एक लम्बे अंतराल के बाद डॉ. राज कुमार सिन्हा जी मुझसे मिलने आये। औपचारिकता के बाद अपनी प्रथम पुस्तक "ऋणं कृत्वा... चार्वाक दर्शन की सहज यात्रा..." हस्तगत कराते हुए अनुरोध किया कि इस पुस्तक का प्राक्कथन आपको लिखना है। उनके स्वर में आत्मविश्वास झलक रहा था, जिसके कारण मैं इन्कार नहीं कर सका। यह भूल गया कि पिछले छः-सात माह से मैं क्रलम उठाने की स्थिति में नहीं हूँ। एक दुर्घटनावश मेरे दाँए कन्धे की हड्डी टूटी हुई है, अधिक उम्र हो जाने के कारण डॉक्टर ने ऑपरेशन करने से मना कर दिया है। कई बीमारियों के साथ-साथ हाथ में हो रही पीड़ा के कारण कुछ लिखने में बहुत कठिनाई होती है। लेकिन चार्वाक दर्शन पर लिखी पुस्तक को देखकर मैं अत्यधिक प्रसन्न हुआ क्योंकि इसी विषय पर मैं कई दशकों से कार्य करता रहा हूँ।
प्राक्कथन लिखने के लिए डॉ. सिन्हा की पुस्तक पढ़ना प्रारंभ किया, ज्यों. ज्यों पढ़ता गया त्यों-त्यों एक विश्वास दृढ़ होता गया कि यह पुस्तक दर्शन के क्षेत्र में 'मील का पत्थर' सिद्ध होगी। लगभग तीस साल पुरानी बातें याद आने लगी। पटना में भारतीय दर्शन परिषद के अधिवेशन में डॉ. सिन्हा ने मंच से 'ऋण' पर आलेख प्रस्तुत किया था। वहीं हमारी पहली मुलाकात हुई। चार्वाक दर्शन पर ढेर सारी बातें हुई। उसी मुलाकात में यह भी तय हुआ कि चार्वाक दर्शन से सम्बंधित सामग्री का हमलोग आपस में आदान-प्रदान किया करेंगे। बाद में उनकी कई रचनाओं को मैंने अपनी पुस्तक-शृंखला "चार्वाक दर्शन के विविध आयाम" में प्रकाशित भी किया। इस प्रकार हमारे बीच घनिष्ठता बढ़ती गयी।
लेखक ने अपनी पुस्तक को 'एक छोटी-सी पुस्तक' कहा है परन्तु इस पुस्तक में जितनी सूचना एवं सामग्रियों का एक साथ समावेश किया गया है, वह अपने आप में पर्याप्त है। इसके आधार पर डॉ. सिन्हा अपने उद्देश्य में पूर्ण रुप से सफल हुए हैं। उनके द्वारा दर्शन जैसे गम्भीर विषय को साहित्यिक भाषा में प्रस्तुत कर "गागर में सागर" समेटने का सफल प्रयास है।
लेखक का संभवतः यह विचार है कि विरोधियों द्वारा भ्रान्तियाँ फैला कर चार्वाक दर्शन को वर्तमान में लुप्त या नष्ट कर दिया गया है, यह दर्शन लोगों को भ्रष्ट, निकृष्ट अथवा निम्न कोटि में ला कर रख देने वाला है। इस दर्शन की कोई आवश्यकता नहीं है। चार्वाक दर्शन के सम्बन्ध में विरोधियों के इस प्रकार के मतों का निराकरण कर लेखक ने इसे पुनर्जीवित करने की दिशा में सार्थक एवं सफल प्रयास किया है। डॉ. सिन्हा ने पूरे मनोयोग से, अध्यवसाय के बल पर, इस दर्शन को प्रतिष्ठित करने हेतु युक्तियों-तों को आधार बनाया है और हर संभव प्रयासों से सफलता के शिखर पर पहुँचाया है। लेखक का विचार है कि प्रस्तुत पुस्तक में चार्वाक दर्शन का वर्णित स्वरूप भारत का नवीनतम दर्शन कहलाने और एक विश्व दर्शन बनने में समर्थ है।
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