भाषा विभाग, पंजाब की एक महत्वपूर्ण और लाभकारी योजना शोध-प्रबन्धों का प्रकाशन है। इस योजना के अधीन पी० एच० डी० और डी० लिट्की उपाधियों के लिए स्वीकृत "शोध-प्रबन्धों को प्रकाशित किया जाता है, इससे जहां शोध कर्ताओं को प्रोत्साहन मिलता है वहीं पाठकों को साहित्य जगत् में नई उद्भावनाओं की जानकारी मिलती है। इससे शोध की नई दिशाएं उद्घाटित होती है और हमें अपनी महान् विरासत को समझने की आवश्यकता महसूस होती है। प्रस्तुत कृति का प्रकाशन भी इसी श्रृंखला की एक कड़ी है।
पंजाब के मध्यकालीन राम काव्य रचयिताओं में पंडित गुलाब सिह का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वे एक महान् सहृदय रामभक्त कवि थे। इनकी महान् रचना अध्यात्म रामायण को संस्कृत के अध्यात्म रामायण का अनुवाद समझा जाता रहा है परन्तु इस शोध-प्रबन्ध में दोनों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करते हुए विद्वान् लेखक नेपं० गुलाब सिहं कृत अध्यात्म रामायण की विशिष्टताओं को प्रभाव पूर्ण ढंग से उद्घाटित किया है। इसे इन्होंने अध्यात्म रामायण का अनुवाद नहीं अनुसूजन की संज्ञा दी है। यह पौराणिक महाकाव्य विषय और शैली की नवीनता, सरसता और सुबोधता के कारण साहित्य की अमूल्य निधि है। निर्मल धारा का गुरमत के प्रचार व प्रसार में सराहनीय योगदान रहा है। निर्मल मत एवं पं० गुलाब सिह के महान् साहित्यिक योगदान को भी लेखक ने सफलतापूर्वक उजागर किया है।
आशा है सुविज्ञ पाठक इस कृति का भरपूर स्वागत करेंगे।
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