निवेदन
गीताप्रेस गोरखपुरके संस्थापक ब्रह्मलीन श्रद्धेय सेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाकी एक धारणा थी कि लाखों मनुष्योंको भोजन करानेकी अपेक्षा एक मनुष्यको भगवान्की ओर लगा देना अधिक मूल्यवान् है । वे इस बातको अपने प्रवचनोंमें कई बार व्यक्त करते थे । उन्होंने अपनी पुस्तकोंमें भी इस बातको प्रकाशित किया है । इस उद्देश्यको लेकर वे 3-4 महीनोंके लिये स्वर्गाश्रम ऋषिकेशमें गंगाके किनारे, वनमें, वटवृक्षके नीचे इत्यादि वैराग्यके स्थलोंमें सत्संगका कार्यक्रम रखते थे । बहुत-से सत्संगी भाई सत्संगके उद्देश्यको लेकर वहाँ आकर सत्संगका लाभ उठाते थे।
श्रद्धेय सेठजीके उन प्रवचनोंको किसी सत्संग-प्रेमी भाईने लिख लिया था । इन प्रवचनोंमें हमारा वर्तमान साधन कैसे मूल्यवान् बने? परमात्माके निराकार स्वरूपका ध्यान, भगवान्का भजन करनेके लिये चेतावनी, संसारकी आसक्तिका त्याग, निरन्तर चिन्तन स्वाभाविक कैसे हो? निरन्तर नामजप कैसे हो? व्यापारके कार्यमें झूठ बोलना, धोखा देना महान् पाप है, प्रारब्धमें जितना धन मिलना होगा उतना ही मिलेगा, जिन मनुष्योंने इस मनुष्य-जीवनमें भगवत्प्राप्ति करनेमें प्रमाद किया, उनको कितना महान् कष्ट भोगना पड़ेगा, भगवान् निराकारसे साकार कैसे बनते हैं? ज्ञानमिश्रित भक्ति और केवल भक्तिके भेद आदि, आदि विषयोंपर प्रकाश डाला गया है।
पाठकोंको इन प्रवचनोंसे बहुत विशेष आध्यात्मिक लाभ हो सकता है । इस उद्देश्यसे उन महापुरुषके प्रवचनोंको संकलित करके प्रकाशित किया जा रहा है । हमें आशा है पाठकगण इनसे लाभ उठायेंगे ।
विषय-सूची
1
साधनको मूल्यवान बनायें
5
2
चेत करो
7
3
भगवान् और महात्माओंकी अहैतुकी दया
25
4
आत्मा नित्य है, शरीर अनित्य है
36
परमात्मामें प्रेम और महात्मामें श्रद्धा कल्याणकारी है
46
6
स्वाभाविक निरन्तर चिन्तन हमारा लक्ष्य हो
60
लाभ, हानि प्रारब्धके अधीन है
70
8
निराकारका ध्यान
72
9
निरन्तर नाम -जप कैसे हो?
89
10
भोगोंसे बहुत अधिक सुख वैराग्य, ध्यान और परमात्माकी प्राप्तिमें
99
11
ज्ञानमिश्रित भक्ति तथा केवल भक्तिका भेद
107
12
भेद भक्ति और अभेद मुक्ति
113
13
शान्ति कैसे प्राप्त हो?
116
14
भगवान् जल्दीसे जल्दी कैसे मिलें?
123
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