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पौराणिक नक्षत्र ज्योतिष- Pauranik Naksatra Jyotis: A Complete Research on Gods of Nakshatras in Vedas, Puranas, Upnishads, Taittiriya Brahmana and Mahabharata

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Specifications
Publisher: Motilal Banarsidass Publishing House, Delhi
Author Aniket Gupta
Language: HINDI
Pages: 416
Cover: HARDCOVER
9.5x6.5 Inch
Weight 680 gm
Edition: 2025
ISBN: 9789371002394
HBU383
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Book Description

पुस्तक परिचय

     

 

नक्षत्र का अर्थ है 'वह जो कभी नष्ट नहीं होता। यह उन तारामंडलों के निवास स्थापों का नाम है, जहां चंद्रगानों में से प्रत्येक में एक दिन बिताता है। नक्षत्रों की प्रणाली बहुत प्राचीन है। यहां तक कि प्रारंभिक वैदिक काल में भी इसका महाव था। अथर्ववेद और यजुर्वेद में इनके पूर्ण सूची दी गई है और इन्हें प्राचीन वैदिक देवताओं से जोड़ा गया है। नक्षत्रों की संख्या कुल 'सत्ताईस' होती है। 'पौराणिक रूप से', इन्हें दक्ष प्रजापति की बेटियों माना जाता है, जो एक महान ब्रहाांडीय उत्पत्ति के देवता थे। इन्हें ब्रह्मा द्वारा ब्रह्मांडीय विकास प्रक्रिया में सहायता करने के लिए विशेष रूप से नियुक्त किया गया था। दक्ष के अनेक संतानों में से, उनकी सत्ताईस बेटियों जो चंद्रमा से विवाहित हुई, ने ज्योतिषीय प्रभावों का स्रोत बना दिया। ये चांद्रमा के निवास स्थान, नक्षत्र, चीनी और अरबी ज्योतिष में भी दिखाई देते हैं, लेकिन पश्चिमी या यूरोपीय ज्योतिष में इनपर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है। आधुनिक भारतीय ज्योतिष में नक्षत्रों का अध्ययन कम होने के बावजूद, यह अभी भी एक महत्वपूर्ण और गहरी प्रणाली है जो जीवन के अनेक पहलुओं को प्रभावित करती है। हालांकि, आज के ज्योतिषीय दृष्टिकोण में अधिकतर ध्यान ग्रहों, राशियों और गोचर की स्थितियों पर केंद्रित है, नक्षत्रों का अध्ययन अभी भी अपने विशिष्ट स्थान पर बना हुआ है। यदि कोई व्यक्ति गहरे और सटीक ज्योतिषीय विश्लेषण चाहता है, तो नक्षत्रों का अध्ययन अभी भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। पौराणिक काल में नक्षत्रों का ज्ञान ही ज्योतिष मूल आधार था। प्राचीन भारतीय समाज में ज्योतिष का गहरा में 28 का उल्लेख मिलता है जो चंद्रमा को 28 में हैं। इनको देवताओं नदियों और अन्य पौराणिक पात्र से जोड़ा गया है जो यहते हैं कि आकाशीय घटनाएँ और नक्षत्रों की स्थिति मानव जीवन और की घटनाओं को प्रभावित करती हैं। पौराणिक काल में हर नक्षत्र का एक विशेष देवता होता था, जो नक्षत्र के गुण और प्रभाव को नियंत्रित करता था। उदाहरण के लिए अश्विनी नक्षत्र के देवता अश्विनी कुमार थे, जो स्वास्थ्य और चिकिलरा के देवता माने जाते हैं। कृतिका नक्षत्र के देवता अग्नि देव थे, जो ऊर्जा और तेज का प्रतीक थे। प्रत्येक नक्षत्र के देवता के अनुसार व्यक्ति की विशेषताएँ और जीवन में आने वाली घटनाओं को निर्धारित किया जाता था। नक्षत्रों के प्रभाव को पौराणिक दृष्टिकोण से इस तरह देखा जाता था कि इन नक्षत्रों की स्थिति से एक व्यक्ति के जीवन के प्रमुख पहलू प्रभावित होते हैं, जैसे जन्म, मृत्यु, विवाह, यात्रा, और अन्य महत्वपूर्ण निर्णय। उदाहरण के लिए आश्लेषा नक्षत्र के देवता नाग होते हैं, जो जीवन में रुकावटों, संकटों, और रहस्यमय घटनाओं को प्रभावित करते हैं। यह नक्षत्र लोगों को साबधानी और समर्पण की आवश्यकता को संकेत करता है। पौराणिक काल में नक्षत्रों का उपयोग समय मापने के लिए किया जाता था। चंद्रमा के प्रत्येक नक्षत्र की गति को देखा जाता था और उसके आधार पर दिन, तिथि, और विशेष अवसरों का निर्धारण किया जाता था। पौराणिक काल में नक्षत्रों के आधार पर व्रत और पूजा निर्धारित किए जाते थे। यदि किसी व्यक्ति का जन्म किसी विशेष नक्षत्र में होता था, तो उस नक्षत्र के देवता की पूजा करने से उसका जीवन बेहतर बनाने की कोशिश की जाती थी।

     

 

आज के समय में, ज्योतिषीय जानकारियों का उपयोग सरलता और व्यावहारिकता के आधार पर किया जाता है। लोग अक्सर आसान और त्वरित उपायों की ओर आकर्षित होते हैं, जिसके कारण नक्षत्रों के गहन अध्ययन की आवश्यकता महसूस नहीं होती। इसी कारण से, ज्योतिष में नक्षत्रों का अध्ययन कम हो गया है। नक्षत्रों की स्थिति, चाल और गोचर में अंतराल बहुत अधिक होता है। नक्षत्रों का प्रभाव बहुत सूक्ष्म और दीर्घकालिक होता है, जो ज्योतिषीय रूप से साधारण व्यक्ति के लिए समझना और विश्लेषण करना कठिन हो सकता है। आधुनिक ज्योतिष में लोग तत्काल प्रभावों और समाधान के लिए अधिक आकर्षित होते हैं, जबकि नक्षत्रों के प्रभाव का अध्ययन दीर्घकालिक दृष्टिकोण से किया जाता है। साधारण ज्योतिषी को नक्षत्रों का ज्ञान नीरस, उबाऊ तथा कठिन महसूस होता है। इसके अतिरिक्त बाजार में उपलब्ध नक्षत्रों पर समस्त पुस्तकों में नक्षत्रों के देवता तो बताए गए हैं, परंतु वह क्यों उस विशेष नक्षत्र के देवता हैं और उसका क्या प्रभाव है, यह नहीं बताया गया है। अपनी ज्ञान सुधा को परिपूर्ण करने के लिए लेखक ने नक्षत्र के देवताओं पर वेदों, तैत्तिरीय ब्राह्मण, उपनिषदों, पुराणों तथा महाभारत में वर्णित नक्षत्रों के देवताओं पर गहन अध्ययन किया है। इस अनुपम पुस्तक में नक्षत्र के देवताओं के क्रियाकलापों के आधार पर जातक के जीवन पर ग्रहों के प्रभावों के साथ-साथ आध्यात्मिक तथा मनोवैज्ञानिक समाधानों का भी विस्तार में वर्णन मिलेगा। एक खण्ड अत्यंत आसान व दिलचस्प भाषा में नक्षत्रों के आधुनिक अनुसंधानों पर दिया गया है जो किसी भी पाठक को नक्षत्रों के विषय में वे जानकारियां उपलब्ध कराता है जो उसको गहन अध्ययन के लिए प्रेरित करेगा।

     

 

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