत और प्रतिकूल परिस्थितियों में भारत की एकता का प्रमाण है। नष्ट किए गए ठिकानों की तसवीरों के साथ यह पुस्तक आतंकवाद के गहरे प्रभाव और शांति व न्याय की उम्मीद बनाए रखने का मुद्दा जोरदार ढंग से उठाती है।
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