सेना की गौरवमयी वर्दी पहने रणक्षेत्र में जाते समय उसने अपनी प्रेयसी को उदास देख जेब से वॉलेट निकाला था, वॉलेट से एक ब्लेड निकाल अपनी उँगली चीर दी और बहते हुए खून से उसकी माँग भर दी थी तथा वादा करता गया था, वो जल्द ही लौटेगा। पर कहाँ, देश की खातिर उसने वादा तोड़ दिया, लौटा भी तो तिरंगे में लिपटकर। आज भी उसकी प्रेयसी अपने शाश्वत प्रेम की खातिर अविवाहित है, जैसे अभी भी उसका इंतज़ार है।
ये कहानी है परमवीर चक्र विजेता विक्रम बत्रा की और उसकी प्रेयसी डिंपल चीमा की। यही इंतज़ार उनके परिवार को भी था। उनके पिता जी०एल० बत्रा जी लिखते हैं-
"दुनिया के लिए वे एक हीरो, एक जाँबाज सैनिक और कारगिल विजय में योगदान देनेवाले एक होनहार ऑफिसर तथा सच्चे देशभक्त थे, लेकिन हमारे लिए तो वे हमारा प्यारा-दुलारा बेटा और 24 साल के एक नन्हे-से फरिश्ते थे। हमने उनकी शादी, उनके परिवार और उनके भविष्य के लिए कैसे-कैसे सपने सजाए थे। हम यहाँ उम्मीद लगाए बैठे थे कि वे लड़ाई जीतकर वापस आएँगे तो हम सब मिलकर उनकी उपलब्धियों पर जश्न मनाएँगे। हम उनसे उनके मिशन के बारे में पूछेंगे, उनके वीरतापूर्ण कार्यों की कहानियाँ सुनेंगे और वे हमें बताएँगे कि किस प्रकार वह ऑपरेशन पर गए और वहाँ किस तरह हम सबको मिस किया।
हमने विक्रम के सारे पत्र सँभालकर रखे थे और यही सोच-सोचकर मन को तसल्ली दे रहे थे कि कुछ समय की तो बात है, उसके बाद हम सब उनका पत्र रिसीव करने की बजाय उनको ही रिसीव करेंगे। हम सोच रहे थे कि वे लड़ाई से सुरक्षित वापस लौटकर हमारी बाँहों में आएँगे, लेकिन यहाँ उनकी जगह पर उनका पार्थिव शरीर आया और हमारे कान उनकी मधुर आवाज सुनने और हमारी आँखें उनकी चमकती आँखों को देखने के लिए तरसती ही रह गई। विक्रम ने देश के लिए अपने सपनों, अपनी इच्छाओं और अपनी खुशियों को त्याग दिया था।"
जी०एल० बत्रा, 'कारगिल के परमवीर कैप्टन विक्रम बत्रा'
ऐसे अनेक परमवीर हैं, जो राष्ट्र की रक्षा में स्वाहा हो गए। परमवीर चक्र केवल एक पदक नहीं है, यह राष्ट्र की आत्मा का एक अंश है, जो बलिदान की अग्नि में तपता है और कल्पना से परे साहस से परख कर निकलता है। प्रत्येक पुरस्कार विजेता केवल वर्दीधारी सैनिक नहीं है, बल्कि भारत के गहनतम् मूल्यों-कर्त्तव्य, सम्मान और मातृभूमि के प्रति प्रेम का जीवंत प्रतीक है।
एक युवा सैनिक, शायद 20-25 वर्ष का, हिमालय की बर्फीली चोटियों पर खड़ा है। हवा उसके शरीर को बर्फीले चाकुओं की तरह चीर रही है, और पहाड़ों की पतली हवा उसके फेफड़ों को जला रही है। वह जानता है कि दुश्मन आगे डटा हुआ है, उनकी मशीनगनें हर हरकत पर तन रही हैं। उसके पीछे तिरंगा और उसके साथियों की सुरक्षा है। आगे लगभग निश्चित मृत्यु है। और फिर भी, बिना किसी हिचकिचाहट के, वह आगे बढ़ता है। इसलिए नहीं कि वह गौरव चाहता है, बल्कि इसलिए कि वह चाहता है कि उसके सैनिक और उसका देश जीवित रहें।
