श्री ए. आर. नटराजन ने इस रचना का अनुवाद अंग्रेजी में करते हुए, इस पर टीका लिखा है। आप भगवान रमण के उपदेशों पर तीस सेअधिक पुस्तकों के लेखक हैं। 'अहम ब्रह्मास्मि' के नाम से प्रसिद्ध आध्यात्मक पुस्तकों के लेखक श्री विनय कुमार वैद्य की हिन्दी अनुवाद अब प्रस्तुत है।
महर्षि ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। जब इस प्रकार से चालीस पदों की रचना हो चुकी तो श्री मुरुगनार उनमें से कुछ पदों को यह कहते हुए अलग करते चले गए कि वे शेष पदों की तुलना में वैसे ही पर्याप्त सुन्दर नहीं है, उन्होंने महर्षि से अनुरोध किया कि उनके स्थान पर अपेक्षतया अधिक सुन्दर पद शैली में रचना करें ताकि कुल पद-संख्या-चालीस हो जाए। श्री भगवान के मन में भिन्न-भिन्न समय पर उठती भावनाओं के अनुसार ये पद रचे गए थे। तत्पश्चात् श्री भगवान से अनुमति लेकर उन पदों में अभिव्यक्त विचारों की विषय-वस्तु (सत्-दर्शन) को तारतम्य देते हुए श्री मुरुगनार ने उन्हें क्रमबद्ध किया। (जिन पदों को प्रारंभ में अलग कर दिया गया था उन्हें चालीस श्लोकों के एक अन्य ग्रन्थ का रूप दिया गया और उसे सद्दर्शनम् के अनुबन्ध की तरह से रखा गया।)
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