साहित्य के एक विशिष्ट रसक्षेत्र के रूप में मुझे जीवनचरित्रों का आकर्षण रहा है। आंद्रे मोर्वा का कवि शेली विषयक Ariel मुझे बहुत पसंद आया था, जो उपन्यास स्वरूप में है। जबकि जेम्स बोजेल का Life of Samuel Johson सूचना तथ्यलक्षी है। मुझे इन दोनों के बीच का मार्ग निकालना था। महाराजा कृष्णकुमारसिंहजी का जीवनचरित्र 'प्रजावत्सल राजवी' विपुल अनुसंधान करके तैयार किया गया है और साथ ही रोचक बनाने का प्रयत्न भी किया है।
महाराजा के पूर्वजों सेजकजी गोहिल, देपालदे गोहिल, राणजी, मोखड़ाजी, वखतसिंहजी 'आताभाई', विजयसिंहजी वगैरह आदि के विषय में दंतकथाएँ मिलती हैं, जिसे झवेरचंद मेघाणी ने 'सौराष्ट्रनी रसधार' में आलेखित किया है। दंतकथाओं को इतिहास नहीं माना जा सकता, परंतु उन कथाओं में बहुत कुछ सत्य सुरक्षित होते हैं। लोगों की आस्थाओं और मान्यताओं से उनको आकार दिया गया होता है। उसी तरह ऐसे कथानकों के स्वरूप में निकट का अतीत भी आसानी से ऐसी कथा का रूप धारण कर लेता है। ऐसा मुझे लगा है कि महाराजा के विषय में मेरे द्वारा प्राप्त की गई बहुत-सी कथाएँ दंतकथाओं की रचना-प्रक्रिया दर्शा रही हों। महाराजा कृष्णकुमारसिंहजी के जीवन के आसपास लोगों की आस्था ने कुछ नक्काशी काम किया हो, ऐसा भी अनुभव होता है।
जीवनचरित्र के लेखक को तथ्यों की छानबीन करनी होती है, पर उससे भी अधिक उसे तथ्यों के आंतरसत्व को समझना पड़ता है। वैसी समझ प्राप्त करने के प्रयास में जीवनचरित्र के नायक के चित्ततंत्र की भी थाह लेनी होती है। मैंने कहीं, कहीं पर ऐसे प्रयास किए हैं। इस दृष्टि से महाराजा के संवादों तथा मनोमंथनों को रखा है। उनमें से कुछ यथार्थ प्रसंगों पर आधारित है। जहाँ वास्तविक आधार नहीं है वहाँ भी संभाव्यता को ध्यान में रखा है। विशेष प्रसंगों पर महाराजा कैसे विचार करते हैं, बोलते हैं, व्यवहार करते हैं, उन्हें ध्यान में रखकर तदनुसार आलेखन किया गया है।
महाराजा के जीवनचरित्र के लेखन में मैंने केवल गुणकीर्तन करने का आशय नहीं रखा है, अपितु उसमें पात्रचित्रण, वर्णन, कथन, संवाद इत्यादि पहलुओं पर ध्यान देकर साहित्यिक पुट देने का प्रयत्न किया है। एतदर्थ मैंने महाराजा के समय के सामाजिक, राजनीतिक, मानसिक परिवेश को भी जीवंत रूप से प्रकट करने का प्रयत्न किया है।
महाराजा के जीवन-प्रसंग मुझे बड़ी संख्या में मिले हैं। उन्हें विविध रचना-रीतियों से जोड़ लेने का प्रयास मैंने किया है। अनेक प्रसंग तो लोकजिह्वा पर घूमते रहकर दंतकथा का रूप धारण करते हुए मालूम पड़े हैं, विविध माध्यमों में उल्लेख पाते रहे हैं। उन पर राजा-प्रजा की प्रेमभावना के रंग चढ़े हैं। पुरानी लोककथाओं में लोकमान्यताओं द्वारा कथानकों का पिंड निर्मित होता है, वैसी प्रक्रिया यहाँ भी देखने को मिली है। लोकसाहित्य के संपादन के विषय में झवेरचंद मेघाणी ने लोकसाहित्यः 'धरतीनं धावण' (धरती माँ का दूध) जो बात लिखी है, वह यहाँ याद आये बिना न रहे, 'घटना का वर्णन करते समय