परमवीर चक्र विजेताओं की कहानियाँ ऐसे ही पलों से भरी हैं। वे असाधारण दिल वाले साधारण इंसान हैं। वे गाँवों, छोटे कस्बों और शहरों से आते हैं, किसान परिवारों, शिक्षक परिवारों और साधारण पृष्ठभूमि से। वे किसी भी अन्य बच्चे की तरह बड़े होते हैं- धूल भरी गलियों में खेलते हुए, बेहतर जीवन के सपने देखते हुए- जब तक कि नियति उन्हें खतरे और अपनी प्यारी ज़मीन के बीच खड़े होने के लिए नहीं बुला लेती।
युद्ध में, वे एक ऐसी शांति का प्रदर्शन करते हैं जो लगभग अलौकिक हैं। गोलियाँ हवा को चीरती हैं, विस्फोट ज़मीन को चीर देते हैं, और फिर भी वे आगे बढ़ते रहते हैं। ज़ख्मों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, दर्द भुला देते हैं- मिशन ही एकमात्र वास्तविकता बन जाता है। आगे बढ़ने वाला हर कदम डर को चुनौती देता है। दिल की हर धड़कन आज़ादी के लिए एक ढोल की थाप है। और जब अंतिम क्षण आता है- जब जीवित रहना अब संभव नहीं होता- वे बिना किसी पछतावे के अपनी जान दे देते हैं। उनके अंतिम विचार अपने लिए नहीं, बल्कि झण्डे के लिए, उन साथियों के लिए होते हैं जो आगे बढ़ेंगे, और उन लोगों के लिए जो सैकड़ों मील दूर शांति से सो रहे हैं, कोई पहरा जो दे रहा है।
उनके परिवारों के लिए, गर्व असीम है लेकिन दुःख भी उतना ही है। एक माँ को वो मेडल मिलता है जो उसका बेटा कभी नहीं पहन सकता। एक पत्नी अपने बच्चों को पिता के आलिंगन की बजाय कहानियों के साथ बड़े होते देखती है। ये ज़ख्म गहरे और शाश्वत हैं, फिर भी वे उन्हें उसी साहस के साथ सहते हैं जो उनके प्रियजन ने युद्ध के मैदान में दिखाया था। परमवीर चक्र गणतंत्र दिवस परेड के दौरान धूप में चमकता है, लेकिन इसकी असली चमक एक माता-पिता के खामोश आँसुओं, एक साथी सैनिक के दृढ़ सलामी और उन लाखों दिलों में है जो अपनी सुरक्षा के लिए उस नायक के ऋणी हैं जिससे वे शायद फिर कभी न मिलें।
ये लोग सिर्फ ज़मीन की रक्षा नहीं करते, वे उम्मीद की रक्षा करते हैं। वे हमें याद दिलाते हैं कि आज़ादी की एक कीमत होती है, जो पैसे से नहीं, बल्कि खून और प्यार से चुकाई जाती है। और जब तक तिरंगा आसमान में लहराता रहेगा, हर परमवीर चक्र विजेता की आत्मा ज़िंदा रहेगी- शाश्वत, अडिग और धीर गंभीर, पूरी तरह से भारतीय ।
ये गाथा है सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र से विभूषित उन परम योद्धाओं की, अधिकांश जिन्होंने देश के लिए युवावस्था में ही आत्माहुति दे दी। इसमें वे भी हैं, जिन्होंने अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन करते हुए दुश्मन को मारकर या खदेड़कर सीमाओं की रक्षा की और जीवित लौटे। अपने देश के लिए एक सैनिक का बलिदान भक्ति और निस्वार्थ सेवा के उच्चतम रूप का प्रतीक है।
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