प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार रांगेय राघव ने शेक्सपियर के ग्यारह नाटकों का हिन्दी अनुवाद किया है, जो इस श्रृंखला में पाठकों को उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
इस महान नाटककार ने जीवन के इतने पहलुओं को इतनी गहराई से चित्रित किया है कि वह विश्व-साहित्य में अपना सानी सहज ही नहीं पाता। मारलो तथा बेन जानसन जैसे उसके समकालीन कवि उसका उपहास करते रहे; किन्तु वे तो लुप्तप्राय हो गए, और यह कविकुल- दिवाकर आज भी देदीप्यमान है।
शेक्सपियर ने लगभग 36 नाटक लिखे हैं, कविताएँ अलग। उसके कुछ प्रसिद्ध नाटक हैं-जूलियस सीज़र, ऑथेलो, मैकबेथ, हैमलेट, सम्राट लियर, रोमियो जूलियट (दुःखान्त); ग्रीष्म-मध्य रात्रि का स्वप्न, (ए मिड समर नाइट्'स ड्रीम), वेनिस का सौदागर, बारहवीं रात, तिल का ताड़ (मच एडू अबाउट नथिंग), जैसा तुम चाहो (एज़ यू लाइक इट), तूफ़ान (सुखान्त)। इनके अतिरिक्त ऐतिहासिक नाटक हैं तथा प्रहसन भी हैं। प्रायः उसके सभी नाटक प्रसिद्ध हैं।
शेक्सपियर ने इस नाटक में यूनानी नाटक की प्रस्तावना-शैली का सहारा लिया है, ताकि कथा की श्रृंखला को वह जोड़ सके।
नाटक के दृष्टिकोण से इसे बहुत उच्चकोटि का नहीं माना जाता, क्योंकि दुःखान्त नाटक के पात्रों के चित्रण में उसने जो अन्तर्व्यथा और उसका अन्तर्द्धन्द्ध अपने हैमलेट, मैकवेय और सम्राट लियर नामक नाटकों में दिखाया है, वैसा वह यहाँ नहीं दिखा सका है। यद्यपि घरानों की लड़ाई के कवि स्वयं विरुद्ध है और स्वतन्त्र प्रेम का पक्षपाती है, किन्तु अवरोधों और घातों के विरुद्ध वह उतनी गहरी छटपटाहट पैदा नहीं कर सका है, जितनी कि इसे संसार के अतिश्रेष्ठ नाटकों में लाकर खड़ा कर देती। इस दृष्टि से जहाँ तक प्रेम की सम्वेदना का प्रश्न है, जो तल्लीन आत्मानुभूति और आसक्ति 'जैसा तुम चाहो' में झंकार उठी है, उसका 'रोमियो जूलियट' में अभाव ही मिलेगा।
किन्तु फिर भी इस नाटक में एक गुण है। वह है इसकी माँसल ऊहा। वह जितनी मुखर यहाँ हुई है, अपनी वासना की प्रखरता, अपनी सांकेतिकता में अन्यत्र शेक्सपियर ने स्यात् ही चित्रित की हो।
मैं इस नाटक को सफल मानता हूँ, क्योंकि शेक्सपियर ने पात्रों की जो उठान पाठक या दर्शक के सामने प्रस्तुत की है, वह उसने अन्त तक उसी रूप में निबाह दी है।
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