लेखक परिचय
राजेन्द्र मिश्र ने साहित्य की विविध विधाओं में रचना की है। उनकी अनेक सृजनात्मक और आलोचनात्मक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। यह उनकी 124वीं प्रकाशित पुस्तक है। उनकी रचनावली भी बारह खंडों में प्रकाशित हो चुकी है। रचनाकार ने आजकालीन साहित्य की अवधारणा दी है। वे साहित्य के उत्तर आधुनिक युग के रचनाकार हैं। उन्होंने 'आधुनिक भारतीय साहित्य' पुस्तक का संपादन भी किया है, जिसमें 14 प्रमुख भारतीय भाषाओं पर विशेषज्ञों के आलेख शामिल हैं। राजेन्द्र मिश्र ने दक्षिण भारत के अधिकांश विश्वविद्यालयों में भारत सरकार की योजना के अंतर्गत हिंदी साहित्य पर व्याख्यान भी दिये हैं। टेलीविजन के अरनेट कार्यक्रम में उनके अनेक व्याख्यान प्रसारित हुए हैं। 'साहित्य का सृजन' पर उनकी यह पुस्तक अनेक आयामों के बीच अत्यंत प्रासंगिक है। वे अब भी नए विषयों पर स्वतंत्र रूप से लेखन में सक्रिय हैं।
पुस्तक परिचय
आधुनिक साहित्य की अवधारणा अब हिंदी में भी ग्लोबल होकर आ रही है। अवधारणा के साथ मनुष्य की स्वतंत्रता का सवाल भी सृजन में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो गया है। इस पुस्तक में साहित्य के अंतर्गत इन सवालों को शामिल ही नहीं किया गया उनके उत्तर भी खोजे गए हैं।आधुनिक हिंदी साहित्य पर श्री अरविंद का भी प्रभाव पड़ा है, जो साहित्य को दर्शन से जोडता है। इसके अनेक आलेख अकादमियों और उच्च शिक्षा संस्थाओं के लिए लिखे गये हैं। टेलीविजन की ऑनलाइन शिक्षा जो भारत सरकार की योजना के अनुसार बनी उसमें भी भाषा और साहित्य पर इन आलेखों का समावेश हुआ है। हमारे यहां नए साहित्य का आरंभ नयी कविता से हुआ है। स्वतंत्रता पूर्व आरंभ होकर स्वतंत्रता के बाद विपुल साहित्य रचा गया है। काव्य भाषा के साहित्य में अनेक प्रयोग भी हुए हैं, जिनका मुख्य संबंध कविता से रहा है। नयी सदी का हिंदी साहित्य स्त्री विमर्श और दलित विमर्श के साथ ही युवा विमर्श का भी है। अगर हिंदी विश्व साहित्य में शामिल हो रही है तो उसकी वजह तुलनात्मक साहित्य में मिलती है। मैंने एक ग्रंथ 'आधुनिक भारतीय साहित्य' भी संपादित की है, जिसमें 14 प्रमुख भारतीय भाषा साहित्य पर देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों के विशेषज्ञों ने अपने आलेख लिखे हैं। भारतीय साहित्य अलग-अलग भाषाओं में लिखा गया है पर हमारी सांस्कृतिक एकता का प्रमाण यहां के हर भाषा साहित्य में मिलता है। विश्व साहित्य पर प्रकाशित सीरीज में मेरा आलेख 'भारतीय साहित्य की सांस्कृतिक एकता' को शामिल किया गया है। यह आलेख लंबा है और इसमें विस्तार से साहित्य की समस्याओं और उसमें अंतरनिहित एकता को अंकित किया गया है। साहित्य का भविष्य, विज्ञान और कृत्रिम बुद्धि के इस युग में नई रोबो संस्कृति को भी प्रमाणित करता है। साहित्य की यह सामग्री भी उच्च शिक्षा संस्थाओं में कार्यरत अध्येताओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस तरह इस पुस्तक में जो मेरी प्रकाशित 124वीं रचना है 'भाषा और साहित्य, पर अत्यंत मूल्यवान सामग्री है। समय-समय पर लिखे ये आलेख आज भी प्रासंगिक हैं। मुझे उम्मीद है इस पुस्तक का हिंदी भाषा और साहित्य से जुड़े सभी लोग व्यापक रूप से स्वागत करेंगे।
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