दत्यान् निहन्तुं हि पुरा पुराणान् प्रचण्डचण्डादिमहाबलिष्ठान् सम्भावयम्तीमतिचण्डवेपं तमादिभूतां प्रणतोस्मि श्यामाम् ।।
संसार में सबसे प्राचीन सर्वमाग्य थति के नेत्र रूप ज्योतिष शास्त्र के प्रणेता सूर्य बादि बष्टादश महर्षि है। कहा भी है-
सूर्यः पितामहो व्यासो वसिष्ठोऽशः पराशरः ।
कश्यपो नारदो गर्ने मरीचिर्मनुरङ्गिराः ।।
लोमशः पौलिशश्चैव च्यवनो यवनो भृगुः ।
शौनकोऽष्टादशाश्चंते ज्योतिः शास्त्रप्रवर्तकाः ।।
इसके फलित, गणित, सिद्धान्त ये तीन मुख्य स्कन्ध हैं, इन तीनों स्कन्धों में फलित रकन्ष जनसाधारण से लेकर महाराजाधिराज तक सब लोगों का विशेषोपयोगी होने के कारण सर्वप्रधान गिना जाता है।
इस स्कन्ध के भी जातक, संहिता, प्रश्न, ताजिक, मुहूर्त, रमल ये छः भेद हैं। जातक से किसी मनुष्य के जन्मपत्री द्वारा उसके गर्भाधान काल से लेकर मरण पर्यन्त का शुभाशुभ फलादेश, संहिता से प्राकृतिक घटना, ग्रह-संचार बादि के द्वारा सकल संसार का शुभाशुन फलादेश, प्रश्न से प्रश्न द्वारा सकल शुभाशुभ फलादेश, ताजिक से किसी मनुष्य के गताब्दवश एक वर्ष तक का अनेक प्रकार का फलादेश, मुहूर्त से जातक आदि सकल कर्मो का जुहूर्त और रमल से प्रस्तार द्वारा सब प्रकार का शुभाशुभ फल ज्ञान होता है।
यह प्रायः सभी जानते हैं कि इन छः मेदों के अन्तर्गत रमलशास्त्र द्वारा अध्छे रमलशों से किया हुआ फलादेश शत-प्रतिशत सही बैठता है।
यद्यपि इस शास्त्र की अनेक पुस्तकें छपी हैं, किन्तु इनमें धर्म घुरन्पर स्यायी फलितज्ञों में प्रधान परमसुखोपाध्यायकृत रमल शास्त्र का सारमत नव रत्नों (बाध्यायों) से सुनोभित मह रमलनवरत्न नाम की अनुपम पुस्ता है। ऐसी सर्वाङ्गसुम्दर मनुपम पुस्तक की कोई भी प्राञ्जल टीका नहीं लिखी गयी थी। मतः अनेक अध्यापक और छात्रों के आग्रह करने पर मैंने मूल ग्रन्थ को परिधुद्धि के साथ-साथ शुद्ध सरल हिन्दी भाषा टीका द्वारा परिष्कृत करके काशी के विल्यात चोखम्बा संस्कृत पुस्तकालयाध्यक्ष श्रेष्ठवयं बाबू श्रीजयकृष्णदासजी गुप्त महोदय को सदा सर्वदा के लिये प्रकाशनार्थ दे दिया है।
इस संस्करण के अन्त में सर्वसाधारण जनोपकारार्थ सब तरह के बनेक प्रश्नी से मुठ 'रमख-प्रश्न-संग्रह' नामक परिशिष्वप्रकरण भी मैंने दे दिया है। जिससे थोड़े पढ़े लिखे आदमी भी सरलतापूर्वक सब प्रश्नों का उत्तर भार धकते हैं।
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