संपादक लोकोक्त वृत्तांत के प्रति चाहे जितना वफादार रहा हो फिर भी उसमें वह स्वयं अपने मन पर पड़े हुए रंगों की मिलावट किये बिना रह नहीं सकता। खुद पात्र के साथ उसे तादात्म्य सिद्ध करना ही पड़ता है। ऐतिहासिक प्रकृति तथा अन्य हलकी-गाढ़ी रेखाएँ पा जाने के पश्चात् वह विवरण के तथ्यों को स्वयं ही अनेक स्थानों पर भर लेता है। कथा रूप में कहते समय स्वयं ऐतिहासिक मर्यादा को मान देता है। फिर भी ऐतिहासिक वस्तु की मौत्र रिपोर्टिंग करना भी उसे नहीं पुसाता। इन सभी मर्यादाओं के बीच इतिहास पर थोड़ा-बहुत बरक चढ़े बिना नहीं रह सकता। मौखिक परंपरा में चली आ रही घटनाओं पर इस तरह अनेक कल्पनाओं तथा भावनाओं की पर्त चढ़ी ही होती है। जैसे-जैसे समय अधिकाधिक बीतता जाता है, वैसे-वैसे पपड़ी की यह पर्त अधिक मोटी होती जाती है।
यहाँ तो महाराजा की जीवनकथा का समय एकदम निकट अतीत का है। मेरे जैसे बहुत से लोगों ने उन्हें देखा, जाना और सुना है। उनके बारे में कोई पुस्तक नहीं लिखी गई है, फिर भी लेख तथा संस्मरण के रूप में बहुत कुछ प्रकाशित हुआ है। वर्षों तक महाराजा के निकट साथी रहे किरीटसिंहजी गोहिल ने उनके बारे में चार लेख लिखे हैं। उनमें निहित अहोभाव एक ओर रख दें, तो भी उनमें महाराजा के आंतरिक व्यक्तित्व की अनेक झाँकियाँ मिलती हैं। भावनगर समाचार के संपादक जयंतिलाल मोरारजी मेहता द्वारा लिखित 'महाराजा कृष्णकुमारसिंहजीनो राज्याभिषेक अने लग्न' तथा 'छेल्ली मुसाफिरी' (अंतिम यात्रा) पुस्तकों में भी महाराजा के व्यक्तित्व का प्रतिबिंब अंकित है। प्रकृति के विषय में ग्रंथ लिखनेवाले मुकुंदराय वी. पाराशर्य, 'लाइफ विद एन इंडियन प्रिंस' के अमेरिकी बाजदार लेखक क्रेगहेड बंधुओं इत्यादि ने महाराजा के जीवन के अनेक प्रसंगों को आलेखित किया है। महाराजा की सबसे छोटी राजकुमारी रोहिणीदेवी जाडेजा ने संतों के जीवन प्रसंगों को आलेखित करनेवाली पुस्तक 'अलखना ओवारेथी' (अलख के घाट से) प्रकाशित की है। और उन्होंने मुझे महाराजा के अनेक संस्मरण लिखकर भेजे हैं। छोटे राजकुमार शिवभद्रसिंहजी सहित महाराजा के संपर्क में रहनेवाले अनेक लोगों के साथ मैंने मुलाकात साक्षात्कार किया है। कई लोगों ने मुझे पत्रों द्वारा प्रसंग तथा जानकारियाँ भेजी हैं। महाराजा के शासनकालीन अनेक ऐतिहासिक संदर्भ उपयोगी सिद्ध हुए है। राज्यपाल के रूप में महाराजा के मद्रास के कार्यकाल के उनके निजी कार्यालय में सुरक्षित अंग्रेजी दैनिकों The Hindu तथा Indian Express के समाचारों की कटिंग्स की पुस्तिका मूलभूत विवरणों में उपयोगी सिद्ध हुई है। अनेक प्रसिद्ध लेखकों ने अपने स्तंभों, लेखों और संस्मरणों में महाराजा के विषय में सुने हुए प्रसंगों का वर्णन किया है, उनका भी संभव हो सका है उतना उपयोग मैंने किया है। इन सबको जीवनचरित्र में गूंथने काम कसौटी करनेवाला था। उसमें कितना सफल हुआ हूँ यह तो सुज्ञ पाठक ही कह सकेंगे ।
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