| Specifications |
| Publisher: POOJA PRAKASHAN, DELHI | |
| Author Kali Pandit | |
| Language: Sanskrit and Hindi | |
| Pages: 646 (With B/W Illustrations) | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 9x6 inch | |
| Weight 930 gm | |
| HBF342 |
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Real Ancient Scriptural Tantra Based on the Secret Secrets of Scripture All-Pervading Powerful Tantric
काल शिव को कहा जाता है और उनकी अर्धांगिनी होने के कारण ही काली को काली कंहा जाता है। यह तेज, पराक्रम, विजय, वैभव की अधिष्ठात्री देवी है। दश महाविद्याओं में प्रमुख स्थान काली का ही है। दार्शनिक दृष्टि से काल तत्त्व की प्रमुखता होने के कारण काली का सर्वविद्याओं में प्रमुख स्थान माना गया है।
मार्कण्डेय पुराण के दुर्गा सप्तशती खंड में काली का उद्भव मां दुर्गा के ललाट से होना वर्णित है। लेकिन वस्तुतः काली उनसे भिन्न परब्रह्म स्वरूपा है। तारा, छिन्नमस्ता, धूमावती, मातंगी, कमला आदि दश महाविद्याएं भी काली के ही रूप हैं। रूप-भेद की दृष्टि से काली के अनेक भेद हैं। जैसे दक्षिणा काली, सिद्धि काली, संततिप्रदा काली, चिंतामणि काली, हंस काली, कामकला काली, गुहा कालो, श्मशान काली. भद्रकाली आदि।
लेकिन काली का सर्वाधिक प्रचलित रूप दक्षिणा काली का है। इसी रूप में काली को साधना सिद्धि प्रायः की जाती है। काली को कालिका या श्यामा और रक्ता भी कहा जाता है। ऐसा प्रमाण भी है। यथासा काली द्विविधा प्रोक्ता श्यामरक्ता भेदतः ।
श्यामा तु दक्षिणा प्रोक्ता रक्ता श्री सुंदरी मता ।।
अर्थात काली श्यामा भी है और रक्तां भो। इनमें दक्षिणा काली का वर्ण काला है, जबकि यही काली रक्ता भेद से श्रीसुंदरी है। काली को ही विद्याराज्ञी भी कहा गया है। तंत्र साधकों में दक्षिणा काली ही सर्वलोकप्रिय है, उसी की साधना- आराधना की जाती है।
शास्त्रानुसार 'पंचशून्ये स्थिता तारा सर्वान्ते कालिका स्थिता' अर्थात पंचतत्त्वों तक सत्वगुणी तारा की स्थिति है और सबसे आखिर में काली है। कहने का भाव यह है कि काली आदिशक्ति, चित् शक्ति के रूप में विद्यमान रहती है। वह अनादि, अनंत, अनित्य, ब्रह्मस्वरूपिणी, सर्वस्वामिनी है। वेदों में भी काली की स्तुति इसी रूप में की गई है।
काली को दक्षिणा काली क्यों कहा जाता है? इस संदर्भ में निर्वाण तंत्र में कहा गया है कि सूर्यपुत्र यम का स्थान दक्षिण दिशा में है, लेकिन वह भी काली का नाम सुनते ही भयभीत होकर अपना वह स्थान छोड़ भागता है। आशय यह है कि वह काली के उपासकों को नरक में ले जाने में सक्षम नहीं रहता। इसीलिए काली को दक्षिणा काली कहा गया है।
कुछ का मत है कि काली कर्म फलों की सिद्धि प्रदान करती है, इसलिए उन्हें दक्षिणा काली कहा जाता है। कुछ के मत से दक्षिणामूर्ति भैरव ने काली की सबसे पहले आराधना की थी, इसलिए काली को दक्षिणा काली कहा जाता है।
कारण कुछ भी हो। लेकिन काली साधकों में दक्षिणा काली ही सर्वमान्य है। काली की उपासना आठ सौम्य व चार रौद्र रूपों में की जाती है।
जहां तक तंत्र साधना का प्रश्न है, इसका स्वरूप रहस्यमय ही रहा है। कारण, यह गुप्त लिपि में लिखा जाता था। काली तंत्र में काली को दिगंबरा, मुंडमाला विभूषिता, करालवदना, मुक्तकेशी आदि अनेक नामों से संज्ञित किया गया है।
अम्तु, साधना में पूजन, ध्यान, सहस्रनाम, कवच, स्तोत्र आदि की अपनी भूमिका होती है। अतः इस लघु ग्रंथ रूप पुस्तक में काली का सांगोपांग विवेचन करने के साथ ही दश महाविद्याओं के कवचादि, पूजन विधि, कुछ विशिष्ट मंत्र- तंत्र प्रयोगविधि, कर्णपिशाचिनी, भैरवी, यक्षिणी की सिद्धियों के साथ ही कामाख्य तंत्र भी विशेपकर दिया गया है।
मां काली व उनकी सहदेवियों का पूजन विधान, मंत्रादि भी सविस्तार दिया, गया है। इस प्रकार तंत्र साधकों के लिए यह अनमोल ग्रंथ काफी समय लगाकर तैयार किया गया है।
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